गुरुवार, 10 सितंबर 2020

हमें तो खबर चाहिए, सिर्फ टीआरपी के लिए

अभी हफ़्तों तक एक रहस्यमयी, ''ह्त्या या आत्महत्या'' नामक नौटंकी का प्रसारण हर टी वी चैनल पर होता रहा है ! जिसमें लोगों की दिलचस्पी मरने वाले पात्र से ज्यादा उसके धन और संबंधों के खुलासे पर थी। चैनलों ने इसे नेशनल इश्यू बना डाला था ! रोज इसकी पर्दे पर बखिया उधेड़ी जाती रही ! इन दिनों लगता ही नहीं था कि देश दुनिया में ऐसी कोई और खबर भी है जो देशवासियों को सुननी-जाननी चाहिए ! यहां तक कि कोरोना भी सहम कर दूसरे-तीसरे पन्नों पर जा दुबका था ! सरहद पर घिरती अशांति से ज्यादा इन खबरनवीसों को नौटंकी के पात्रों को तरजीह देने की फ़िक्र थी। फिर नायिका के जेलग्रस्त होते ही यवनिका का पटाक्षेप हो गया ! पर तब तक चैनलों के भाग्य से एक और सनसनी हवा में तैरनी शुरू हो चुकी थी ..........................!   

#हिन्दी_ब्लागिंग    

देखते-देखते समय कितना बदल गया है ! बीते दिनों में अपनी भाषा को सुधारने के लिए, शब्दों के सही उच्चारण के लिए या भाषा पर पूरा अधिकार पाने के लिए हमसे अखबार पढ़ने और रेडिओ पर ख़बरें सुनने को कहा जाता था ! टी वी के शुरूआती दिनों में भी उस पर प्रसारित होने वाली ख़बरों को, चाहे वे किसी भी भाषा में हों, बहुत सोच समझ कर प्रसारित किया जाता था ! उन्हें पढ़ने वालों का उस भाषा पर पूरा नियंत्रण होता था। टी आर पी नामक सुरसा का जन्म नहीं हुआ था। अवाम पूरी तरह इन माध्यमों पर विश्वास करता था ! 

आज क्या हम अधोगति को प्राप्त इन माध्यमों पर लेश मात्र भी भरोसा कर सकते हैं ! जो आज सिर्फ और सिर्फ दर्शकों को जुटाने के लिए कुछ भी, कैसा भी दिखा-सुना-समझा, अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तत्पर रहते हैं ! तोताचश्म तो इतने की सुबह की बात दोपहर और दोपहर की बात रात को बिना किसी झिझक के बदलते रहते हैं। सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में इन्हें महारथ हासिल है। सीधी सी जगजाहिर बात है कि हर चैनल, हर अखबार अपना पेट भरने के लिए किसी ना किसी गुट में शामिल हो चुका है ! उस पर वही दिखाया-सुनाया-समझाया जाता है, जैसा उसको निर्देश मिलता है ! जाने-अनजाने उसके अपने-अपने श्रोता और पाठक बन गए हैं ! उन्हें उनके स्वादानुसार भोजन परोसा जाता है। इन्हें ना समाज से मतलब है नाही अवाम से, नाहीं किसी की भावनाओं से ! इन्हें सिर्फ अपने विज्ञापनों की संख्या से मतलब है, वह चाहे जैसा भी हो ! इसीलिए आज छोटे परदे पर ऊल-जलूल, फूहड़, अनर्गल, भदेश संदेशों की बाढ़ सी आई हुई है ! उनसे बच्चों के अपरिपक्व दिलो-दिमाग पर क्या असर पड़ता है, इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है !   

''अपने आप को ख़बरों में बनाए रखने को आतुर, ख्याति की चकाचौंध में बने रहने की लालसा में एक अदाकारा उल्टा-सीधा बयान दे देती है ! चिढ कर और अपनी राजनीती चमकाने-बचाने के लिए  तथाकथित नेता उसे धमकी दे देते हैं ! मौका देख अदाकारा को केंद्र की तरफ से सुरक्षा प्रदान कर दी  जाती है ! बाजार की कभी ना मिटने वाली भूख को कुछ और दिनों के लिए रसद मिल जाती है !'' 

अभी हफ़्तों तक एक रहस्यमयी, ह्त्या या आत्महत्या नामक नौटंकी का प्रसारण हर टी वी चैनल पर होता रहा ! जिसमें लोगों की दिलचस्पी मरने वाले पात्र से ज्यादा उसके धन और संबंधों के खुलासे पर थी। चैनलों ने इसे नेशनल इश्यू बना डाला ! दिन-रात बस वही और वही ! दर्शकों में से कुछ ने मजबूरन ना चाहते हुए भी देखा क्योंकि हर जगह उसका ही आलाप लिया जा रहा था ! कुछ ने न्यूज़ देखना ही बंद कर दिया ! पर अधिकांश ऐसे थे जो इस कथानक में पूर्णरूपेण डूब इसका रसास्वादन करते थे ! इन्हीं की शह पर रोज इसकी पर्दे पर बखिया उधेड़ी जाती रही ! इन दिनों लगता ही नहीं था कि देश दुनिया में कुछ अघटित भी घट रहा है ! कोई ऐसी खबर ही नहीं है जो देशवासियों को सुननी-जाननी चाहिए ! यहां तक कि कोरोना भी सहम कर दूसरे-तीसरे पन्नों पर जा दुबका था ! सरहद पर घिरती अशांति से ज्यादा इन खबरनवीसों को नौटंकी के पात्रों को तरजीह देने की फ़िक्र थी। फिर नायिका के जेलग्रस्त होते ही यवनिका का पटाक्षेप हो गया ! पर तब तक चैनलों के भाग्य से एक और सनसनी हवा में तैरनी शुरू हो गई थी ! 

