उस समय कश्तियाँ चप्पू के बजाय बल्लियों की सहायता से खेयी जाती थीं। आज भी बंगाल-असम जैसे इलाकों में नावों को दिशा देने के लिए बल्लियों का सहारा लिया जाता है। बल्ली को कुशलता पूर्वक उपयोग करने वाले को बल्ली मार कहा जाता था। चूँकि वे लोग शाही परिवारों और उच्च वर्ग की नाव खेते थे इसलिए उनका उस जमाने में अच्छा रसूख हुआ करता था। इसी कारण उन्हें उस जमाने के ''पॉश'' इलाके में रहने की जगह प्रदान की गयी थी। उन्हीं के काम के नाम पर उस जगह का नाम बल्ली मारान पड़ गया यानी बल्ली मारने वालों की जगह.......!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जैसे हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है वैसे ही हमारे शहरों, कस्बों, जिलों, गली-खेड़ों के नाम भी विचित्र संज्ञाओं से विभूषित हैं। वहां रहने वाले तो उस नाम के आदी हो चुके होते हैं पर नवांगतुक उन्हें पहली बार सुन कर एक बार तो सोच में पड़ ही जाता है कि यह क्या नाम हुआ ! जैसे दिल्ली को ही लें ! पुरानी दिल्ली जो कभी राजसी शानो-शौकत का प्रतीक थी आज बेतरतीब बसाहट की वजह से गलियों का मकड़जाल बन कर रह गयी है। इसकी अंतहीन गलियां, गलियों के अंदर गलियां, गलियों के अंदर की गलियों से निकलती गलियां। इन गलियों के कूचे-कटरों की भूल-भुलैया में घूमते हुए उनके ऐसे-ऐसे नाम सुनने को मिलते हैं कि दिमाग चकरघिन्नी बन जाता है। सूई वालान, नाई वालान, बल्ली मारान, चूड़ीवालान, दरीबा कलां, कूंचा सेठ, गली पीपल वाली, माता गली, गली कासिमजान, जोगीवाड़ा, मालीवाड़ा, गली गुलियांन, कटरा नील, खारी बावली, गली परांठे वाली, छत्ता शाहजी आदि, आदि, आदि ! यदि ऐसी जगहों और उनके नामों पर शोध किया जाए तो एक भारी-भरकम ग्रंथ ही बन जाएगा ! आज ऐसी ही एक जगह की चर्चा जिसका नाम सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे कोई लठ्ठ मारने को तैयार बैठा हो ! बल्लीमारान !
देश का सबसे मशहूर बाजार, चाँदनी चौक ! यहीं फतेहपुरी से कुछ पहले बायीं ओर एक चौड़ी सी गली पड़ती है जिसका नाम है बल्लीमारान ! आज अपने चश्मों और मोजडियों के कारण विख्यात इस इलाके का वास्ता कभी देश की मशहूर शख्सियतों के साथ रहा था। जिनमें सबसे प्रमुख तो चचा ग़ालिब हैं। जिनकी हवेली आज भी इसकी एक उप-गली कासिमजान में देश-विदेश के शेरो-शायरी की समझ रखने वाले कद्रदानों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही अपने-अपने इतिहास को समोए-संजोए खड़ी हैं, खजांची, चुन्नामल, मिर्जा ग़ालिब, जीनत महल जैसी हस्तियों की ऐतिहासिक हवेलियां। इनके अलावा हाकिम अजमल ख़ाँ, मोहम्मद अल्ताफ हुसैन "हाली", ग़ुलज़ार साहब तथा एक तरह से मशहूर फ़िल्म पटकथा लेखक, निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास का नाता भी यहां से जुड़ता है क्योंकि वे मो. अल्ताफ हुसैन जी के पोते थे। इसकी आज की हालात को देख कौन कह सकता है कि कभी यह जगह अदब का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था !
