यह एक दिलचस्प बात है कि यहां के एयर पोर्ट ''जॉली ग्रांट'' का नाम किसी आदमी का नहीं है ! यह उस जगह का नाम है जिस पर एयर पोर्ट बना हुआ है। कभी नेपाली राजाओं का राज गढवाल तक होता था। उसी समय नेपाल के किसी शाह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह जगह जागीर के रूप में उपहार में दे दी थी, तभी से उस ग्रांट के कारण इसका नाम जॉली ग्रांट पड़ा हुआ है ! हालांकि अब इसका नाम अटल जी के नाम पर रख दिया गया है ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
सावन का पुनीत महीना ! शिवजी को समर्पित समय ! आज उन्हीं के एक पावन स्थान लाखामंडल की जानकारी। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 128 की.मी. दूर बाबर-जौंसार इलाके में तक़रीबन सवा सात हजार फिट की ऊंचाई पर टोंस और यमुना नदियों के बीच स्थित है, लाखामंडल गांव जहां शिवजी को समर्पित प्राचीन मंदिरों का समूह है। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण ग्रेफाइट पत्थर का बना शिवलिंग है, जिस पर जल चढाने पर एक अद्भुत चमक चहूँ ओर बिखर जाती है इसके साथ ही उसमें जल अर्पण करने वाले व्यक्ति की छवि भी साफ नजर आने लगती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर दो द्वारपालों की मूर्तियां उकेरी गयी हैं, जिन्हें दानव और मानव के नाम से जाना जाता है। ये ठीक वैसी ही हैं जैसे विष्णु जी के मंदिरों पर जय-विजय की प्रतिमाएं बनी होती हैं। कुछ लोग इन्हें अर्जुन और भीम की मूर्ती भी मानते हैं। लाखामंडल का शिव मंदिर दुनिया का एक ऐसा मंदिर है जिसमें सवा लाख लिंगों की स्थापना की गयी थी। इस क्षेत्र में की गई खुदाई भी इस बात को प्रमाणित करती है, जिसमें विभिन्न आकार और प्रचीन समय के कई शिवलिंग मिले हैं। क्षेत्र में प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी।
लाखामंडल दो शब्दों के मेल से बना है। लाखा यानी लाख या कई ! मंडल यानी मंदिर या लिंग। यह शक्ति पंथ के प्रमुख पूजास्थलों में से एक है। अद्भुत कलाकारी से सज्जित इस मंदिर के बारे में दृढ मान्यता है कि यहां आने भर से इंसान की सारी मुसीबतें दूर हो उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। कहते हैं कि पांडवों के अज्ञातवास काल में युधिष्ठिर ने लाखामंडल स्थित लाक्षेश्वर मंदिर के प्रांगण में जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वह आज भी विद्यमान है। इसी लिंग के सामने दो द्वारपालों की मूर्तियां हैं, जो पश्चिम की ओर मुंह करके खड़े हैं। इनमें से एक का हाथ कटा हुआ है। मंदिर के अंदर एक चट्टान पर पैरों के निशान मौजूद हैं, जिन्हें देवी पार्वती के पैरों के चिन्ह माना जाता है। मंदिर के अंदर भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश, भगवान विष्णु और हनुमान जी की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार यह वही जगह है जहां महाभारत काल में दुर्योधन ने लाख के महल में पांडवों को मारने का दुष्कर्म रचा गया था। मंदिर के पास ही एक गुफा भी है जो स्थानीय भाषा में ''धुंधी ओढारी'' यानी धुंधली गुफा के नाम से प्रसिद्ध है ! कहते हैं दुर्योधन से बचने के लिए पांडवों ने इसी में से निकल कर अपनी जान बचाई थी। यहां से निकलने के बाद उन्होंने चक्रनगरी में एक माह तक निवास किया था जिसे आज चकराता नाम से जाना जाता है।
