इसी कड़ी में अगला नाम आता है, राहुल गांधी का ! राजनीति को परे कर बात की जाए तो इनके मुख पर भी मासूमियत की छाप थी। अच्छा-खासा हसमुख चेहरा। आकर्षक व्यक्तित्व। उम्र की कलम भी कोई ख़ास असर नहीं डाल पा रही थी। कैमरे के सामने एक जिंदादिल व खुशगवार उपस्थिति दर्ज करवाने वाले इंसान ने अचानक पता नहीं किस ''हितैषी'' की सलाह पर अपने पर बदलाव का प्रयोग कर डाला। अजीब सा केश-विन्यास, ओढ़ी हुई सी गंभीरता, अलग सी पोषाक, उदास सा मुखमंडल, परिपक्वता कम अस्वस्थ होने का आभास ज्यादा देता है...........................!
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पुराने किस्से कहानियों में वर्णित ''गैजेट्स'', ''ट्रिक्स'', ''अजूबे'', ''कलाऐं'' जैसी रहस्यमयी, अज्ञान की चिलमन से ढकी हैरतंगेज बातों को विज्ञान ने काले परदे के पीछे से उठा-उठा कर सामने ला एक साधारण सी आम जानकारी बना कर रख दिया है। उसी विधाओं में एक है, भेष या रूप-रंग बदलना। आज की जुबान में इसे प्लास्टिक सर्जरी या मेकओवर कहा जा सकता है। जो ईश्वर प्रदत्त रूप-रंग, बनावट आदि को बदलने के लिए किया जाता है। वर्तमान में यह शो बिजनेस या अवाम से नजदीकियां रखने वालों में ज्यादा प्रचलित है। प्लास्टिक सर्जरी खतरनाक, दुष्प्रणामित व मंहगी होने के बावजूद महिलाओं में खासी लोकप्रिय है। पुरुष भी इसे अपनाने में बहुत पीछे नहीं हैं, पर ज्यादातर अपने चेहरे का मेक-ओवर करवा संतुष्ट हो जाते हैं। वैसे तो अपने को बेहतर दिखाने के लिए हजारों लोगों ने इसे अपनाया है पर आज सिर्फ तीन-चार लोगों की बात।
शेखर सुमन - का नाम सबसे पहले इस क्रम में लिया जा सकता है। जिन्होंने अपनी उम्र को वास्तव में कम ''दिखलवाने'' में काफी सफलता पाई। प्रयोग सफल भी रहा और अच्छा भी लगा। ऐसा करवाने वाली पहली बीस हस्तियों में शायद वे अकेले पुरुष हैं। पर अगले तीन प्राणी पता नहीं क्या सोच कर क्या बन गए !
शाहिद कपूर - भोला-भाला, मासूमियत भरा प्यारा सा चेहरा ! सिने-दर्शकों को पसंद भी था ! फ़िल्में सफल भी हो रही थीं। पर पता नहीं बंदे को क्या सूझी ! ''ही मैन'' रफ-टफ दिखने के चक्कर में अपना व्यक्तित्व ऐसा बदलवाया कि मरीज सा दिखने लगा। अरे भई ! ज्यादा पीछे न जा कर, अशोक कुमार से ले कर अभी तक के आयुष्मान जैसे सफल कलाकारों को ही देख लेते ! सैकड़ों या कहो, तक़रीबन सारे नायक ऐसे ही हुए हैं जिन्होंने बिना कुदरत की रचना में फेर-बदल कर अपनी मेहनत के दम पर अपार सफलता पाई। उनकी बिना मार-कुटाई वाली फ़िल्में भी बहुत सफल रहीं।
ऋतिक रौशन - सुंदर, स्मार्ट, हर दृष्टि से कसौटी पर खरा ! पुरुषोचित सुंदरता के चलते ग्रीक गॉड कहलवाने वाले इस अभिनेता ने भी अपना कुछ ऐसा काया-कल्प करवाया, जो रफ-टफ भले ही लगे सुंदर तो कतई नहीं लगता ! अब सुंदरता की परिभाषा अलग-अलग हो सकती है। हो सकता हो विदेशी फिल्मों की चाह और वहां के उम्रदराज नायकों की तर्ज पर इन्होंने ऐसा बदलाव करवा लिया हो ! पर वहां और यहां में फर्क भी तो है ! फिर भी औरों से ठीक है, उम्र का भी तो असर पड़ता ही है।
राहुल गांधी - इस कड़ी में अगला नाम ! राजनीति को परे कर बात की जाए तो इनके मुख पर भी मासूमियत की छाप थी। अच्छा-खासा हसमुख चेहरा। आकर्षक व्यक्तित्व। उम्र की कलम भी कोई ख़ास असर नहीं डाल पा रही थी। कैमरे के सामने एक जिंदादिल व खुशगवार उपस्थिति दर्ज करवाने वाले इंसान ने अचानक पता नहीं किस ''हितैषी'' की सलाह पर अपने पर बदलाव का प्रयोग कर डाला। अजीब सा केश-विन्यास, ओढ़ी हुई सी गंभीरता, अलग सी पोषाक, उदास सा मुखमंडल, परिपक्वता कम अस्वस्थ होने का आभास ज्यादा देता है।
अब जब हम जैसे आम इंसानों को यह बदलाव कुछ अजीब से लगते हैं तो सोचने की बात है कि जिन पर यह सब प्रयोग किए गए उनको क्यों नहीं इस बात का एहसास होता। अवाम के सामने आना है ! उस पर अपना प्रभाव डालना है ! उसको आकर्षित करना है ! लुभाना है तो अपना रूप-रंग भी तो लुभावना होना चाहिए ! इस मामले में राजीव गांधी जी का उदाहरण आदर्श है। खैर सबका अपना-अपना ख्याल है ! अपना-अपना नजरिया है ! अपना-अपना ख्वाब है ! अपना ही चेहरा है और अपनी ही नजर है ! सानूं की !!
9 टिप्पणियां:
आपकी खोजी नजर को नमन।
शास्त्री जी
स्नेह बना रहे
मीना जी
चर्चा में सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
बढ़िया आलेख
@hindiguru
सदा स्वागत है, आपका
आ गगन शरण जी, आपने बहुत खोजपूर्ण लेख प्रस्तुत किया है। साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
आपकी मर्मज्ञता का बडप्पन है, आभार
बहुत रोचक जानकारी दी है आपने।
ज्योति जी
अनेकानेक धन्यवाद
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