शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

श्रीनाथद्वारा, नंदनंदन श्रीकृष्ण जी का मंदिर

मुख्य मंदिर में श्री नाथ जी की अत्यंत सुंदर, मनमोहक काले रंग के संगमरमर से बनी करीब-करीब आदमकद की प्रतिमा विराजमान है, जिसके मुख के नीचे ठोड़ी पर एक हीरा जड़ा हुआ है | यहां श्रीनाथजी के दर्शनों का समय निर्धारित है। कुल मिला कर आठ दर्शन होते हैं, मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थपन, भोग, आरती और शयन। प्रभू के प्रत्येक दर्शन का श्रृंगार अलग होता है। इसीलिए ब्रज के मंदिरों की तरह ही यहां रुक-रुक कर दर्शन करने को मिलते हैं..........!


#हिन्दी_ब्लागिंग   
श्रीनाथद्वारा, पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है। जो राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। यहां नंदनंदन, आनंदकंद श्रीकृष्ण जी का तीन सौ साल से भी पुराना भव्य मंदिर है। यह देवस्थल उयदयपुर से सिर्फ 48 की.मी. की दूरी पर है। कहा जाता है कि प्रभु श्रीजी का प्राकट्य ब्रज के गोवर्धन पर्वत पर जतिपुरा गाँव के निकट हुआ था। पर मुगलों के आक्रमण के समय इसकी पवित्रता और सुरक्षा के लिहाज से इसे वहां से हटा लिया गया। मूर्ती को राजस्थान लाने का जिम्मा मेवाड़ के राजा राजसिंह ने लिया था। जिस बैलगाड़ी में विग्रह को लाया जा रहा था, उस बैलगाड़ी के पहिये नाथद्वारा में आकर मिट्टी में धंस गये और लाख कोशिशों के बाद भी गाडी को आगे नहीं ले जाया जा सका। तब पुजारियों ने श्रीनाथजी को यहीं स्थापित कर दिया। उस समय मंदिर बनाने का समय उपलब्ध ना होने के कारण प्रतिमा को एक हवेली में ही विधि-विधान पूर्वक स्थापित कर दिया गया था। इसीलिए यह मंदिर परंपरागत मंदिरों की तरह नहीं है। हवेली में स्थित होने के कारण ही इस मंदिर को श्रीनाथ जी की हवेली भी कहा जाता है।
 मंदिर में पहुँच के लिए तीन द्वार हैं। जो मोतीमहल दरवाजा, नक्कारखाना द्वार तथा प्रीतम पोल कहलाते हैं। मोतीमहल से प्रवेश करने पर पहले श्री लालन मंदिर मिलता है, जहां बाल गोपाल के दर्शन होते हैं। नक्कारखाने से प्रवेश करने पर एक खुली जगह आती है जो पुरुषों के इन्तजार के काम आती है। यहां से श्रीनाथ जी के सीधे दर्शन किए जाते हैं। महिलाओं के लिए पास में ही संगमरमरी विशाल कमल चौक है जो घूम कर नक्कारखाने से आ मिलता है। इधर से महिलाओं के लिए दर्शन की व्यवस्था है। प्रीतम पोल से बाहर बाजार की तरफ जाया जा सकता है।




मुख्य मंदिर में श्री नाथ जी की अत्यंत सुंदर, मनमोहक काले रंग के संगमरमर से बनी करीब-करीब आदमकद की प्रतिमा विराजमान है, जिसके मुख के नीचे ठोड़ी पर एक हीरा जड़ा हुआ है | यहां श्रीनाथजी के दर्शनों का समय निर्धारित है। कुल मिला कर आठ दर्शन होते हैं, मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थपन, भोग, आरती और शयन। प्रभू के प्रत्येक दर्शन का श्रृंगार अलग होता है। इसीलिए ब्रज के मंदिरों की तरह ही यहां रुक-रुक कर दर्शन करने को मिलते हैं।
 नक्कारखाना द्वार 