अब इसके नामकरण की बात ! जब सतरहवीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट शाहजहां ने चाँदनी चौक बनवाया तो उसके बीचो-बीच लाल किले के लाहौरी गेट से लेकर फतेहपुरी मस्जिद तक एक बड़ी सी नहर का निर्माण भी करवाया। जिसका का पानी रात के समय चाँद की रौशनी से शीशे की तरह जगमगा कर एक अलग ही लोक का नजारा पेश किया करता था। उसी स्वप्न लोक का आनंद लेने के लिए शाम के वक्त शाही परिवार और अमीर-उमरा अपनी-अपनी कश्तियों में वहां सैर कर वक्त गुजारते थे। जिसके लिए देश के बेहतरीन नाविकों को यहां काम मिलता था। उस समय कश्तियाँ चप्पू के बजाय बल्लियों की सहायता से खेयी जाती थीं। आज भी बंगाल-असम जैसे इलाकों में नावों को दिशा देने के लिए बल्लियों का सहारा लिया जाता है। बल्ली को कुशलता पूर्वक उपयोग करने वाले को बल्ली मार कहा जाता था। चूँकि वे लोग शाही परिवारों और उच्च वर्ग की नाव खेते थे इसलिए उनका उस जमाने में अच्छा रसूख हुआ करता था। इसी कारण उन्हें उस जमाने के ''पॉश'' इलाके में रहने की जगह प्रदान की गयी थी। उन्हीं के काम के नाम पर उस जगह का नाम बल्ली मारान पड़ गया यानी बल्ली मारने वालों की जगह। अब ना तो कोई नहर है, ना कश्ती और नाहीं बल्लीमार वक्त की आंधी ने सब कुछ बदल कर रख दिया है आज उस तंग सी जगह में सायकिल, रिक्शा, ठेला, स्कूटर, मोटर सायकिल सब ठूंसे पड़े हैं पर अपने-अपने इत्मीनान में ! कुछ तो है यहां, इसका सम्मोहन, इसका अपनापन, इसकी आत्मीयता, इसकी ऐतिहासिकता, जो लाख अड़चनों, कमियों, मुश्किलों के बावजूद लोगों को अपने से जुदा नहीं होने देता ! इसी कारण अभी भी दिल्ली की गलियों में कूचा, कटरा जैसे जगहों के नाम जीवित हैं।
#हिन्दी_ब्लागिंग
जैसे हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है वैसे ही हमारे शहरों, कस्बों, जिलों, गली-खेड़ों के नाम भी विचित्र संज्ञाओं से विभूषित हैं। वहां रहने वाले तो उस नाम के आदी हो चुके होते हैं पर नवांगतुक उन्हें पहली बार सुन कर एक बार तो सोच में पड़ ही जाता है कि यह क्या नाम हुआ ! जैसे दिल्ली को ही लें ! पुरानी दिल्ली जो कभी राजसी शानो-शौकत का प्रतीक थी आज बेतरतीब बसाहट की वजह से गलियों का मकड़जाल बन कर रह गयी है। इसकी अंतहीन गलियां, गलियों के अंदर गलियां, गलियों के अंदर की गलियों से निकलती गलियां। इन गलियों के कूचे-कटरों की भूल-भुलैया में घूमते हुए उनके ऐसे-ऐसे नाम सुनने को मिलते हैं कि दिमाग चकरघिन्नी बन जाता है। सूई वालान, नाई वालान, बल्ली मारान, चूड़ीवालान, दरीबा कलां, कूंचा सेठ, गली पीपल वाली, माता गली, गली कासिमजान, जोगीवाड़ा, मालीवाड़ा, गली गुलियांन, कटरा नील, खारी बावली, गली परांठे वाली, छत्ता शाहजी आदि, आदि, आदि ! यदि ऐसी जगहों और उनके नामों पर शोध किया जाए तो एक भारी-भरकम ग्रंथ ही बन जाएगा ! आज ऐसी ही एक जगह की चर्चा जिसका नाम सुन कर तो ऐसा लगता है जैसे कोई लठ्ठ मारने को तैयार बैठा हो ! बल्लीमारान !
