आज जरुरत है अपने आस-पास के पर्यावरण के साथ-साथ उसमें रहने-पलने वाले छोटे-छोटे जीवों का भी ख्याल-ध्यान रखने की ! इसके लिए सरकारों का मुंह ना जोहते हुए हर नागरिक को यथाशक्ति, यथासंभव खुद ही कुछ ना कुछ प्रयास करने होंगे ! कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन नीले से धूसर होता जा रहा नभ, नभचर विहीन भी हो कर रह जाए.........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
याद कर देखिए ! कितने दिन हो गए आपको सुबह-सुबह गौरैया का मधुर कलरव सुने ! कितना वक्त बीत गया उसे घर के आँगन, बाल्कनी, छत या किसी मुंडेर पर कुछ चुगते, फुदकते देखे ! अंतिम बार कब उसके चहकने से सकारात्मकता का आभास हुआ था ! कब उनको घर में मंडराते देख सकून सा मिला था ! कब घर की छत के किसी कोने में बने घरौंदे से गिरे उसके नवजात को उठा कर वापस घोंसले में रखने पर एक अनुपम अनुभूति हुई थी ! कब संध्या समय उनके झुंड को बिजली के खंभों की तारों पर कतारबद्ध पंचायत करते देखा था ! नहीं बता पाएंगे ! क्योंकि यह छोटा सा घरेलू जीव धीरे-धीरे, हमारी ही बेरुखी, संवेदनहीनता और अप्राकृतिक रहन-सहन के कारण हमसे दूर होने पर मजबूर होता जा रहा है !
परसों, 20 मार्च, विश्व गौरैया दिवस था ! ऐसे ही और संरक्षित दिनों की तरह ही इस दिन भी बाकि सब कुछ हुआ, सिर्फ इस नन्हीं सी जान की फ़िक्र के अलावा ! पक्षी प्रेमियों के अतिरिक्त और लोगों को तो शायद ही इस दिवस के बारे में पता भी हो ! मानव-मित्र यह घरेलु पक्षी इंसानी रिहाइशों के आस-पास ही रहना पसंद करता है। सुनसान-निर्जन घरों में यह अपना बसेरा नहीं बनाता। परंतु हमारी बदलती जीवन शैली, घटती हरियाली, घरों की बढ़ती ऊंचाइयों ने इसे हमसे दूर कर दिया है। ज्ञातव्य है कि इस नन्हें परिंदे की उड़ने की क्षमता सिर्फ 20 मीटर की ऊंचाई तक ही सिमित है, जो शहरों के आकाश छूते आधुनिक आवासीय निर्माणों के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है ! गांवों-कस्बों में तो यह अब भी दिख जाती है पर महानगरों में तो यह प्राय: लुप्तप्राय ही है !
इसकी घटती तादाद का एक मुख्य कारण कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग भी है ! जिससे पतले-छोटे कीट, जो इसका और इसके बच्चों का मुख्य आहार है, इसे नहीं मिल पाते ! इसको अक्सर धूल में लोटते भी देखा जाता है, जिससे यह धूल-स्नान कर अपने पंखों को साफ़-सुथरा, कीटाणु विहीन बनाए रखती है ! पर बढ़ते कंक्रीटीकरण से इसके ऐसा ना कर पाने की वजह से इसके रोगग्रस्त हो जाने का ख़तरा भी बढ़ गया है। शहरों में इसे रहने के साथ-साथ खाने के लिए भी जूझना पड़ता है क्योंकि मिटटी के अभाव में उसमें पैदा होने वाले कीड़े वगैरह इसे नहीं मिल पाते। यही कारण है कि अब यह शहरों से दूर होती जा रही है। अभी कुछ ही साल पहले दिल्ली में हमारे आवास पर इसकी अच्छी खासी संख्या हुआ करती थी, पर अब तो भूले-भटके भी नजर नहीं आती !
सिर्फ छोटे कीट और बीजों पर निर्भर रहने वाली यह औसत पांच-छह इंच की 30-35 ग्राम वजन की छोटी सी भूरे से रंग की चिड़िया, जिसमें खुद को परिस्थियों के अनुकूल ढल जाने की क्षमता होने के बावजूद, उसकी तादाद भारत में ही नहीं इटली, फ़्रांस, जर्मनी, इग्लैंड जैसे बड़े और विकसित यूरोपीय देशों में भी लगातार कम होती जा रही है। नीदरलैंड में तो इसे पहले ही दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में रख दिया गया है। देखा जाए तो इसको बचाने के अभी तक के सारे प्रयास विफल ही रहे हैं ! केवल 20 मार्च को इसे याद भर कर लेने या राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का राजकीय पक्षी होने से ही इसका कोई भला नहीं होने वाला !
आज जरुरत है अपने आस-पास के पर्यावरण के साथ-साथ उसमें रहने-पलने वाले छोटे-छोटे जीवों का भी ख्याल-ध्यान रखने की ! यदि हम शेर-बाघ-गिद्ध-कौवे की चिंता करते हैं तो हमें गौरैया जैसे छोटे जीवों का भी ध्यान रखना होगा ! इसके लिए सरकारों का मुंह ना जोहते हुए हर नागरिक को यथाशक्ति, यथासंभव खुद ही कुछ ना कुछ प्रयास करने होंगे ! कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन नीले से धूसर होता जा रहा नभ, नभचर विहीन भी हो कर रह जाए !
@ चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
37 टिप्पणियां:
जी सर, सही कहा आपने
गौरेया संरक्षण पर चिंतन के लिए किसी विशेष दिन की नहीं,अपितु सतत प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है।नन्हीं चिड़िया के लिए आपकी चिंता और विश्लेषण सार्थक है।
प्रणाम।
सादर।
श्वेता जी
प्रकृति की इन धरोहरों की रक्षा की जिम्मेदारी भी हमारी ही है
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
Bahut sunder jankari
हार्दिक आभार, कदम जी
बहुत सुन्दर।
गौरय्या दिवस की बधाई हो।।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
कामिनी जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
पर्यावरण को संतुलित करने में गौरैया का बड़ा महती योगदान रहा है, परन्तु अब उसे उचित पर्यावरण और संरक्षण नहीं मिल रहा है,जो कि हमारे लिए चिंता का विषय है,आपकी चिंता वाजिब है,बात करने से कुछ नही होने वाला, हम सभी को उन्हें बचाने के प्रयास करने चाहिए, आपका लेख बहुत ही समसामयिक तथा चिंतनीय है,सादर नमन है,मैने भी दो रचनाएं डाली हैं,कभी समय मिले तो मेरे गीत ब्लॉग पर पधारें और लोकगीतों का आनंद लें,सादर ।
बिल्कुल सही फरमाया आपने
आपने जो भी कारण बताया है आपने इस पोस्ट के माध्यम से वह बिल्कुल सटीक है हम सब को इसके प्रति सजग रहने की जरूरत है इनका पर्यावरण बहुत बड़ा योगदान है
जिज्ञासा जी
बिल्कुल यही बात है! बातें बहुत होती हैं, दिन निर्धारित होते हैं! और बस....
राजपुरोहित जी
आपका सदा स्वागत है
सार्थक लेख । पर्यवरण के साथ पक्षियों को बजी संरक्षण मिलना ही चाहिए ।
ओंकार जी
हार्दिक आभार
संगीता जी
आपका सदा स्वागत है
गौरैया दिवस पर सार्थक आलेख, पंछियों और पशुओं से ही प्रकृति सुशोभित होती है, इनका सरंक्षण मानव की जिम्मेदारी है
गौरेया के बगैर आँगन सूना ही होता है। अच्छी बात यह है कि गाँव देहात में आज भी गौरेया आसानी से दिख जाती है। हालाँकि यह भी मानना होगा कि गौरैया के लिए चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। सार्थक संदेश देती रचना के लिए आपको बधाई।
सार्थक संदेश देतीं रचना।
बधाई
सही कहा आपने कि यदि सम्भले नहीं तो नभ नभचर विहीन हो जायेगा और यदि ऐसा हुआ तो पर्यावरण सन्तुलन ही बिगड़ जायेगा...
बहुत सुन्दर तस्वीरों के साथ सार्थक विश्लेषणात्मक लेख।
सार्थक और समीचीन रचना!!!
अनीता जी
पूरी तरह सहमत हूं
विरेन्द्र जी
देहातों का भी तो तेजी से शहरीकरण होता जा रहा है
पम्मी जी
आपका सदा स्वागत है
सुधा जी
पता नहीं हमारी ज्यादती से ऐसी ही कितनी प्रजातियां गुमनामी के अंधेरे में दफन हो चुकी हैं
विश्वमोहन जी
हार्दिक आभार
गौरेया दिवस मनाने की जगह इंसानों को नन्ही गौरेया का जीवन बचाने का प्रयास करना चाहिए।अपने आँगन या छत के किसी कोने में थोड़ा दाना-पानी बस यही बहुत है उनके जीने के लिए। बहुत सुंदर और सार्थक लेख।
अनुराधा जी
सही बात! इस एक दिन का भी वही हश्र है जो बाकि एक दिनियों का है!
बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख जो जीव जंतुओं के संरक्षण के लिए प्रेरित करता है, असंख्य शुभकामनाओं सह।
हार्दिक आभार, शांतनु जी
बहुत ही महत्वपूर्ण लेख शर्मा जी, हम कोशिश करें तो क्या नहीं हो सकता, गौरैया फिर वापस हमारे घर आए..ऐसे हरसंभव प्रयास किये जाने चाहिए और इसकी शुरुआत भी हमें अपने अपने घरों से करनी होगी..
पूरी तरह सहमत हूं, अलकनंदा जी
यह मनुष्य का दायित्व है कि इन पक्षियों को भी जीने के लिये प्राकृतिक परिवेश दे अपने स्वार्थ साधते-साधते पृथ्वी के अन्य जीवों के विनाश का कारण बनेगा तो एक दिन यह असंतुलन उसके जीवन को भी दुष्कर बना देगा.काफ़ी-कुछ तो हो ही गया है -अब भी चेत जाये और विवेक से काम ले तभी भावी पीढ़ियों काे न्यायोचित दाय मिल सकेगा.
प्रतिभा जी
सारी समस्याओं की जड़ इंसानों की बढती आबादी है! इसी के चलते धरा के बाकी वाशिंदों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है
हमारे यहाँ खुला आंगन है गगन जी | बहुत तरह की रंग बिरंगी चिड़ियाँ देखने में आती हैं अक्सर | बस मुझे तस्वीर लेने का समय नहीं मिल पाटा पर कई बार तो ऐसी चिड़ियाँ और पक्षी दिखाई पड़ते हैं जो मैंने कभी देखे नहीं और नाही उनके बारे में सूना | बहत सुंदर लेख है |
नीम तुम्हारा बहुत शुक्रिया
तुम्हारे कारण आई चिड़िया |
रेणु जी
मन मिजाज कितना भी भारी हो ये नन्हें जीव तनाव मुक्त कर देते हैं
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