भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय और विचित्र भी है। वे चाहे किसी भी रूप में रहें कुछ चीजें वे सदा धारण किए रहते हैं; जैसे, जटा, भस्म, चंद्र, सर्पमाल, डमरू, त्रिशूल, रुद्राक्ष, तथा बाघम्बर ! उनका कुछ भी अकारण नहीं है। इन सब वस्तुओं की अपनी-अपनी खासियत और महत्व है। इनमें से बाघम्बर को छोड़ सभी की विशेषताएं तकरीबन सर्वज्ञात हैं ! पर यह व्याघ्रचर्म किसका है और कैसे प्राप्त हुआ यह कुछ अल्पज्ञात है, पर इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में उपलब्ध है..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
सावन, भोलेनाथ का प्रिय समय ! इसी समय आकाश से अमृत और कैलाश से कृपा बरसती है ! देश-परिवेश, चहूँ ओर भक्ति से सराबोर हरियाली, खुशहाली, उल्लास का वातावरण ! प्रभु की कृपा पर जन-मानस भाव-विभोर हो उनकी वंदना-पूजा-अर्चना कर अपनी कृतज्ञता प्रदान करता है। सारा देश शिवमय हो उठता है ! उन्हीं की गाथा, उन्हीं की पूजा, उन्हीं का महिमा गान, उन्हीं की स्तुति ! भोले इतने कि ज़रा सी भक्ति पर खुश हो सबको कृतार्थ कर दें ! वरदान देते समय सुर-असुर-मानव-अमानव का भेद नहीं करते ! वे सभी देवी-देवताओं से हट कर हैं। उनका सौम्य और रौद्र, दोनों रूप सुप्रसिद्ध और पूजनीय हैं। ग्रंथों में उनका विस्तार पूर्वक वर्णन उपलब्ध है।
भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय और विचित्र भी है। वे चाहे किसी भी रूप में रहें, कुछ चीजें वे सदा धारण किए रहते हैं; जैसे, जटा, भस्म, चंद्र, सर्पमाल, डमरू, त्रिशूल, रुद्राक्ष, तथा बाघम्बर ! उनका कुछ भी अकारण नहीं है। इन सब वस्तुओं की अपनी-अपनी खासियत और महत्व है। इनमें से बाघम्बर को छोड़ सभी की विशेषताएं तकरीबन सर्वज्ञात हैं ! पर यह व्याघ्रचर्म किसका है और कैसे प्राप्त हुआ यह कुछ अल्पज्ञात है पर इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में उपलब्ध है।
अति प्राचीन समय में जब अभी पृथ्वी के विकास का काम प्रगति पर था, तब शिव जी निरक्षण के लिए अक्सर भ्रमण पर निकला करते थे। वे ठहरे फक्कड़, भोले, तपस्वी, निर्लिप्त, निरपेक्ष ! तो वे दिगंबरावस्था में ही घूमते रहते थे। उनका वसन तो शुभ्र आकाश था। ऐसे ही में एक बार वे दारूकावन जा पहुंचे। जहां कुछ कर्म-कांडी लोग अपने परिवारों सहित वास करते थे। उनकी कर्त्वयपरायण पत्नियां उनकी दिनचर्या और उनके कर्मकांडों को पूरा करने में पूरी तरह समर्पित थीं। एक दिन उन स्त्रियों ने जंगल में ध्यानरत शिव जी को देख लिया ! उनके मोहक, बलिष्ठ, तेजोमय, दिव्य रूप को देख वे सब मोहग्रस्त हो गईं। आठों पहर वे शिव जी का ही ध्यान करने लगीं। उनके पास जाने और उन्हें देखने के लोभ में घर-द्वार सब भूल गईं। शिव जी इन सब बातों से पूरी तरह अनभिज्ञ थे ! वैसे भी उन्हें इन सब से कोई लेना-देना नहीं था। उधर जब घर के पुरुषों को अपनी स्त्रियों में आए बदलाव का कारण जंगल में निवस्त्र घूमते युवक के रूप में मिला तो वे सब आपे से बाहर हो गए। बिना सोचे-विचारे और जाने कि वह युवक कौन है, क्रोध में मतिभ्रष्ट हो, उसे मारने के लिए उन्होंने जंगल की पगडंडी में एक गहरा गड्ढा खोद डाला और अपनी मंत्र शक्ति से एक विकराल शेर को उत्पन्न कर उसमें छोड़ दिया। पर शिव जी को उस शेर को मारने में पल भर का भी समय नहीं लगा। मरते हुए शेर ने, जो पूर्व जन्म में यक्ष था, शिव जी से सदा उनके पास रहने की याचना की ! शिव जी ठहरे औघड़ दानी ! उन्होंने उसे शिवलोक भेज उसके चर्म को अपना वसन बना लिया। तभी से वह व्याघ्रचर्म, बाघम्बर बन वसन और आसन के रूप में शिव जी द्वारा अपना लिया गया।
इस घटना के बाद दारुका वनवासियों को शिव जी की असलियत का पता चला। उन सब ने उनकी शरण में जा अपनी गलतियों की क्षमा मांगी। भोले भंडारी ने सब को क्षमा कर भय मुक्त किया और अगली योनि में श्रेष्ठ मुनि-कुल में जन्म लेने का आशीर्वाद दे कैलाश की ओर प्रस्थान किया।
13 टिप्पणियां:
रोचक और अविदित तथ्य। आभार साझा करने हेतु।
दिव्या जी
पधारने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
दिग्विजय जी
चयन का सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार
Bilkul anjane tathay ko ujagar karne ka aabhar
कदम जी
आभार ¡ "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
उपयोगी और सार्थक पोस्ट।
शास्त्री जी
हार्दिक आभार
बोल बम रोचक जानकारी
@hindiguru
हार्दिक आभार ¡ "कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-07-2020) को "कोरोना वार्तालाप" (चर्चा अंक-3777) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शास्त्री जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
रोचक जानकारी आदरणीय।
अनुराधा जी,
''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है
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