क्या आप भी बिस्कुट को चाय में डुबो कर खाते हैं
कोई चाहे कुछ भी कहे ! पर बिस्कुट को चाय में भिगो कर खाने का मजा कुछ और ही है ! पर इस काम में "टाइमिंग" बहुत मायने रखती है, जो बिस्कुट के आकार-प्रकार, चाय (दूध या कॉफी) की गर्माहट, कप की मुंह से दूरी आदि से तालमेल बिठा कर तय होती है। जहां ग्लूकोज़ बिस्कुट, केक-रस्क या बेकरी के उत्पादों के भिगोने का समय अलग होता है, वहीं "मैरी, थिन-अरारोट या क्रीमक्रैकर'' जैसे बिस्कुटों का कुछ अलग। यह पूरा मामला स्वाद का है ! यदि बिस्कुट पूरा ना भीगे तो उसमें वह लज्जत नहीं आ पाती जिसका रसास्वादन करने को जीभ लालायित रहती है और कहीं ज्यादा भीग जाए तो फिर वह प्याले में डुबकी लगाने से बाज नहीं आता.........!!
हमारी कई ऐसी नैसर्गिक खूबियां हैं, जो बेहतरीन कला होने के बावजूद किसी इनीज-मिनीज-गिनीज रेकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पाई हैं। ऐसा नहीं होने का कारण यह भी है कि इस ओर हमने कभी कोई कोशिश या दावा ही नहीं किया है ! ऐसी ही एक नायाब कला है, बिस्कुट को चाय में डुबो, बिना गिराए मुंह तक ले आ कर खाने की ! सुनने-दिखने में बेहद मामूली सा यह काम उतना आसान नहीं है, जितना लगता है। इस सारी प्रक्रिया में बेहद तन्मयता, एकाग्रता, विशेषज्ञता और कारीगरी की जरुरत होती है। यह अपने आप में एक विज्ञान है ! इसके पीछे पूरा एक गणित काम करता है ! हम ऐवंई नहीं गणित में जगतगुरु बन गए थे ! पर चूँकि हमारे यहां और हमारे लिए यह एक आम बात है तथा हम इसे बिना किसी विशेष प्रयास के सरलता से अंजाम दे देते हैं, इसलिए इसे बच्चों का खेल समझ इसकी पेचीदगी की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। पर अपने-आप को मॉडर्न समझने वाले या नीम-विदेशी इसे चाहे कितनी भी हिकारत की नज़र से देखें, उससे इस विज्ञान की अहमियत कम नहीं हो जाती।
वैसे इस काम में "टाइमिंग" बहुत मायने रखती है ! जो बिस्कुट के आकार-प्रकार, चाय (दूध या कॉफी) की गर्माहट, कप की मुंह से दूरी आदि से तालमेल बिठा कर तय होती है। जहां ग्लूकोज़ बिस्कुट, केक-रस्क या ''बेकरी'' के उत्पादों को भिगोने का समय अलग होता है, वहीं "मैरी, थिन-अरारोट या क्रीम-क्रैकर जैसे बिस्कुटों का कुछ अलग। यह नैसर्गिक कला हमें विरासत में मिलती चली आई है। पहले बिस्कुटों की इतनी विभिन्न श्रेणियाँ नही होती थीं । परन्तु तरह-तरह के बिस्कुट, केक, रस्क या टोस्ट के बाजार में आ जाने के बावजूद हमें कोई दिक्कत पेश नहीं आई है। हमारी प्राकृतिक सूझ-बूझ ने सब के साथ अपनी "टाइमिंग" सेट कर ली है।
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