सोमवार, 20 सितंबर 2021

गुब्बारेवाला

इन्हीं दिनों एक बार फिर श्री रविंद्रनाथ टैगोर की कालजयी कृति ''काबुलीवाला'' पढ़ते हुए विचार आया कि यदि वह घटना आज घटी होती, तो रहमत खान जेल से छूटने पर आज जैसी विषम परिस्थितियों में  अफगानिस्तान कैसे जा पाता ! अपने वतन ना लौट पाने की मजबूरी में उस जेलयाफ्ता को कहां शरण मिलती ! कौन उसे पनाह देता ! उसी महान रचना ''काबुलीवाला'' से प्रेरित है यह अदना सा प्रयास "गुब्बारेवाला"! एक भावनात्मक आदरांजलि आदरणीय गुरुदेव को  

#हिन्दी_ब्लागिंग

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बाबा ! बेलून  !"   

बाजे जिनिश ! आमरा बॉल निए खेलबो !"

ना ss ! आमाके बेलून चाई  !"

विजय बाबू, शहर के नामी-गिरामी बड़े वकील, अपनी पांच वर्षीय बिटिया मिनी के साथ शाम को टहलने निकले थे। वहीं पार्क गेट के सामने ही एक गुब्बारेवाला अपनी रेहड़ी पर गैस सिलिंडर और उस पर धागे से बंधे हवा में लहराते गैस भरे तरह-तरह के रंगीन गुब्बारों को बेचते खड़ा था। नन्हीं मिनी उन्हीं रंग-बिरंगे गुब्बारों को लेने के लिए मचल रही थी ! बिटिया की मांग पूरी होनी ही थी, हुई। मिनी अपने दोनों हाथों में एक-एक गुब्बारा पकडे उछलते-कूदते घर की ओर दौड़ पड़ी, माँ को जो दिखलानी थी यह अद्भुत चीज ! पर घर के दरवाजे तक पहुंचने के पहले ही पता नहीं कैसे, दोनों गुब्बारे नन्हें हाथों की कोमल सी गिरफ्त से फिसल ऊपर आकाश की तरफ जा आखों से ओझल हो गए ! रुआंसी मिनी सर उठाए, उन्हें तकते, वहीं जड़ हो खड़ी रह गई ! सारा उल्लास-उमंग आँसू बन आँखों से ढलकने लगा ! कल फिर दिलाएंगे, का दिलासा दे बड़ी मुश्किल से विजय बाबू उसे घर के अंदर ला सके ! 

फिर तो यह एक तरह से रोज की ही दिनचर्या बन गई ! शाम होते ही मिनी गुब्बारों के किए मचल उठती। पर अब गुब्बारे ले उनसे खेलने की बजाए उन्हें आकाश में आजाद उड़ते देखना उसका मुख्य शगल बन गया था ! गुब्बारेवाला शम्भू भी अब मिनी को पहचानने लगा था ! यदि काम के बोझ या और किसी कारण विजय बाबू एक-दो दिन टहलने नहीं जा पाते तो वह खुद मिनी को गुब्बारे देने पहुंच जाता और पैसे ना लेने की भी भरसक कोशिश करता ! मिनी में उसे सुदूर बिहार के गांव में माँ के साथ रहती, मिनी की उम्र की अपनी बेटी सुरसतिया की झलक दिखने लगी थी ! 

अस्सी के दशक में बेरोजगारी और भुखमरी से तंग आ, अपनी बीवी परवतिया और बच्ची सरस्वती को गांव में ही छोड़ काम की तलाश में शम्भू कलकत्ता चला आया था। वहां पहले से कार्यरत जान-पहचान के लोगों की मदद से उसे भी एक जूट मील में नौकरी भी  मिल गई थी ! मेहनती बंदा दो-दो पालियों में काम करने लगा ! सोच रखा था कि कुछ पैसा इकट्ठा हो जाने पर सुरसतिया और उसकी माँ को यहीं बुलवा लेगा ! समय निकलता गया पर उसका परिवार के संग रहने का सपना पूरा नहीं हो पाया ! कुछ ना कुछ अड़चन आ ही जाती थी ! इसी बीच पूर्वाग्रही नेताओं, जन विरोधी विचारधाराओं और भ्रष्ट राजनीती के घालमेल के चलते फैक्ट्रियां बंद होने लगीं ! हजारों मजदूर सड़कों पर आ गए ! रहने-खाने का ठिकाना ना रहा ! 

