सोमवार, 6 सितंबर 2021

आसान नहीं है, किसी अवतार का अवतरित होना

प्रभु का मनुष्य रूप धारण करना प्रकृति की कोई छोटी-मोटी घटना नहीं होती ! हजारों-लाखों साल में कभी एक बार धरा को संतुलित करने के लिए परमेश्वर को इस तरह का गंभीर उपक्रम करना पड़ता होगा ! बहुत सारे नियम-कायदे-नीतियों-रीतियों के विश्लेषण के उपरांत, ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सुरक्षा-व्यवस्था, वर्तमान-भविष्य का आंकलन, समय के हर पल का हिसाब करने और पता नहीं कितने अनगिनत उपक्रमों को अंजाम देने के बाद, अवतरण का शुभ मुहूर्त बनता होगा ! परलौकिकता, अलौकिकता और लौकिकता का मेल इतना आसान तो नहीं हो सकता..........! 

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मान्यता और विश्वास है कि निरीह, संकटग्रस्त भक्तों की करुण पुकार पर, उनकी रक्षा हेतु प्रभु दौड़े चले आते हैं ! आएं भी क्यूँ ना ! सारा संसार उनकी ही कृति है, प्राणिमात्र उन्हीं की संतान है ! तो पिता अपने बच्चे को कष्ट में कैसे देख सकता है ! हाँ, पुकार सच्ची होनी चाहिए ! निष्कपट, छल-फरेब से दूर, सरल हृदय की ! पर कभी-कभी जड़बुद्धि मानव मष्तिष्क में जिज्ञासा उठ खड़ी होती है कि प्रभु आते कहां से हैं ? क्या एक जीव की पुकार पर करोड़ों-अरबों मील दूर देवलोक से चल कर आते हैं या फिर धरती पर ही सूक्ष्म रूप में सदा विद्यमान रहते हैं ! यदि सूक्ष्म रूप से हमारे पास रहते हैं (मान्यता भी है कण-कण में भगवान) तो हमारी आकाशगंगा और उसके बाहर इस धरा जैसे हजारों-लाखों विश्व और भी बताए जाते हैं, तो क्या सभी जगह उनकी उपस्थिति होती होगी ? हालांकि उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है ! प्रभु के अस्तित्व, उनकी अप्रमेय शक्ति, उनकी अनिर्वचनीय, अगाध, अज्ञेय क्षमता पर किसी भी प्रकार का सवाल या शंका नहीं है ! किसी को होनी भी नहीं चाहिए ! पर फिर भी इतने बड़े ब्रह्मांड के संचालक का जब-तब कहीं भी, सब कुछ छोड़ कर आ जाना, क्या इतना आसान होता होगा ? एक भक्त की करुण पुकार पर व तक पहुंचने के लिए कितना कुछ समायोजित करना पड़ता होगा ! भले ही उनका एक सूक्ष्म पल हमारे सैंकड़ों वर्षों के बराबर ही क्यों ना हो ! 

वर्षों-वर्ष में घटने वाली छोटी-बड़ी घटनाऐं, उनके परिणाम, उनके द्वारा उत्पन्न परिस्थितियां सब एकजुट एक बहुत बड़ा कारण बन जाती हैं, प्रभु के अवतरण का  

हाथी और चींटी की तुलना फिर भी हो जाए पर भगवान और इंसान की तुलना का तो सोचना ही बेमानी और नादानी है ! दिव्य शक्तियों के सामर्थ्य के आंकलन में हमारी कल्पना भी भोथरी हो जाती है ! गति के परिपेक्ष्य में ही देखा जाए तो अभी तक दुनिया में सबसे तेज रफ़्तार प्रकाश की, लगभग एक सेकेण्ड में तीन लाख किमी., ज्ञात है ! हमारे लिए तो वही अद्भुत और सपने में भी अप्राप्य गति है ! मानव यंत्रों की अधिकतम चाल अभी तक सिर्फ सोलह किमी प्रति सेकंड तक ही पहुंच पाई है ! अपनी आकाशगंगा के नजदीकी ग्रहों तक पहुंचने में ही हमें महीनों लग जाते हैं ! यदि मानव अपने सबसे करीबी तारे अल्फा सेंटौरी तक ही जाना चाहे तो अब तक की रफ्तार से वह वहां 6000 साल में पहुंच पाएगा ! 

