आज देश की राजनीती में सक्रिय अधिकांश लोग, अपना क्षेत्र छोड़ किसी दूसरे प्रदेश में चले जाएं तो उनको कोई पहचाने ही ना ! उन लोगों को भी यह सच्चाई अच्छी तरह पता है, इसीलिये वे लाइमलाईट में, लोगों के जेहन में बने रहने के लिए, कुछ भी करने-बोलने में हिचकते नहीं ! अपनी दुकान चलाते रहने के लिए वे कुछ भी बेचने को तैयार रहते हैं ! भले ही इसके लिए कितनी भी लानत-मलानत क्यों ना हो जाए..............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
यदि कोई दिग्भ्रमित व्यक्ति आदतन अनर्गल बकवास करता है तो उस पर बिल्कुल ध्यान ना दे नजरंदाज कर देना चाहिए ! Just ignore ! सिर्फ इतना करते ही उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। इसके विपरीत उस पर तवज्जो या उसके कहे पर ध्यान देते ही, हाशिए पर समेट दिए गए ऐसे लोगों का मकसद पूरा हो जाता है ! अनगिनत बार यह देखा जा चुका है कि ऐसे घाघ कुछ भी बकवासी वायदा करते समय ये अच्छी तरह जानते हैं कि वैसा कुछ कभी होने वाला नहीं है ! पर यह जरूर सुनिश्चित कर लेते हैं कि उस समय वे विदेशी कवरेज में जरूर हों ! खुद को चर्चित बनाने के पीछे उनके एक भय और आशंका का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, उन्हें अच्छी तरह मालुम है कि एक हरिबोल के बाद ना उनकी कोई औकात रहेगी नाहीं उनका कोई नामलेवा ! इसीलिए बिन पानी की मछली की तरह तड़फड़ाते रहते हैं !
इनको ख़त्म करने का सरल सा उपाय है, इनकी उपेक्षा ! जैसे सर्दी जुकाम का कोई इलाज नहीं है, पर उस पर ध्यान ना दे, सिर्फ शरीर को आराम देने से उसके कीटाणु नष्ट हो जाते हैं ठीक उसी तरह इनके क्रिया-कलापों-बतौलेबाजी को अनदेखा-अनसुना कर इनसे छुटकारा पाया जा सकता है
एक बार गायक सोनू निगम ने खुद को जांचने के लिए, अपनी लोकप्रियता का आंकलन करने के लिए, बिना किसी को अपनी पहचान बताए, सडक किनारे बैठ चार-पांच घंटे अपने गाने गाए तो राहचलतों द्वारा इस दौरान उन्हें सिर्फ 13 रुपये मिले थे। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि यदि कोई तामझाम न हो, किसी का हाथ न हो, गाॅड फादर न हो, हो-हल्ला ना हो तो लोग ध्यान ही नहीं देते, पहचानते ही नहीं !
आज देश की राजनीती में सक्रिय अधिकांश लोग, अपना क्षेत्र छोड़ किसी दूसरे प्रदेश में चले जाएं तो उनको कोई पहचाने ही ना ! उन लोगों को भी यह सच्चाई अच्छी तरह पता है, इसीलिये वे लाइमलाईट में, लोगों के जेहन में बने रहने के लिए, कुछ भी करने-बोलने में हिचकते नहीं ! अपनी दुकान चलाते रहने के लिए वे कुछ भी बेचने को तैयार रहते हैं ! भले ही इसके लिए कितनी भी लानत-मलानत क्यों ना हो जाए ! इनको देश, समाज या देशवासियों से कोई मतलब नहीं होता इनका ध्येय सिर्फ खुद का हित होता है ! इनकी सत्तालोलुपता इनसे कुछ भी करवाने में सफल रहती है ! इनको ख़त्म करने का सरल सा उपाय है, इनकी पूरी तरह उपेक्षा ! जैसे सर्दी-जुकाम का कोई इलाज नहीं है, पर उस पर ध्यानं ना दे सिर्फ शरीर को आराम देने से उस रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं, ठीक उसी तरह इन जरासीमों के क्रियाकलाप और बतौलेबाजी को पूरी तरह नजरंदाज कर इनके मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है। बाकी ऊपर बैठा ''वो'' तो सब देख ही रहा है ! हमें तो उसके देर से ही सही पर होने वाले न्याय का इन्तजार है।
14 टिप्पणियां:
लेकिन होता नहीं है। ध्यान आकर्षित करने के लिये बकवास करनी ही पडती है :) :) और इसी में जनता फ़ंस जाती है।
सुशील जी,
वही तो ! बकौल परसाई जी, यह जानते हुए भी कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूँ और मुझे जो बताया जा रहा है, वह सब झूठ है ! फिर भी बेवकूफ बनने का एक अलग ही मजा है !''
और लोग मजे ले रहे हैं :-)
बहुत सही बात कही है आपने, आज के समय में जो तामझाम में दिखता है,वही बिकता है।सादर शुभकामनाएँ ।
जिज्ञासा जी
स्वागत है आपका!
पर संदर्भ एक गैरजिम्मेदार तथाकथित नेता के गैरजिम्मेदाराना बयान का था
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (13-06-2021 ) को 'मिट्टी की भीनी खुशबू आई' (चर्चा अंक 4094) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रवीन्द्र जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार
सही है सर । इनको ख़त्म करने का सरल सा उपाय है, इनकी उपेक्षा !
दीपक जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
Bahut khudgrj log raajniti me Aa gae hain
कदम जी
यही विडंबना है आज की
"इन जरासीमों के क्रियाकलाप और बतौलेबाजी को पूरी तरह नजरंदाज कर इनके मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है। "
बिल्कुल सही कहा आपने,पर जिन्हे सिर्फ मजे लेने से मतलब है जो नहीं समझते कि -हमारा मजा लेना कितना नकारत्मक फैला रहा है उनका क्या करें। आजकल तो सोशल मिडिया पर भी इसकी भरमार हो गई है,लोग मजे लेने के लिए मजाक बनाने के लिए वीडियो देखते है और बंदा पॉपुलर हो जाता है तो खुद को तीसमारखाँ समझने लगता है और यहां मजे-मजे के चककर में असली टेलेंट मात खा जाता है। सिर्फ राजनीति का ही नहीं हर क्षेत्र में यही हाल है। हमें क्या सुनना चाहिए या क्यों सुनना चाहिए इस पर विचार करना जरूरी है।,बहुत ही सुंदर आलेख,सादर नमन आपको
कामिनी जी
पूरी तरह सहमत हूँ। पर कुछ भी, कोई भी पहल करते ही उसके विरोध में आवाज उठाना भी फैशन सा बन गया है !
भ्रामक विज्ञापनों की पोल खोलता बहुत सुंदर आलेख, गगन भाई।
हार्दिक आभार, ज्योति जी
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