अब बखिया काहे को उधेड़नी वह तो उधड़ती ही चली जाएगी ! सूइयां मिलती रहेंगी भूसा कम पड़ जाएगा ! सो बाल को खाल में ही रहने दें ! देश-खेल-समाज तरक्की कर ही रहे हैं ना ! फिर काहे की सर-फोड़ी ! क्यूँ यह सब बेकार की बहस ! क्यूँ फिजूल की बातों का जिक्र ! भगवान है ना ! चला ही रहा है न ! फिर काहे की चिंता............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
एक बार एक जज साहब ने देश की व्यवस्था पर टिप्पणी की थी कि देश को भगवान ही बचा सकता है ! इस पर कईयों की भृकुटि पर बल पड़ गए थे ! पर कोई माने या ना माने, निष्पक्षता से देखा जाए तो हमारे यहां की बहुत सी चीजों का मालिक भगवान ही है ! अब यह जो भगवान होता है वह बहुत दयालु, क्षमाशील व भक्तवत्सल होता है ! इसीलिए अपने बंदों की लायकी-नालायकी को कभी-कभी नजरंदाज कर उन पर कभी कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो जाता है !
अभी क्रिकेट का मौसम है उसी को देखें, उसे ''कौन'' चला रहा है ! देश की क्रिकेट टीम की बागडोर एक ऐसे कप्तान के हाथों में है, जो 2011 से 140 बार अपनी घरेलू टीम, बेंगलुरू का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, एक बार भी उसे ट्राफी नहीं दिला पाया ! पर ऊपर वाले की कृपा से पहलवान है !
भारत की टीम की ''मेंटरिंग'' एक ऐसे इंसान की झोली में जा गिरी जो इस बार केआईपीएल के खात्मे होते तक खुद बड़ी मुश्किल से सौ रनों का आंकड़ा छू पाया है ! भले ही इतिहास कुछ भी हो !
रही कोच की बात, तो शायद उसे खुद भी पता न हो कि उसकी किस उपलब्धि पर इतना मंहगा और जिम्मेदारी भरा पद उसे हासिल हुआ पड़ा है !
फिर लगता है कि यह सब बेकार की बातें हैं ! भगवान हैं ना ऊपर ! उस पर अटूट भरोसा होना चाहिए ! इस सबसे भी कहीं बड़े-बड़े हादसे उसी की मर्जी से हमारे सामने से गुजरे हैं !
याद है, एक नेता ने अपने पर चालीसा लिखने वाले चापलूस चारण को राज्य सभा में जगह दिला दी थी !
अपना नाम तक ना लिख पाने के बावजूद सूबे के भविष्य को निर्धारित करने वाले दस्तावेजों पर प्रभु द्वारा अनुग्रहित किसी के ''हस्ताक्षर'' हुआ करते थे !
अपने नेता की चप्पल उठा उसके पीछे भागने वाले नेता, के सर पर सालों भगवान की मर्जी से ही तो जूते बरसाते रहे थे ! किसकी शह पर !
पद-नाम-दाम हथियाने के लिए आका के इशारे पर झाड़ू-पौंछा लगाने से भी गुरेज ना करने वाले जनता पर वर्षों रोब गालिब किस की शह पर करते थे !
कहावत है कि दिल तक पहुंचने वाला रास्ता पेट से हो कर जाता है पर हमारे यहां तो पेट को तृप्ति दिलाने वाले को देश का सिरमौर ही बना दिया गया था ! अब यह सब प्रभुएच्छा से ही तो संभव हुआ होगा !
किसी एक का भविष्य संवारने के लिए जब लाखों का भविष्य दांव पर लगा दिया जाता है, तो वह एक, प्रभु को प्यारा होगा की नहीं !
डाका-लूट-मार के व्यवसाई को जनता की सुरक्षा सौंप दी जाती रही है ! यह सब बिना ऊपर वाले की मर्जी से हो सकता है क्या !
उसका वरद-हस्त सर पर आते ही आम से खास बने जीव की बुद्धि यदि बाकी की आबादी को कैटल यानी भेड-बकरी समझने लग जाए तो इसमें उसका क्या दोष !
कुछ पर तो प्रभु कृपा का ऐसा सैलाब आता है कि वे लोग खुद को उसका सिबलिंग ही समझ, उसी की तरह अपनी मूर्तियां भी गढवाने लग जाते हैं ! खुद ऊँचे आसनों पर बैठ अपने ही जैसों को हिकारत की नजर से देखने लगते हैं ! पर वह भी बड़ा राहबर है सबको काट-छांट कर ही रखता है !
अब बखिया काहे को उधेड़नी वह तो उधड़ती ही चली जाएगी ! सूइयां मिलती रहेंगी भूसा कम पड़ जाएगा ! सो बाल को खाल में ही रहने दें ! देश-खेल-समाज तरक्की कर ही रहे हैं ना ! फिर काहे की सर-फोड़ी ! क्यूँ यह सब बेकार की बहस ! क्यूँ फिजूल की बातों का जिक्र ! भगवान है ना ! चला ही रहा है न ! फिर काहे की चिंता !
इतने बड़े ब्रह्मांड की व्यवस्था, संचालन, रख-रखाव कोई हंसी-खेल तो है नहीं ! थोड़ी-बहुत चूक, विलंब, अनदेखी हो ही जाती है ! परिमार्जन भी तो होता है ! जेलें यूं ही तो नहीं भरी हुईं ! इसलिए मस्त हो, झरोखे पर बैठें और तमाशा देखें ! किसी भी चीज/बात को बहुत गंभीरता से ना लें ! दिल बहुत नाजुक होता है, हो सकता है, भगवान को आने में समय ही लग जाए.......!
14 टिप्पणियां:
सटीक
सब भगवान भरोसे ही है जी!!!👍👍
हार्दिक धन्यवाद, सुशील जी
ज्योति जी
सही है! बस भगवान भरोसा बनवाए रखें
😊
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी
आपका और चर्चा-मंच का हार्दिक आभार
बिलकुल सच बात है
हमारे ऊपर भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहता है 😊
बेनामी जी
धन्यवाद! परिचय के साथ आते तो और अच्छा लगता
कदम जी
लगता तो ऐसा ही है, पर कुछेक लोगों पर
😊
वाह, रोचक आलेख, किसी ने कहा है, जीवन गम्भीरता से लेने लायक नहीं है क्योंकि यहाँ से सबको मर कर ही जाना है
अनीता जी
जीवन गम्भीरता से लेने लायक नहीं है क्योंकि यहाँ से सबको मर कर ही जाना है''
उसके बिना जाने भी नहीं देना है ! जबरा मारे भी और रोने भी ना दे ! यानी पुगता है तो पुगाओ और नहीं पुगता है तो भी पुगाओ !
सटीक धार दार तंज।
पूरा लेख बहुत दमदार।
साधुवाद।
कुसुम जी
हार्दिक आभार
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