उधर हमारे ग्रंथों और पुराणों में दिव्य लोकों का जो विवरण है वह तो और भी अद्भुत है ! जिसमें ब्रह्मांड में दस लोकों का विवरण निम्नानुसार दिया गया है ! सबसे ऊपर सत्य लोक उसके बारह करोड़ योजन नीचे तपोलोक इसके आठ करोड़ योजन नीचे महर लोक फिर उसके बाद स्वर्गलोक जो पृथ्वी के बीचोबीच मेरु पर्वत पर अस्सी हजार योजन की ऊंचाई पर स्थित है ! इसके बाद मेहर लोक सेएक करोड़ योजन नीचे ध्रुव लोक फिर उससे एक लाख करोड़ योजन नीचे सप्तऋषियों के रहने का स्थान सप्त ऋषि लोक फिर भूलोक और फिर पाताललोक ! इतनी-इतनी दूरियों को वहां के वासी कैसे नापते होंगे इसका तो हमें दूर-दूर तक कोई अनुमान नहीं है ! फिर भी आना-जाना तो लगा ही रहता होगा ! बिना आपसी तालमेल के इतने बड़े ब्रह्मांड का संचालन कैसे संभव होगा ! कितनी तेजी से चलते होंगे वे लोग ? कितनी रफ़्तार होगी उनकी ? क्या मन की गति से भी तेज ?

प्रभु के ही अनुसार जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान हो जाता है, तब-तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में माया का आश्रय लेकर उत्पन्न होता हूँ। ग्रंथों, कथाओं, मान्यताओं या सीधी, सरल दृष्टि से देखा जाए तो प्रभु का सप्तम अवतार श्री राम के रूप में इस धरा पर रावण के संहार के लिए ही हुआ था। पर गहराई से देखा जाए तो बात इतनी सी ही नहीं लगती ! प्रभु का मनुष्य रूप धारण करना प्रकृति की कोई छोटी-मोटी घटना नहीं होती ! हजारों-लाखों साल में कभी एक बार धरा को संतुलित करने के लिए परमेश्वर को इस तरह का गंभीर उपक्रम करना पड़ता होगा ! बहुत सारे नियम-कायदे-नीतियों-रीतियों के विश्लेषण के उपरांत, ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण सुरक्षा-व्यवस्था, वर्तमान-भविष्य का आंकलन, समय के हर पल का हिसाब करने और पता नहीं कितने अनगिनत उपक्रमों को अंजाम देने के बाद, अवतरण का शुभ मुहूर्त बनता होगा ! परलौकिकता, अलौकिकता और लौकिकता का मेल इतना आसान तो नहीं हो सकता !

आम इंसान को अपने देश में ही कहीं छोटे-बड़े प्रवास पर जाना हो तो दस तरह के इंतजाम करने पड़ते हैं ! उसी में वह पस्त हो जाता है। विदेश की तीन-चार हजार की यात्रा के दौरान दो-तीन दिन तो इंसान को ''जेट लैग'' से उबरने में ही लग जाते हैं। निकटतम ग्रह तक जाने में महीनों की मेहनत-मशक्कत, गुणा-भाग करना पड़ता है ! तो लाखों-करोड़ों मीलों का फैसला तय करने में कितनी सावधनियां, एहतियात, पूर्वोपाय व पुर्वोधान करने पड़ते होंगे, उसकी तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! माना कि वह ईश्वर है ! सक्षम है ! उसके लिए कुछ भी असंभव या अप्राप्य नहीं है ! पर वे भी मर्यादित हैं ! प्रकृति भी उन्हीं की बनाई हुई है ! कायनात के नियम-कानून भी उन्हीं ने तय किए हैं ! तो फिर वे भी उसी के अनुसार ही चलते होंगे !


