कभी ध्यान गया है किसी मंदिर में लगे किसी अभागे वृक्ष की तरफ ? उसके तने या जड़ के पास अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दीया जला-जला कर उसकी लकड़ी को कोयला कर, हमें लगता है कि वृक्ष महाराज हमारी मनोकामनाएं जरूर पूरी करेंगें ! कोई कसर नहीं छोड़ते हम, अपनी आयु बढ़ाने के लिए उसकी जड़ों में अखाद्य पदार्थ डाल-डाल कर उसको असमय मृत्यु की ओर ढकेलने में.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हम एक धार्मिक देश के वाशिंदे हैं। हम बहुत भीरू हैं ! इसी भीरुता के कारण हम अपने बचाव के लिए तरह-तरह के टोने-टोटके करते रहते हैं ! हमें जिससे डर लगता है, हम उसकी पूजा करना शुरु कर देते हैं ! हमने अपनी रक्षा के लिए पत्थर से लेकर वृक्ष, जानवर और काल्पनिक शक्तियों को अपना संबल बना रखा है ! पर जैसे-जैसे हमारी सुरक्षात्मक भावना पुख्ता होती जाती है, हम अपने आराध्यों की ऐसी की तैसी करने से बाज नहीं आते !
पूजा-अर्चना कर ली, कार्य सिद्ध हो गया तो फिर तुम कौन तो मैं कौन
घर से ही शुरु करें ! जब तक मतलब निकलना होता है, हमें अपने माँ-बाप से ज्यादा प्यारा और कोई नहीं होता ! पर जैसे ही, उन्हीं कि बदौलत, अपने पैरों पर खड़े होने की कुव्वत आ जाती है, तो उनके लिए वृद्धाश्रम की खोज शुरु हो जाती है !हमारे यहां यह बात काफी ज्यादा प्रचलित है कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं ! देख लीजिए जहां देवता वास करते हैं, वहां नारी का क्या हाल है ! अरे देवता ही जब नारी की कद्र नहीं कर पाए, तो हम तो गल्तियों के पुतले, इंसान हैं ! कभी सुना है कि देवताओं ने अपना मतलब सिद्ध हो जाने पर किसी देवी को इंद्र का सिंहासन सौंप दिया हो ?
हम नदियों को देवी या माँ का दर्जा देते आए हैं ! पर क्या हमने किसी एक भी नदी के पानी को पीने लायक छोड़ा है ! कहीं पीना पड़ जाता है, तो वह मजबूरी वश ही होता है ! प्रकृति द्वारा मुफ्त में प्रदान इस जीवनदाई द्रव्य की हमने कभी कद्र नहीं की ! उसी का परिणाम है जो उस पर हजारों रूपए खर्चने पड़ रहे हैं ! जल देवता कहते-कहते हमारा मुंह नहीं थकता ! पर आज जैसी इस देवता की दुर्दशा कर दी गई है, तो लगता है जैसे इसके भी देवता कूच कर चुके हैं !
यही हाल वायुदेव का है ! आम इंसान की तो क्या ही कहें, खुद उनकी भी सांस हमारे यहां आ कर फूलने लगती है ! पर हमें और हमारे तथाकथित नेताओं को कोई परवाह नहीं है ! ना हीं चिंता है ! एक आश्वासन देते नहीं थकता दूसरा अपनी करनियों से बाज नहीं आता ! गाय को सदा माँ के समकक्ष माना गया है ! उसकी नेमतों का तो कोई सानी ही नहीं है ! ना हीं उसके उपकारों का कोई बदला है ! पर क्या कभी उनके जिस्म को निचोड़ने के अलावा उनकी सेहत का ख्याल रखा है, किसी ने ? जगह-जगह घूमती, कूड़ा खाती मरियल सी गायें, शायद ही दुनिया में कहीं और दिखती हों ! पेड़-पौधों, लता-गुल्मों की तो बात ही ना की जाए तो बेहतर है ! जीवन देने वाली इस प्रकृति की नेमत की कैसी पूजा आज कल हो रही है जग जाहिर है ! कभी ध्यान गया है किसी मंदिर में लगे किसी अभागे वृक्ष की तरफ ? उसके तने या जड़ के पास अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दीया जला-जला कर उसकी लकड़ी को कोयला कर, हमें लगता है कि वृक्ष महाराज हमारी मनोकामनाएं जरूर पूरी करेंगें ! कोई कसर नहीं छोड़ते हम, अपनी आयु बढ़ाने के लिए उसकी जड़ों में अखाद्य पदार्थ डाल-डाल कर उसको असमय मृत्यु की ओर ढकेलने में !