गाज  शम्भू पर भी गिरी ! नौकरी छूटने पर उसने बहुत हाथ-पांव मारे, बहुत कुछ कर के देखा पर सफलता नहीं मिली ! गांव जाने का कोई मतलब ही नहीं था ! वहां ज़रा सा भी उपार्जन हो पाता तो परिवार छोड़ वह शहर ही क्यों आता ! हार कर उसने रिक्शा चलाना शुरू किया ! हालांकि दौड़ती भागती जिंदगी में जल्दी पहुंचने के लिए लोग रिक्शे की बजाए ऑटो को प्राथमिकता देते थे, पर फिर भी हाड-तोड़ मेहनत से किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो ही जाता था ! पर भगवान को शायद शम्भू की निश्चिंतिता भाती ही नहीं थी ! इसी कारण उसकी प्रतिद्वंदिता में ई-रिक्शा ने सड़क पर आ उसकी कमर ही तोड़ दी ! जो बीस-पचास की आमदनी होती भी थी वह भी तक़रीबन बंद हो गई ! रिक्शे का रोज का किराया तक निकलना दूभर हो गया ! लिहाजा यह काम भी छोड़ना पड़ा ! पैसे की आवक बिलकुल ख़त्म हो गई ! एक तो गांव परिवार की चिंता दूसरे यहां खुद की जान की भी फ़िक्र ! शम्भू के लिए जीना मुहाल हो गया ! वह तो बासे में संगी-साथी किसी तरह मिल बांट कर गुजारा कर रहे थे, नहीं तो पता नहीं क्या होता ! 

पर हर रात का सबेरा होता ही है ! शम्भू का एक साथी सड़कों पर गुब्बारे बेचता था वह गांव चला गया और जाते-जाते अपना सारा तामझाम इसे सौंप गया ! धीरे-धीरे जिंदगी मुस्कुराने लगी ! उसी मुस्कराहट को बच्चों के मुख पर कायम रखने के लिए शम्भू ने गुब्बारे बेचने शुरू कर दिए ! हालांकि उपार्जन बहुत कम था पर उसे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान देख लगता था कि उसकी सुरसतिया उसके पास खडी मुस्कुरा रही हो ! ऐसे में ही एक दिन उसके कानों में आवाज पड़ी, बाबा ! आमाके बेलून चाई !'' और उसकी सुरसतिया का स्वरूप जैसे उसके सामने खड़ा था ! शुरू में मिनी उससे दूर-दूर रहा करती थी ! पर धीरे-धीरे उसकी शम्भू के साथ अच्छी पटने लगी ! जब वह अपनी कुछ तुतलाती सी बोली में उसे पुकारती, बेलून वाला" तो शम्भू निहाल हो उठता ! उसके उल्टे-सीधे सवालों का वह भी वैसे ही जवाब देता, तो वह हंसती हुई विजय बाबू को बतलाती, बाबा शोंभू एक्के-बारे बोका, किछु जाने ई ना !'' इधर शम्भू की तो जैसे जिंदगी ही बदल गई थी, मिनी में अपनी सुरसतिया को पा कर वह निहाल हुए जाता था ! परिवार से दूरी का गम कुछ हद तक कम हो चला था ! पर उसे क्या पता था कि उसकी जिंदगी में ऐसा उलटफेर होने वाला है, जिससे सब कुछ तहस-नहस हो जाएगा ! जिंदगी तबाह हो कर रह जाएगी ! 

एक दिन मिनी उससे गुब्बारे ले घर की ओर जा ही रही थी कि एक तेज रफ़्तार कार उसके सर तक आ पहुंची ! शम्भू ने तुरंत बिना देर किए छलांग लगा, मिनी को अपने सीने से चिपटा सड़क पर कलाबाजी खा, उसे सुरक्षित बचा लिया ! मिनी को जरा सी खरोंचें आईं पर  शम्भू कार की जद में आ पीठ, कंधें और सर पर चोट लगवा बैठा ! इतने में कार सामने की दिवार से टकरा कर रुक गई ! चोटिल होने के बावजूद शम्भू ने युवक कार चालक को पकड़ उसकी धुनाई कर दी ! युवक राजाबाजार के बाहुबली का एकलौता बिगड़ैल बेटा था ! एकत्रित भीड़ के सामने एक सामान्य से फेरी वाले से मार खा वह बेहद अपमानित महसूस कर रहा था। आवेग में उसने  पिस्तौल निकाल शम्भू पर तान दी ! इसके पहले की गोली चले  शम्भू ने झपट कर उसे हाथों में उठा पटक दिया ! शम्भू की बदकिस्मती युवक का सर पत्थर से टकरा कर तरबूज की तरह खुल गया, उसने वहीं दम तोड़ दिया। 