रामावतार को ही देखें ! यदि रावण वध ही एकमात्र ध्येय होता तो उस समय बहुत से पराक्रमी, महाबली, दुर्धर्ष महावीर योद्धा धरती पर विद्यमान थे ! राजा बलि, सहस्त्रार्जुन, किष्किंधा नरेश बाली तो उसे हरा कर जीवनदान भी दे चुके थे ! इनके अलावा  भगवान परशुराम और हनुमान भी थे जो रावण पर भारी पड़ते थे ! पर यदि ध्यान से प्रभु के धरा पर गुजरे समय का मनन किया जाए तो रावण और उसके साथियों के वध के अलावा अनगिनत ऐसे कार्य संपन्न हुए जिनका परिमार्जन सिर्फ प्रभु द्वारा ही संभव था ! चाहे वह दशरथ जी या अहिल्या को श्राप मुक्त करना हो ! चाहे शबरी का इंतजार खत्म करना हो ! चाहे बाली का उद्धार करना हो ! चाहे सम्पाती और जटाऊ की मुक्ति हो ! चाहे केवट और रीछ-वानरों का सहयोग ले समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का समापन हो ! चाहे दो विभिन्न संस्कृति के देशों में आपसी भाईचारा और सांमजस्य स्थापित करना हो ! चाहे हनुमानजी और विभीषण के जीवन को सार्थकता प्रदान करनी हो या फिर संसार को पिता-माता के आदर और भातृ प्रेम का संदेश देना हो ! राम ना आते तो कैसे यह सब पूरा होता ! ये मेरे अपने विचार हैं कि वर्षों-वर्ष में घटने वाली छोटी-बड़ी घटनाऐं, उनके परिणाम, उनके द्वारा उत्पन्न परिस्थितियां सब एकजुट एक बहुत बड़ा कारण बन जाती हैं, प्रभु के अवतरण का !

पता नहीं मैं अपनी बात और विचार कहां तक स्पष्ट कर पाया हूँ ! पर जब धरती पर परिस्थितियां अत्यंत जटिल, बेकाबू और प्राणिमात्र के लिए घातक हो उठती हैं ! अभिमान, घमंड, लोभ, भ्रष्टाचार की अति के साथ हैवानियत अपने चरम पर पहुंच जाती है ! मनुष्य खुद को ही भगवान समझने लगता है ! तब धरा का संतुलन बनाए रखने और साथ ही पुण्यात्माओं-धर्मात्माओं को लंबित न्याय दिलाने, उनके कष्टों का परिमार्जन करने हेतु सर्वशक्तिमान को इस धरा पर अवतार लेने के लिए कुछ पलों का समय निकालना ही पड़ता है ! 

17 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

Kadam Sharma ने कहा…

बहुत ही अद्भुत जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार, कदम जी

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही विचारणीय लेख
सही में कल्पना कर रही हूँ उस अकल्पनीय घड़ी की जब भगवान को यहाँ अवतरित होना पड़ता है सही कहा इतना आसान भी नहीं...
बहुत ही लाजवाब लेख।

अनीता सैनी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
दूसरों के दुख हरने के लिए अवतरित होने पर उन्हें खुद कितनी परेशानियों का सामना करना पडा! अवतरण का सारा समय कष्टों में ही गुजरा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार! स्नेह बना रहे