समय-समय पर देव प्रतिमाओं की तो और भी बुरी गत हमारे द्वारा बना दी जाती है ! पूजा-अर्चना के बाद मूर्ति और उसमें इस्तमाल हुई सामग्री, किसी पेड़-पार्क या झाड़ियों में पड़ी अपनी दुर्गत पर आँसू भी नहीं बहा पाते ! किसी बड़े-विशाल पूजा समारोह के बाद नदी-नालों, झीलों-तालाबों की हालत देख लीजिए, हमारे भक्तिभाव की सारी पोल खुल कर रह जाती है !
यानी कि हम इतने खुदगर्ज हैं कि मतलब निकल जाने के बाद किसी भी पूज्य की ऐसी की तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! पूजा-अर्चना कर ली, कार्य सिद्ध हो गया तो फिर तुम कौन तो मैं कौन !
24 टिप्पणियां:
रवीन्द्र जी
आपका और चर्चामंच का हार्दिक आभार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
सटीक
सुशील जी
अनेकानेक धन्यवाद
चाहे नदी तलाव हो,पेड़ पौधे हों,पशु पक्षी हों या जर जमीन हो हम पूजा सभी की करते हैं,संरक्षण के नाम पर जीरो हैं । ये सोचने समझने की जरूरत है कि हमारी संस्कृति में इनकी पूजा का स्थान क्यों है ? जो लोग सोचना ही नहीं चाहते ।.... आपके लेख का बहुत अभिनंदन है👌👌🙏
सुंदर रचना
जिज्ञासा जी
आपका सदा स्वागत है
ओंकार जी
हार्दिक धन्यवाद
बिल्कुल सही कहा गगन भाई की जिन जिन की हम पूजा करते है उन सब की ऐसी की तैसी कर डालते है। विचारणीय आलेख।
शर्मा जी नमस्कार, लापरवाही व असंवेदनशीलता पर पर सटीक आलेख, वाह
ज्योति जी
दुख भी बहुत होता है पर कुछ किया नहीं जा पा रहा
अलकनंदा जी
स्वागत है आपका
बहुत ही सटीक सार्थक एवं सारगर्भित लेख...
माँ बाप नदी गाय या फिर पीपल बरगद हम ये नहीं देखते कि इन्हें दुख देकर हम कौन सी पूजा और आशीर्वाद की कामना करते हैं...।
वैसे आपके सभी लेख बहुत ही बेहतरीन होते है पर ये लेख अब तक का सबसे उम्दा और शानदार लेख है! बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु की तरफ आपने सबको ध्यान खींचा है! काश कि लोग समझ पाते कि गाय,नदियों और वृक्षों पूजा करने अधिक महत्वपूर्ण है उनकी देखभाल करना! और उनके अस्तित्व को सुंदर बनाए रखना!
सुधा जी
कडवी सच्चाई है! देख-सुन कर दुख होता है
मनीषा जी
भले ही छोटे पैमाने से शुरू करना पडे़ पर शुरुआत जरूरी है
आपका लेख पढ़कर दीपक तले अँधेरा वाली कहावत याद आ रही है, गंगा और गाय को पूजने वाला देश उन्हीं के प्रति उदासीन भी है, फिर भी अब कुछ बदलाव आ रहा है
जी,अनीता जी, धीमा है पर गनीमत है शुरू तो हुआ
सहमत आपकी बात से ...
हम शायद कभी जागरूक थे ... कम से कम इतिहास तो कहता है ... फिर जाने क्या हुआ ...
पर जो भी हुआ उसे बदला जा सकता है .. बदलना जरूरी है ... बदलना होगा ... साझा सार्थक प्रयास बस ...
सार्थक आलेख ....
नासवा जी
बिलकुल सही! हमें खुद पहल करनी है, छोटी ही सही शुरुआत होनी चाहिए
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