डरी, सहमी, सदमे में घिरी मिनी को गोद में उठा शम्भू ने उसके घर पहुंचाया और फिर थाने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया ! विजय बाबू ने बाहुबली के रसूख की परवाह किए बगैर  शम्भू का केस लड़ा ! कई दिनों तक जिरह चली ! तरह- तरह के प्रमाण पेश किए गए, पर अपनी लाड़ली बिटिया की जान बचाने वाले को विजय बाबू आजीवन कारावास की सजा से ना बचा पाए !  बीस साल के लिए शम्भू को अलीपुर जेल भेज दिया गया ! विजय बाबू के मन में यह अपराध बोध घर कर गया कि उनकी बेटी के कारण एक सीधे-साधे इंसान को इतनी बड़ी सजा भोगनी पड़ रही है !

समय अपनी चाल चलता रहा ! विजय बाबू की सहधर्मिणी निर्मला देवी का देहावसान हो गया उसके बाद से ही उन्होंने ने भी कोर्ट-कचहरी जाना बहुत कम कर दिया ! अब वे कुछ चुनिंदा केस ही हाथ में लेते थे ! मिनी पढ़-लिख कर बैंगलोर की एक कंपनी में, वहीं रह कर इंटर्नशिप करने लग गयी थी ! विजय बाबू और घर की सारी जिम्मेदारी अब पुराने घरेलू सहायक भोला काका पर आ पड़ी थी । मिनी तक़रीबन रोज ही विडिओ कॉल कर अपने बाबा के हाल की जानकारी ले भोला काका को जरुरी हिदायतें देती रहती थी ! 

एक दिन ढलती दोपहर में मुख्य द्वार की घंटी बजी ! इस समय कौन हो सकता है, ऐसा सोचते हुए भोला काका ने दरवाजा खोला तो सामने एक अजनबी को ऑटो रिक्शा में बैठे पाया ! उस आदमी ने एक कागज़ का टुकड़ा भोला काका की तरफ बढ़ाया, जिसमे इसी जगह और घर का पता लिखा हुआ था ! कुछ समझ ना पाने की दशा में भोला काका ने विजय बाबू को खबर की ! विजय बाबू बाहर आए, दो क्षण अजनबी को देखा और बोल पड़े, अरे शम्भू तुम !'' आओ, आओ !''

तब तक भोला काका के मष्तिष्क पर से भी अठ्ठारह साल की जमी धुंध छंट गई थी और चेहरे पर पहचान के भाव आ गए थे ! शम्भू को सहारा दे कर अंदर ले आया गया ! कुछ देर बाद प्रकृतिस्थ हो जाने के बाद शम्भू ने जो आपबीती सुनाई वह किसी का भी दिल दहला देने के लिए काफी थी ! गांव में किसी तरह मेहनत-मजदूरी कर दिन गुजारती उसकी पत्नी और बेटी पर कुदरत का कहर टूटा ! कोरोना की चपेट में आ दोनों शम्भू से सदा के लिए दूर चली गईं ! इतना ही नहीं इस बार की भयकंर बाढ़ ने पूरे इलाके को जलमग्न कर दिया ! बाढ़ की विकराल लहरों ने उसके झोपड़ीनुमा घर को मटियामेट कर डाला ! जो थोड़ी बहुत जमीन थी वह पानी से बर्बाद हो गई ! किसी भी चीज का नामोनिशान तक नहीं बचा ! 

अच्छे चालचलन और नेक व्यवहार के चलते शम्भू की सजा के दो साल कम कर उसे रिहा कर दिया गया ! पर रिहा होने के बाद वह कहां जाए, क्या करे, उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ! इस महानगर में इतने साल गुजारने के उपरांत भी वह अभी भी अजनबी सा ही था ! ना किसी से जान-पहचान, ना दोस्ती ना संबंध ! बिलकुल अकेला ! केस के चलते उसे सिर्फ विजय बाबू का नाम और पता मालुम था ! सो संकोच और झिझक के बावजूद वह यहां चला आया ! इसके अलावा और कोई उपाय या रास्ता भी तो नहीं था, उसके पास ! अब जैसा वे कहें, राह दिखाएं, सलाह दें, वैसा ही वह करेगा ! विजय बाबू सर झुका, गहन चिंता में डूब, गंभीर हो गए ! सोच रहे थे, एक भले और नेक इंसान को भगवान एक के बाद एक लगातार इतने सारे कष्ट क्यूँ देता चला जा रहा है ! किसी की भलाई करने का बदला भी दंडस्वरूप मिला ! किसी की बेटी की जान बचाई तो अपना परिवार खो दिया ! किसी उदण्ड का विरोध किया तो सजा हो गई ! पूरी जिंदगी अपनों से दूर, काल कोठरी में रहने को बाध्य होना पड़ा ! हे ईश्वर ! यह तेरा कैसा न्याय है !  

