गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

ग़ालिब की हवेली और गली कासिम जान

ग़ालिब की हवेली के साथ जुड़े दो नाम और सामने आते हैं; पहला गली बल्लीमारान तथा दूसरा गली कासिम जान ! बल्लीमारान के बारे में तो ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और पता चल गया कि शाही किश्तियों के खेवनहार को बल्लीमार कहते थे इसीलिए उनकी रहने की जगह बल्लीमारान के रूप में जानी जाने लगी। पर गली कासिम जान के बारे में पता नहीं चल पा रहा था कि वह कौन था जिसके नाम से इस गली का नामकरण हुआ ! नाम से भी साफ़ जाहिर नहीं हो पा रहा था कि यह पुरुष का नाम है या किसी महिला का.........!

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मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब ! अब इस नाम से कौन वाकिफ़ नहीं है ! इसलिए आज बात करते हैं, इनकी यादों से जुडी उस हवेली की जो आज भी पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक बाज़ार की एक गली बल्लीमारान की एक उप-गली कासिम जान में खड़ी है, जहां इस महान शख्सियत का 1865 से 1869 तक का अंतिम समय गुजरा था। गली बल्लीमारान में दो सौ मीटर जाकर दायें हाथ को आती है गली कासिम जान, इसमें मुड़ते ही तीसरा या चौथा मकान है---ग़ालिब की हवेली । हालाँकि ग़ालिब यहाँ किराये पर ही रहते थे, लेकिन इस मकान का एक हिस्सा सरकार ने लेकर एक संग्राहलय बना दिया है।   



जब किसी ख़ास स्मारक इत्यादि की बात होती है तो अनायास ही उससे जुड़े स्थानों या जगहों के बारे में जानने की जिज्ञासा भी उत्पन्न हो ही जाती है। अब चाँदनी चौक जैसी मशहूर जगह को छोड़ दें तो इस इमारत से जुड़े दो नाम सामने आते हैं; पहला बल्लीमारान तथा दूसरा कासिम जान। बल्लीमारान के बारे में तो ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी और पता चल गया कि शाही किश्तियों के खेवनहार को बल्लीमार कहते थे इसीलिए उनकी रहने की जगह बल्लीमारान के रूप में जानी जाने लगी। पर कासिम जान के बारे में पता नहीं चल पा रहा था कि वह कौन था जिसके नाम से इस गली का नामकरण हुआ ! नाम से भी साफ़ जाहिर नहीं हो पा रहा था कि यह पुरुष का नाम है या किसी महिला का ! काफी खोजबीन के बाद यह जानकारी हासिल हुई कि ये जनाब 1750 के दौरान लाहौर के गवर्नर मोईन-उल-मुल्क की कचहरी के एक मुलाजिम थे, जो 1750 में दिल्ली आ कर शाह आलम द्वितीय की कचहरी में काम करने लगा। जल्दी ही उसके काम से खुश को उसे नवाब की पदवी तथा रहने को लाल किले के पास बल्लीमारान में जगह दे दी गयी। उसी के नाम से उस गली का नाम गली कासिम जान पड गया। उसने वहां एक मस्जिद का निर्माण भी करवाया जिसे ''कासिम खानी मस्जिद'' के नाम से जाना जाता है। इन्हीं कासिम जान के एक भाई आरिफ जान के लड़के इलाही बख्श जान की लड़की उमराव बेगम के साथ ग़ालिब का निकाह हुआ था। 







ग़ालिब के अंतिम दिनों की गवाह यह हवेली वर्षों तक गुमनामी में रही, लोगों ने उसे हथिया कर घर-दुकानें बना लीं। फिर गुलज़ार जी जैसे कुछ लोगों के प्रयास और सरकार की कोशिश से लोगों को हटाया गया और इसे ग़ालिब संग्रहालय का रूप दे, ग़ालिब के जन्म दिन 27 दिसंबर 2000 पर अवाम को समर्पित कर दिया गया। कोशिश यही रही कि संग्रहालय का रूप-रंग-माहौल अपने वास्तविक रूप में ही नज़र आए। हालांकि अभी हवेली का एक ही हिस्सा अवाम के लिए उपलब्ध है पर उसके रख-रखाव पर कोई कोताही नहीं बरती जाती है, दर्शक अभी भी लखौरी ईटों, बलुए पत्थर के फर्श, लकड़ी के दरवाजे-छज्जों को देख, अपने आप को उस बीते समय से जुड़ा पाता है। 



शायर से जुडी वस्तुएं, उनके हस्तलिखित पत्र, दीवान, उनके फोटो, किताबें यहां सुरक्षित रख प्रदर्शित की गयी हैं। इसी के साथ उनकी एक प्रतिकृति भी देखने को मिलती है जिसमें वे हाथ में हुक्का थामे बैठे हुए दिखते हैं। उसी के साथ ही उनके रोजमर्रा के काम आने वाले बर्तन भी प्रदर्शित हैं। दीवारों पर भी उनके विशाल चित्रों के साथ उनकी शायरी उकेरी गयी है। वातावरण पूर्णतया शांत है। सुरक्षा हेतु एक सुरक्षा कर्मी भी तैनात है जो आप अकेले हों तो आपकी फोटो लेने में भी सहायता करता है। 







कई बार जानकारी होने के बावजूद विभिन्न कारणों से हम ऐसी जगहों पर जा नहीं पाते पर कोशिश होनी चाहिए कि ऐसी धरोहरों को हम तो देखें ही आज की पीढ़ी को भी इनसे अवगत कराएं। 

10 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/04/2019 की बुलेटिन, " विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक चित्रमय प्रस्तुति...आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कैलाश जी, "कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है"

अमित निश्छल ने कहा…

अनसुने पहलुओं से अवगत कराने के लिए आभार एवं सादर धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अमित जी, सदा स्वागत है

Chetan sharma ने कहा…

Bahut hi utkrisht ullekh kiya gaya hai..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Chetan ji, kabhi mouka mile to ek baar jarur jaaen .

रेणु ने कहा…

प्रिय गगन जी -- ये दुर्लभ लेख और अनमोल सामग्री पढ़कर मन को अपार हर्ष हुआ और मैं धन्य हुई | सादर आभार इस सुंदर जानकारी के लिए |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रेणु जी, हार्दिक आभार ! ''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है। आपकी टिपण्णी से संकोचावस्था में पड़ गया हूँ पर ऐसे उदगार ही और बेहतर करने की प्रेणना भी देते हैं।

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