धीरे-धीरे राजा प्रतापमल्ल को रोज-रोज इतनी दूर मंदिर में आना-जाना अखरने लगा तो उन्होंने नीलकंठ भगवान की एक मूर्ति राजमहल में ही स्थापित करवा ली। इससे भगवान नाराज हो गये और उन्होंने स्वप्न में आ राजा को श्राप दिया कि अब से तुम या तुम्हारा कोई भी उत्तराधिकारी यदि बूढा नीलकंठ हमारे दर्शन करने आएगा तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा ! तब से सैकड़ों सालों के बाद आज भी राजपरिवार का कोई भी सदस्य वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है.......!
#हिन्दी-ब्लागिंग
पिछले दिनों हमारे यहां मंदिर प्रवेश को लेकर काफी गुल-गपाड़ा मचा रहा। जिसमें इसकी-उसके अधिकार की बातें, कोर्ट-कचहरी, धर्म-अधर्म, राजनीती-सियासत सब तरह के रंग सामने आते रहे। ऐसे में एक ऐसे मंदिर की भी बात सामने आई, जहां खुद वहाँ के राजा का भी प्रवेश निषेद्ध है ! जी हाँ ! नेपाल में विष्णु भगवान का एक ऐसा मंदिर है जिसमें वहां के राजा को भी प्रवेश की मनाही है। जिसका कारण राजा खुद ही था !
राजधानी काठमांड़ू से नौ-दस की.मी. की दूरी पर शिवपुरी पहाड़ी के पास बूढ़ा नीलकंठ मंदिर स्थित है। प्रवेश-द्वार के सामने ही विशाल जलकुंड बना हुआ है। जिसमें शेषनाग के ग्यारह फणों के छत्र वाली शेष शैय्या पर शयन कर रहे भगवान विष्णु की चर्तुभुजी प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा का निर्माण काले पत्थर की एक ही शिला से हुआ है।प्रतिमा की लम्बाई 5 मीटर है एवं जलकुंड की लम्बाई करीब 13 मीटर की है। जिसे बूढा नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। मंदिर का नाम नीलकंठ है जो भगवान शिव का एक नाम है। द्वार पर भी श्री कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमाएं लगी पर यहां मूर्ति भगवान विष्णु जी की है ! तब इसका नाम बूढ़ा नीलकंठ कैसे हो गया ? इसके पीछे जनश्रुति है कि समुद्र-मंथन के समय विषपान करने के पश्चात जब भगवान शिव का कंठ जलने लगा तब उन्होंने विष के प्रभाव शांत करने के लिए जल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक स्थान पर आकर त्रिशूल का प्रहार किया जिससे एक झील का निर्माण हुआ। मान्यता है कि बूढा नीलकंठ में वहीं से जल आता है, जिसको गोसाईंकुंड के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में विष्णु प्रतिमा के साथ भगवान शिव के विग्रह का प्रतिबिंब भी जल में दिखाई देता है।
इसकी स्थापना की किंवदन्ती के अनुसार एक किसान खेत की जुताई कर रहा था तभी उसका हल एक पत्थर से टकराया तो वहां से रक्त निकलने लगा। जब उस भूमि को खोदा गया तो बूढ़ा नीलकंठ की यह प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसके पश्चात उसे यथास्थान पर स्थापित कर दिया गया। तभी से नेपाल के निवासी बूढ़ा नीलकंठ का अर्चन-पूजन करते आ रहे हैं। पर एक विचित्र बात जो यहां से जुडी हुई है कि राजा, जो खुद भगवान का प्रतिनिधि होता है, उसी का यहां प्रवेश निषेद्ध है ! वैसे इसका जिम्मेवार राजा खुद ही था।
बात तक़रीबन 17वीं शताब्दी की है। जब नेपाल के तत्कालीन नरेश राजा प्रतापमल्ल रोज भगवान के दर्शन करने हनुमान ढोका स्थित अपने महल से यहां आया करते थे। पर मतिभ्रम के चलते उन्होंने खुद को ही विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। धीरे-धीरे उन्हें रोज इतनी दूर आना-जाना अखरने लगा तो उन्होंने नीलकंठ भगवान की एक मूर्ति राजमहल में ही स्थापित करवा ली। इससे भगवान नाराज हो गये और उन्होंने स्वप्न में आ राजा को श्राप दिया कि अब से तुम या तुम्हारा कोई भी उत्तराधिकारी यदि बूढा नीलकंठ हमारे दर्शन करने आएगा तो वह मृत्यु को प्राप्त होगा। तब से आज तक राजपरिवार का कोई भी सदस्य वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है।
वैसे भगवान विष्णु के इसी स्वरूप की एक और मूर्ती राजधानी के निकट बालाजू उद्यान में भी स्थित है जो असली मूर्ति से कुछ छोटी है। राजपरिवार के सदस्य यहीं प्रभू के दर्शन करने जाते हैं। नवम्बर माह में मुख्य मंदिर के साथ ही देव उठनी एकादशी को यहां भी बड़ा भारी मेला लगता है, दूर-दूर से लोग अपनी मनौतियां ले कर आते हैं। इस मंदिर की भी काफी मान्यता है।
6 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
परंपरा से चली आती मान्यताओं का आदर और निर्वाह हमारी संस्कृति का स्वभाव है.वैज्ञानिकता के नाम पर उन्हें मिथ्या बता कर उल्लंघन करनाे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.लेकिन इससे कोई लाभ नहीं क्योंकि बहुत सी वास्तविकताओं से हम अनजान हैं.ऐसे बहुत से उदाहरण भारत में ही नहीं संसार के अनेक देशों में हैं -रहस्य का एक अपना आकर्षण होता है.
सहमती है आपसे
सहमती है आपसे
हमारी संस्कृति का स्वभाव है
सहमत !
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