कुछ देर के चिंतन के पाश्चात्य विजय बाबू ने अपना सर उठाया ! भोला और शम्भू की तरफ देखा ! फिर धीर-गंभीर स्वर में अपना फैसला सुना दिया, आज से शम्भू इसी घर में रहेगा, ताउम्र, परिवार का सदस्य बन कर ! इस पर कोई ना-नुकुर नहीं ! कोई सवाल-जवाब नहीं ! यह मेरा एकमात्र और अंतिम फैसला है ! यह सुन शम्भू जरूर कुछ सकुचाया सा दिख रहा था पर भोला काका ने तुरंत उसका नहीं के बराबर जो कुछ भी असबाब था, एक कमरे में ले जा कर रख दिया ! शम्भू को मुंह-हाथ धोने के लिए भेज, विजय बाबू ने भोला काका को हिदायत दी कि इस बारे में अभी मिनी को कुछ भी ना बतलाया जाए ! 

विजय बाबू वर्षों से दिल पर जो एक बोझ लिए सदा तनावग्रस्त रहते हुए दिन बिता रहे थे ! उन्हें यही लगता था कि शम्भू उनकी बेटी के कारण जेल भुगत रहा है ! कहीं ना कहीं उसकी सजा में वे खुद को दोषी पाते थे ! पर कुछ ना कर पाने की स्थिति में उन्होंने अकेलापन ओढ़ लिया था ! भोला काका से भी सिर्फ मतलब और जरुरत भर की ही बात होती थी ! पूरे समय घर में चुप्पी ही पसरी रहती थी ! पर शम्भू के आ जाने से घर में थोड़ी जीवंतता आ गई थी ! विजय बाबू और भोला को भी एक और बात करने वाला मिल गया था ! आपस में बातचीत होने से घर का माहौल भी खुशनुमा रहने लगा था ! विजय बाबू को लगता था जैसे उनके दिलो-दिमाग से कोई भारी बोझ उतर ! अपने में फर्क महसूस होने लगा था ! अब वे घर में बातचीत में तो शामिल होते ही थे शाम को शम्भू को साथ ले टहलने भी जाने लगे थे ! उधर मिनी इन सब घटनाओं से अनजान काम की अत्यधिक व्यस्तता के कारण घर नहीं आ पा रही थी !   

समय के पास तो कभी अपने लिए भी समय नहीं होता ! ऐसे ही दिन-हफ्ते-महीने बीतते चले गए ! और देखते-देखते दुर्गोत्सव का पर्व आ पहुंचा ! मिनी का भी संदेश आ गया था कि तीन दिन बाद वह छुट्टियों में घर आ रही है ! एक बार तो विजय बाबू आने वाले घटना चक्र का अंदाजा लगा सोच में पड़ गए ! पर अगले ही क्षण उन्होंने सब कुछ ''माँ'' पर छोड़ दिया !  जैसी जगत्जननी की इच्छा ! वह जैसा चाहेगी वैसा ही होगा ! जैसे रखना चाहेगी वैसे ही रहेंगे ! 

निश्चित दिन मिनी का आगमन हुआ ! प्रभुएच्छा से घर के अंदर आते ही उसका सामना शम्भू से हो गया ! पहले उसने सोचा बाजार से कोई कुछ देने आया होगा ! पर उसे वही बने रहे देख, उसने विजय बाबू से पूछा, बाबा ये कौन ?'' विजय बाबू बोले, बाहर से आई हो, पहले नहा-धो कर फ्रेश हो जाओ ! फिर डाइनिंग टेबल पर बैठ इत्मीनान से सब कुछ बताता हूँ !''

