बुधवार, 15 जुलाई 2020

जहां ना-लायक भी लायक सिद्ध हो जाते हैं

राजनीति हमारे देश में एक ऐसा व्यवसाय बन गई है, जहां ना-लायक को भी लायक सिद्ध कर उसका जीवन सुरक्षित और संवारा जा सकता है ! नैतिकता, मर्यादा, विवेकता, सहिष्णुता, गरिमा, आदर-भाव सब सिर्फ संविधान की पुस्तक के लिए छोड़ दिए गए हैं, ऐसे अनेकों उदहारण हैं ! इन सब से अवाम ने झटका तो खाया, पर दिलो-दिमाग पर वर्षों से काबिज सम्मोहन का कोहरा फिर भी पूरी तरह छंट नहीं पाया ! इसीलिए वह परिवारों के झूठे-सच्चे इतिहास, कुर्बानियों की कपोल कल्पित कथाओं, नेताओं के थोथे वादों और उनके छद्म प्रभामंडलों के आलोक में अपना भविष्य टटोलने में लगा ही रहा ! पर फिर साक्षरता से कुछ समझ, समझ से कुछ जागरूकता आई ! धर्म, जाति, भाषा, इतिहास के नाम पर बिछाए गए इंद्रजाल छिन्न-भिन्न हुए ! सच्चाई का सूरज तपा तो कुछ जर्जर छत्रप भी ढहे ! लोगों को भी समझ आया कि देश है तभी हम हैं, देश नहीं तो कुछ भी नहीं....................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
एक वह भी समय था, जब अदना सा कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित और अपने नेता के लिए निष्ठावान हुआ करता था। यह स्वस्फूर्त भावना होती थी। जो अपने नेता के त्याग, समर्पण, निस्वार्थ और सच्चरित्रता जैसे गुणों को देख स्वत: उत्पन्न होती थी। दल बदलने का तो सपने में भी ख्याल नहीं आ पाता था। आम जन को जब लगता था कि अमुक इंसान देश और समाज की भलाई के लिए कुछ भी कर सकता है तो वह उसका मुरीद हो जाता था। उसकी गलतियों, उसकी कमियों को नजरंदाज कर दिया जाता था। सारी जिम्मेवारी उसे सौंप निश्चिन्त हो लिया जाता था। पर कोई भी चीज स्थाई कहां होती है ! समय भी बदला, लोग भी बदले, तो सोच बदलनी ही थी !  

राजनीति हमारे देश में एक ऐसा व्यवसाय बन गया है, जहां ना-लायक को भी लायक बना उसका जीवन सुरक्षित और संवारा जा सकता है ! इसलिए सत्ता देश की भलाई के बदले परिवारों के उसरने का, पीढ़ियों को तारने का जरिया बन गई ! येन-केन-प्रकारेण उसे हथियाया जाने लगा। तरह-तरह के लोग नेता बन गए ! नैतिकता, मर्यादा, विवेकता, सहिष्णुता, गरिमा, आदर-भाव सब संविधान की पुस्तक के पन्नों में जा दुबके ! अवाम को झटका तो लगा पर वर्षों से दिलो दिमाग पर काबिज सम्मोहन पूरी तरह छंट नहीं पाया ! बार-बार हताशा, निराशा, धोखा पाने के बावजूद वह, परिवारों के झूठे-सच्चे इतिहास, कुर्बानियों की कपोल कल्पित कथाओं, नेताओं के थोथे वादों और उनके छद्म प्रभामंडलों के आलोक में अपना भविष्य टटोलने में लगी रही ! पर कब तक !     

समय के साथ पीढ़ीयां बदलीं। साक्षरता से समझ, समझ से जागरूकता आई ! लोगों को अपने भले-बुरे का ज्ञान होने लगा ! धर्म, जाति, भाषा, इतिहास के नाम पर रोटियां सेकने वालों के ढाबे बंद होने लगे ! कई-कई इंद्रजाल छिन्न-भिन्न हो गए ! अच्छाई का सूरज तपा तो जर्जर छत्रप ढहने शुरू हो गए ! लोगों को भी समझ आ गया कि देश है तो हम हैं, देश नहीं तो कुछ भी नहीं ! 

पर अभी भी सपूर्ण क्रान्ति नहीं हुई थी ! कुछ जरासीम समूल नष्ट नहीं हुए थे ! उनके थके-हारे, लुटे-पिटे, हाशिए पर धकेल दिए गए मठाधीश पूरा जोर लगा रहे हैं, अवाम को बरगलाने के लिए ! उधर वर्षों की राजशाही का खुमार उतारे नहीं उतर रहा ! अभी भी अवाम और अपने कार्यकर्ताओं को निजी सम्पत्ति ही माना जा रहा है। किसी का ज़रा सा भी विरोध या महत्वाकांक्षा उसको नेस्तनाबूद करवाने का जरिया बन गया है। धीरे-धीरे हर अच्छे-बुरे कर्मों के राजदार, खुर्राट, मौकापरस्त, मतलबी, अवसरवादी, उम्रदराज दरबारी हावी होते चले जा रहे हैं ! कर्मठ, समर्पित, निष्ठावान लोगों को अपमानित-प्रताड़ित कर बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा है ! क्योंकि ऐसे कर्मशील लोग ही आगे जा कर इन लोगों की असलियत का पर्दा फाश कर जनता के प्रिय बन सकते थे। इनके सरपरस्त भी इन जैसे खुदगर्जों, चारणों, पिछलग्गुओं की चारदीवारी में खुद को घिरवा अपने को सुरक्षित, पाक-साफ़ मान बैठे हैं ! हकीकत से दूर घेरे के अंदर वे वही देखते-सुनते हैं जो दिखलाया, सुनाया, समझाया जा रहा है ! जो कर्णप्रिय हो, सुहाता हो, मन लायक हो ! इतिहास गवाह है कि यह स्थिति सदा विनाश करवा कर ही हटी है।  

समय को अपना गुलाम समझ ऐसा करने वाले इस तरह के खुर्राट लोग यह भी जानते हैं कि यह सब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है, सो अपनी आने वाली नसलों के लिए जितना लाभ उठाया जा सकता है उठाए जा रहे हैं ! पर यह भूल जाते हैं इनके पहले भी जब ऊपर वाले की लाठी पड़ी थी तो उसमें भी आवाज नहीं आई थी ! पर यदि कोई सबक लेना ही ना चाहे तो..............!! 

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छा आलेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद, शास्त्री जी

मन की वीणा ने कहा…

शानदार लेख चिंतन परक।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
पधारने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

dj ने कहा…

सटीक व् चिंतनीय

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिव्या जी
पधारने हेतु हार्दिक आभार

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