वैसे इन सब में किसी का दोष नहीं है ! जैसी मांग रहती है बाज़ार वही सप्लाई करता है ! आज हमारी मानसिकता ही अपने तक सिमट कर रह गई है ! जैसे हम हैं वैसे ही हमारे नेता हो गए हैं। आज जब हमारे सामने अभूतपूर्व चुन्नोतियां ख़म ठोक रही हैं ! त्रिमुखी संकट हमें घेरने की फिराक में हैं ! ऐसे में भले ही हमारे आपसी कितने भी मतभेद हों, सारे देश को एकजुट हो, सरकार को सकारात्मक समर्थन देने की जरुरत है ! अपनी हैसियत और सहूलियत के अनुसार अपना योगदान देने की आवश्यकता है। राष्ट्र तो सदा ही पहले रहता है, हम सब और हमारे दल बाद में आते हैं।    

पर हो क्या रहा है ! हमारे कुछ तथाकथित नेता एक फ़िल्मी अदाकारा से जुमलेबाजी में उलझे हैं ! एक दूसरे की हद समझाई जा रही है ! अपने ही देश में अपने ही राज्यों में एक-दूसरे के आने-जाने पर देख लेने की धमकी दी जा रही है ! कारण....! एक फ़िल्मी अदाकारा अपने आप को ख़बरों में बनाए रखने की खातिर, ख्याति की चकाचौंध में बने रहने की लालसा में उल्टा-सीधा बयान दे देती है ! चिढ कर और अपनी राजनीती चमकाने-बचाने के लिए कुछ तथाकतित नेता उसे धमकी दे देते हैं ! मौका देख अदाकारा को केंद्र की तरफ से सुरक्षा प्रदान कर दी  जाती है ! बाजार की कभी ना मिटने वाली भूख को कुछ और दिनों के लिए रसद मिल जाती है ! 

इस कर्म-काण्ड को देख ऐसा नहीं लगता कि गलत समय पर गलत जगह निवेश कर दिया गया हो। जिस समय सारी पार्टियों को मिल कर आसन्न संकट के समय दुश्मन को अपनी एकजुटता का संदेश देना चाहिए ! वहां एक फ़िल्मी अदाकारा के साथ तू-तू-मैं-मैं कर अपनी अदाकारी दिखाई जा रही है ! दूसरी ओर जो संसाधन या पैसा, भले ही वह कितना भी हो, इस आपाद स्थिति में देश हित में काम आता, कोरोना को ख़त्म करने का हेतु बनता, उत्पादन बढ़ाने में प्रयुक्त होता, मुसीबतजदा लोगों की सहायता का सबब बनता उसे एक छद्म अदाकारी के गैर उत्पादक डिबेंचर पर लगा दिया गया ! इस खेल में यदि किसी का भला होगा तो सिर्फ और सिर्फ उस अदाकारा का ! जो शायद भविष्य में राजनेता बन अपना भविष्य सुरक्षित कर ले और हम आप जैसे उसको आता-जाता देख तालियां बजाते रहें। पहले भी तो कमोबेश हर पार्टी के द्वारा उसके जैसे कई ''शो-पीस" सदनों को सजाने के लिए भेजे जाते रहे हैं, जिनमें इक्के-दुक्के को छोड़ प्राय: सभी के कारनामे हम देख ही चुके हैं !   

15 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक

kuchhalagsa.blogspot.com ने कहा…

धन्यवाद, सुशील जी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ ण कुछ ण चले देश में तो लोग खायेंगे क्या ...
अभी तो ख़बरें हैं खाने के लिए बस ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
सच है ! गिज़ा बन गयीं हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
कोफ़्त होती है यह सब देख-सुन कर

Alaknanda Singh ने कहा…

नमस्कार शर्मा जी, बहुत खूब बख‍िया उधेड़ी मीड‍िया की...वाह... प्रश्न बहुत हैं ज‍िनके उत्तर हमें अपनी भीतर से ही खोजने होंगे...क‍ि इस मीड‍िया को टीआरपी देने वाले भी तो हम ही ना..

Meena Bhardwaj ने कहा…

चिन्तनपरक और सटीक लेख ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अलकनंदा जी
गलत करने वाले जानते हैं कि उनके विरुद्ध यदि सौ लोग आवाज उठाएंगे तो पक्ष में भी दस जने आ खडे होंगे! उन्हीं दस जनों की शह पर ये लोग हिमाकत करते चले जाते हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
हार्दिक आभार

कदम शर्मा ने कहा…

दिन पर दिन फूहड़ता बढती ही जा रही है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कदम जी
बिल्कुल सही

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक और सटीक आलेख
बहुत सही

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

खरे जी
हार्दिक आभार

Madhulika Patel ने कहा…

सटीक लेख,है सर,आज कल के समय की सच्चाई ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मधुलिका जी
बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपका सदा स्वागत है

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