मिनी अंदर चली तो गई पर उसे गुस्सा आ रहा था कि उसके दरियादिल बाबा पता नहीं किस ऐरे-गैरे को घर ले आए हैं ! भोला काका को कितना समझाया था ! पर वह कुछ नहीं बोले ! मुझे बताया तक नहीं ! देखती हूँ उनको भी ! पता नहीं किस दुनिया में जीते हैं ये लोग ! आज का समय क्या किसी पर विश्वास करने है ! कोई कुछ भी कर चलता बना रह सकता है ! इन्हें तो समझ ही नहीं है ! इसी उधेड़बुन में नहा कर वापस आ देखा तो वही अजनबी ममत्व, वात्सल्य, स्नेहिल निगाहों से उसे तकता बाबा के साथ ही बैठा हुआ था ! एक बार तो मिनी का पारा एकदम चढ़ गया पर फिर उसने किसी तरह अपने पर काबू पा जिज्ञासा और जवाब तलब करने वाली निगाहों से अपने बाबा को देखा ! 

विजय बाबू बोले, आओ, बैठो ! यह शम्भू काका हैं !  प्रणाम करो !''

ना चाहते हुए भी मिनी ने हाथ जोड़ प्रणाम किया ! शम्भू ने आशीर्वाद दिया ! लम्बी उम्र की आशीष दी ! विजय बाबू बोले परिचय कहां से शुरू करुं, समझ नहीं आ रहा ! अच्छा बेटा ! तुम्हें अपने बचपन में किसी गुब्बारे वाले की याद है ?'' मिनी अंदर से कुछ चिढ सी गई, उसे लगा बाबा बात घुमाने की कोशिश कर रहे हैं ! पर प्रत्यक्ष में बोली, मुझे कुछ याद नहीं है !'' 

विजय बाबू ने गहरी सांस ली और धाराप्रवाह अठ्ठारह सालों का सारा विवरण मिनी को सुना दिया ! कथा के आज वर्तमान तक आते-आते विजय बाबू का गला रुंध गया था ! कमरे में पूरी तरह खामोशी फैली हुई थी ! चारों प्राणियों की आँखों से अविरल अश्रु धारा बहे चली जा रही थी ! पता नहीं कितनी देर ऐसे ही सब बैठे रहे ! फिर मिनी उठी और शम्भू काका के पैरों में झुक गई ! शम्भू अचकचा कर उठ खड़ा हुआ, बोला, ना बिटिया ना ! हमारी तरफ बेटी से पांव नहीं झुवाते !''  फिर मिनी के सर पर हाथ फेरते हुए असंख्य आशीषें दे डालीं ! 

छुट्टियों के बाद काम पर लौटते समय मिनी निश्चिन्त थी, अपने बाबा की तरफ से ! उसे इत्मीनान हो गया था कि उसके घर पर ना रहने पर भी बाबा की देख-भाल के लिए उनके एक बड़े भाई को भगवान ने शम्भू के रूप में भेज दिया है !

21 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सच निस्वार्थ और निष्कपट प्यार देर से ही सही लेकिन सबको एक दिन समझ आ ही जाता है और जब समझ आता है तब लगता है सुकून भरी खुशियां घर लौट आई हो जैसे
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कहानी

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी
बहुत-बहुत आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
अनेकानेक धन्यवाद

yashoda Agrawal ने कहा…

रुला दिया आपकी इस रचना ने
आभार
सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक थन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
इससे बडा पारितोषिक इस रचना के लिए और कुछ नहीं हो सकता!आपकी इस टिप्पणी ने मेरी आंखें नम कर दीं!

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-9-21) को "बचपन की सैर पर हैं आप"(चर्चा अंक-4194) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा




Sweta sinha ने कहा…

अच्छे कर्म और निःस्वार्थ प्रेम अपनी खुशबू सदा बिखेरते है।
अत्यंत भावपूर्ण कहानी सर। बहुत अच्छी लगी।
सादर।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

गहनतम लेखन, ऐसे आलेख हमें ठिठक जाने पर विवश करते हैं। मन ठहर गया। बहुत अच्छा लिखा है आपने आदरणीय शर्मा जी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह कहानी पढ़ते हुए बार बार " काबुली वाला " कहानी याद आती रही ।
मर्मस्पर्शी कहानी । मन भीग गया ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संदीप जी
आपने अभिभूत कर रख दिया। हार्दिक आभार आपका

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
अनेकानेक धन्यवाद। उसी पर आधारित गुरुदेव को आदरांजलि है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
बहुत अच्छा लग रहा है आपको फिर व्यस्त देख।
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर जज्बातों भरी कहानी,मन को छू गई इतनी सुंदर कहानी के सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई।

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

मर्मस्पर्शी कहानी ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुनीता जी
सदा स्वागत है आपका

Kadam Sharma ने कहा…

अंतर्मन, को छू गई। सुखद अंत के लिए आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनेकानेक धन्यवाद, कदम जी

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