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

यदि ध्यान से प्रभु के धरा पर गुजरे समय का मनन किया जाए तो रावण और उसके साथियों के वध के अलावा अनगिनत ऐसे कार्य संपन्न हुए जिनका परिमार्जन सिर्फ प्रभु द्वारा ही संभव था ! चाहे वह दशरथ जी या अहिल्या को श्राप मुक्त करना हो ! चाहे शबरी का इंतजार खत्म करना हो ! चाहे बाली का उद्धार करना हो ! चाहे सम्पाती और जटाऊ की मुक्ति हो ! चाहे केवट और रीछ-वानरों का सहयोग ले समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का समापन हो ! चाहे दो विभिन्न संस्कृति के देशों में आपसी भाईचारा और सांमजस्य स्थापित करना हो ! चाहे हनुमानजी और विभीषण के जीवन को सार्थकता प्रदान करनी हो या फिर संसार को पिता-माता के आदर और भातृ प्रेम का संदेश देना हो ! राम ना आते तो कैसे यह सब पूरा होता.. ये कितने प्रासंगिक उदाहरण है, भगवान के पृथ्वी पर अवतरण के, बहुत सुंदर आलेख लिखा है आपने। बहुत बधाई आपको।

मन की वीणा ने कहा…

पर यदि ध्यान से प्रभु के धरा पर गुजरे समय का मनन किया जाए तो रावण और उसके साथियों के वध के अलावा अनगिनत ऐसे कार्य संपन्न हुए जिनका परिमार्जन सिर्फ प्रभु द्वारा ही संभव था ! चाहे वह दशरथ जी या अहिल्या को श्राप मुक्त करना हो ! चाहे शबरी का इंतजार खत्म करना हो ! चाहे बाली का उद्धार करना हो ! चाहे सम्पाती और जटाऊ की मुक्ति हो ! चाहे केवट और रीछ-वानरों का सहयोग ले समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव का समापन हो ! चाहे दो विभिन्न संस्कृति के देशों में आपसी भाईचारा और सांमजस्य स्थापित करना हो ! चाहे हनुमानजी और विभीषण के जीवन को सार्थकता प्रदान करनी हो या फिर संसार को पिता-माता के आदर और भातृ प्रेम का संदेश देना हो ! राम ना आते तो कैसे यह सब पूरा होता ! ये मेरे अपने विचार हैं कि वर्षों-वर्ष में घटने वाली छोटी-बड़ी घटनाऐं, उनके परिणाम, उनके द्वारा उत्पन्न परिस्थितियां सब एकजुट एक बहुत बड़ा कारण बन जाती हैं प्रभु के अवतरण की !
👆
इन पंक्तियों में आपने प्रभु अवतरण की जो व्याख्या की है वो गहन सोच से उत्पन्न परिणाम है सुंदर और माननीय बहुत सुंदर विचार और व्याख्या।

अंतिम पहरे में बताई स्थिति आज व्याप्त दिखती है,
उस हिसाब से अब प्रभु को आना होगा अगर नहीं उत्पन्न हुई हो तो सोचिए उस समय प्रभु को आना पड़ा था तो कितनी भयावह स्थितियां बनी होगी,या फिर दूसरे घटक भी काफी महत्वपूर्ण रहे थे।
बहुत शानदार पोस्ट 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
उत्साहवर्धन हेतु अनेकानेक धन्यवाद

Amrita Tanmay ने कहा…

आपने जो भरोसा दिलाया है उसपर अटूट श्रद्धा है । जो आज की आवश्यकता भी है ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अमृता जी
सदा स्वागत है आपका

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सराहनीय लेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, आलोक जी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आप अपनी बात को सफलता पूर्ण रह रहे हैं ... सबके समझ भी आती है और सत्य भी है ...
अवतार विशेष अवस्था, काल, खंड, परिस्थिति अनुसार ही आते हैं और कायाकल्प कर के चले जाते हैं ... आम इंसान शायद समझ भी नहीं पाता कई बार ...
गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
सदा स्वागत है आपका ।
पर एक बला है "ठेस" जिसका पता नहीं, कब और किसको लग जाए 😊

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