देश का सबसे मशहूर बाजार, चाँदनी चौक ! यहीं फतेहपुरी से कुछ पहले बायीं ओर एक चौड़ी सी गली पड़ती है जिसका नाम है बल्लीमारान ! आज अपने चश्मों और मोजडियों के कारण विख्यात इस इलाके का वास्ता कभी देश की मशहूर शख्सियतों के साथ रहा था। जिनमें सबसे प्रमुख तो चचा ग़ालिब हैं। जिनकी हवेली आज भी इसकी एक उप-गली कासिमजान में देश-विदेश के शेरो-शायरी की समझ रखने वाले कद्रदानों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही अपने-अपने इतिहास को समोए-संजोए खड़ी हैं, खजांची, चुन्नामल, मिर्जा ग़ालिब, जीनत महल जैसी हस्तियों की ऐतिहासिक हवेलियां। इनके अलावा हाकिम अजमल ख़ाँ, मोहम्मद अल्ताफ हुसैन "हाली", ग़ुलज़ार साहब तथा एक तरह से मशहूर फ़िल्म पटकथा लेखक, निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास का नाता भी यहां से जुड़ता है क्योंकि वे मो. अल्ताफ हुसैन जी के पोते थे। इसकी आज की हालात को देख कौन कह सकता है कि कभी यह जगह अदब का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था !
अब इसके नामकरण की बात ! जब सतरहवीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट शाहजहां ने चाँदनी चौक बनवाया तो उसके बीचो-बीच लाल किले के लाहौरी गेट से लेकर फतेहपुरी मस्जिद तक एक बड़ी सी नहर का निर्माण भी करवाया। जिसका का पानी रात के समय चाँद की रौशनी से शीशे की तरह जगमगा कर एक अलग ही लोक का नजारा पेश किया करता था। उसी स्वप्न लोक का आनंद लेने के लिए शाम के वक्त शाही परिवार और अमीर-उमरा अपनी-अपनी कश्तियों में वहां सैर कर वक्त गुजारते थे। जिसके लिए देश के बेहतरीन नाविकों को यहां काम मिलता था। उस समय कश्तियाँ चप्पू के बजाय बल्लियों की सहायता से खेयी जाती थीं। आज भी बंगाल-असम जैसे इलाकों में नावों को दिशा देने के लिए बल्लियों का सहारा लिया जाता है। बल्ली को कुशलता पूर्वक उपयोग करने वाले को बल्ली मार कहा जाता था। चूँकि वे लोग शाही परिवारों और उच्च वर्ग की नाव खेते थे इसलिए उनका उस जमाने में अच्छा रसूख हुआ करता था। इसी कारण उन्हें उस जमाने के ''पॉश'' इलाके में रहने की जगह प्रदान की गयी थी। उन्हीं के काम के नाम पर उस जगह का नाम बल्ली मारान पड़ गया यानी बल्ली मारने वालों की जगह। अब ना तो कोई नहर है, ना कश्ती और नाहीं बल्लीमार वक्त की आंधी ने सब कुछ बदल कर रख दिया है आज उस तंग सी जगह में सायकिल, रिक्शा, ठेला, स्कूटर, मोटर सायकिल सब ठूंसे पड़े हैं पर अपने-अपने इत्मीनान में ! कुछ तो है यहां, इसका सम्मोहन, इसका अपनापन, इसकी आत्मीयता, इसकी ऐतिहासिकता, जो लाख अड़चनों, कमियों, मुश्किलों के बावजूद लोगों को अपने से जुदा नहीं होने देता ! इसी कारण अभी भी दिल्ली की गलियों में कूचा, कटरा जैसे जगहों के नाम जीवित हैं।
5 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को नव संवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा व चैत्र नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/04/2019 की बुलेटिन, " नव संवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा व चैत्र नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम जी, आपको भी सपरिवार मंगलकामनाएं
बल्लीमारान तो मैं एक आध बार जा रखा हूँ लेकिन यह नई और रोचक जानकारी उसके विषय में प्राप्त हुई। आभार।
विकास जी, सदा स्वागत है
शास्त्री जी, चयन के लिए हार्दिक आभार
एक टिप्पणी भेजें