लाखामंडल में छोटे-छोटे मंदिरों के समूह हैं। जो समय-समय पर बनते रहे होंगे। एक शोध के अनुसार, जिसका शिलालेख भी उपलब्ध है, सिंहपुर के राजपरिवार की राजकुमारी ईश्वरा ने अपने दिवंगत पति जालंधर नरेश चन्द्रगुप्त के मोक्ष के लिए लाक्षेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। जो समय के साथ बदल कर लाखेश्वर हो गया। जो भी हो उत्तराखंड का आदिकालीन सभ्यताओं से सदा से गहरा नाता रहा है। इसीलिए यहां यत्र-तत्र-सर्वत्र एतिहासिक एवं पौराणिक काल के अवशेष बिखरे पड़े मिलते रहे हैं। यह दर्शनीय शिव मंदिर भी एक ऐसा ही धार्मिक पूजास्थल है जहां जैसे भी हो, मौका बना कर जरूर जाना चाहिए।
चकराता से बस या टैक्सी द्वारा यहां आसानी से जाया जा सकता है। यह मसूरी रोड पर चकराता से करीब 100 की.मी. की दूरी पर स्थित है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और प्लेन की सुविधा के लिए जॉली ग्रांट एयर पोर्ट है। लगे हाथ यह बात भी जानना उचित होगा कि ''जॉली ग्रांट'' किसी आदमी का नाम नहीं है। यह उस जगह का नाम है जहां उत्तराखंड का एयरपोर्ट स्थित है। कभी नेपाली राजाओं का राज गढवाल तक होता था। उसी समय नेपाल के किसी शाह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह जगह जागीर के रूप में उपहार में दे दी थी। तभी से इसका नाम जॉली ग्रांट पड़ा हुआ है। हालांकि यहां जॉली शब्द के होने की वजह मालूम नहीं पड़ रही है। हो सकता है जिसने यह प्रमाण पत्र हासिल किया हो उस अंग्रेज का नाम जॉली हो या फिर ख़ुशी-ख़ुशी प्रदान की गयी जागीर को जॉली भेंट का नाम दे दिया गया हो ! अब तो इसका नाम बदल कर अटल जी के नाम पर कर दिया गया है।
चकराता से बस या टैक्सी द्वारा यहां आसानी से जाया जा सकता है। यह मसूरी रोड पर चकराता से करीब 100 की.मी. की दूरी पर स्थित है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन देहरादून और प्लेन की सुविधा के लिए जॉली ग्रांट एयर पोर्ट है। लगे हाथ यह बात भी जानना उचित होगा कि ''जॉली ग्रांट'' किसी आदमी का नाम नहीं है। यह उस जगह का नाम है जहां उत्तराखंड का एयरपोर्ट स्थित है। कभी नेपाली राजाओं का राज गढवाल तक होता था। उसी समय नेपाल के किसी शाह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह जगह जागीर के रूप में उपहार में दे दी थी। तभी से इसका नाम जॉली ग्रांट पड़ा हुआ है। हालांकि यहां जॉली शब्द के होने की वजह मालूम नहीं पड़ रही है। हो सकता है जिसने यह प्रमाण पत्र हासिल किया हो उस अंग्रेज का नाम जॉली हो या फिर ख़ुशी-ख़ुशी प्रदान की गयी जागीर को जॉली भेंट का नाम दे दिया गया हो ! अब तो इसका नाम बदल कर अटल जी के नाम पर कर दिया गया है।
15 टिप्पणियां:
कुलदीप जी, हार्दिक आभार !
रोचकता से परिपूर्ण सुन्दर यात्रा वृत्तांत ।
मीना जी, सदा स्वागत है
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21 -07-2019) को "अहसासों की पगडंडी " (चर्चा अंक- 3403) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
अनिता जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार
रोचक और ज्ञानवर्धक यात्रा विवरण।
सुन्दर वर्णन
मन की वीणा के सुमधुर राग का सदा स्वागत है
ओंकार जी, स्नेह बना रहे
बहुत ही सुन्दर ,रौचक यात्रा बृतान्त...
सुधा जी, आपका "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
ज्ञानवर्धक विवरण सुन्दर यात्रा वृत्तांत ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अश्रुपूरित श्रद्धांजलि - सुषमा स्वराज जी - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
संजय जी, आभार
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