हम लोग मेवाड़ एक्स. से सुबह साढ़े सात के लगभग उदयपुर पहुंच गए थे। बुक की हुई गाड़ियों को लेकर करीब साढ़े नौ बजे होटल यूई (Yois) पहुंचे। तरण-ताल का उपयोग कर तरोताजा हो बारह बजे के कुछ बाद हल्दी घाटी के लिए रवाना हुए। नयी जगह, अनजान रास्ते का सहारा गूगल ही था; उसकी मेहरबानी थी कि वह कुछ मान-मनौअल, कुछ नखरे के बावजूद राह दिखाता रहा। हल्दीघाटी, चेतक की समाधि और राणा प्रताप संग्रहालय देखने के बाद करीब चार बजे श्री नाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा रवाना हुए। आखिर भीड़-भाड़, संकरी गलियों, दूर की पार्किग से जैसे-तैसे निबट कर प्रभू के द्वार पहुंच ही गए। अप्रैल का मध्य था गर्मी अपना जोर दिखाने लग गयी थी, जिससे कुछ-कुछ थकान का एहसास होने लगा था। ऊपर से पंडों-दलालों की किच-किच ! पर मेरा शुरू से ही यह इरादा रहता है कि बिना किसी सहायता के खुद अपने बल-बूते पर ही दर्शन किए जाएं। इससे मन में किसी तरह का अपराध बोध नहीं आता। आजकल ये सारी बातें हर धार्मिक स्थल पर आम हो गयीं हैं। माया की माया का जाल सब जगह फ़ैल चुका है। फिर भी दर्शनों की अटूट इच्छा के सामने ऐसी सब बातें हर तरह से गौण हो जाती हैं।
दर्शनोपरांत 
जब हम नक्कारखाना द्वार पर पहुंचे, उस समय भी मंदिर के कपाट शृंगार के कारण बंद थे। नियमानुसार जूते वगैरह उतार, हाथ-मुंह धो, कैमरा, मोबाइल, बड़े बैग-पर्स सब जमा करवा कर महिलाओं और पुरुषों का अलग-अलग लाइनों में लगना हुआ। तभी दस मिनट के बाद पंद्रह मिनटों के लिए किवाड़ खुले, अपार जनसमूह, जय-जैकार, धक्का-मुक्की, सबको दर्शन करने की बेताबी, दर्शनों को जितना हो सके लंबा खींचने की कामना और दर्शनोपरांत भी हटने की अनिच्छा कभी-कभी अराजकता भी उत्पन्न कर देती थी। वैसे ऐसा होना स्वाभाविक भी है ! दूर-दूर से आए दर्शनार्थी, जिनमें कइयों का दोबारा आना शायद ही संभव हो, मनमोहन की छवि को जैसे सदा के लिए अपने नयनों में बसा लेना चाहते हों। हो भी क्यों ना ! श्री नाथ जी के दर्शन कर किसका मन भावविभोर नहीं हो जाता है | हमें भी दर्शन हुए ! भले ही कुछ दूर से हुए, पर खूब हुए ! नयन तृप्त हुए, मन भाव-विभोर हो गया।

नाथद्वारा बाजार 
होटल का तरण-ताल 
तीन-चार मिनट तक जन सैलाब के थपेड़े, मानव हुजूम का झंझावात सहने के बाद प्रभू को आँखों में समोए किसी तरह बाहर आए, प्रसाद लिया। सबको इकठ्ठा होने में कुछ समय लगना ही था, लगा। फिर कार पार्किंग के स्थान को लेकर हुए दिशा भ्रम को स्थानीय लोगों की मदद से दूर कर करीब छह बजे वापस उदयपुर की ओर का रूख हो पाया। होटल के तरण-ताल के कुछ-कुछ ठंडे पानी ने दिन भर की थकान को जैसे अपने में समेट हमें फिर से तरो-ताजा कर दिया। 

3 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, शिवम जी

ज्योति सिंह ने कहा…

मैं भी यहाँ के दर्शन लाभ ले चुकी हूं ,अद्भुत मंदिर है ,जय श्री कृष्ण गोविंद जय श्री नाथ जी को प्रणाम

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी, जितनी ख्याति उतनी भीड़, धक्कम-धुक्का, रेलम-पेल, पैसे का खेल !

विशिष्ट पोस्ट

इतिहास किसी के प्रति भी दयालु नहीं होता

इतिहास नहीं मानता किन्हीं भावनात्मक बातों को ! यदि वह भी ऐसा करता तो रावण, कंस, चंगेज, स्टालिन, हिटलर जैसे लोगों पर गढ़ी हुई अच्छाईयों की कहा...