दादा भाई नारौजी गरीब परिवार से थे उस पर सिर्फ चार साल की उम्र में उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी माँ ने उन्हें कैसे पाला होगा इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है। हमारे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बेहद साधारण परिवार से थे। लाल बहादुर शास्त्री को कौन नहीं जानता, पैसों की कमी की वजह से कई बार वे तैर कर नदी पार कर पढ़ने जाते थे। हमारे सबसे लायक राष्ट्रपति कलाम साहब को बचपन में अखबार का वितरण करना पड़ा था। ऐसे नाम कम नहीं हैं सरदार पटेल, गोपाल कृष्ण गोखले, जगजीवन राम, कामराज जैसे नेताओं का जन्म साधारण परिवारों में हुआ बचपन अभावों में बीता पर उन्होंने अपनी लियाकत से देश और अपना नाम ऊंचा किया
समझ नहीं आता हम लोगों की सोच, विचार, संस्कार सब क्यों और कैसे तिरोहित हो गए हैं। वैचारिक मतभेद तो हर समय से ही रहते आए हैं पर कभी उसके लिए एक दूसरे की छीछालेदर नहीं की जाती थी। पर आज आपसी कटुता अब व्यक्तिगत रूप से निकलने लगी है। अपनी छलनी के छेदों की तरफ ध्यान देने की बजाए दूसरे के सूप की कमियां गिनाई जाने लगी हैं।
समझ नहीं आता हम लोगों की सोच, विचार, संस्कार सब क्यों और कैसे तिरोहित हो गए हैं। वैचारिक मतभेद तो हर समय से ही रहते आए हैं पर कभी उसके लिए एक दूसरे की छीछालेदर नहीं की जाती थी। पर आज आपसी कटुता अब व्यक्तिगत रूप से निकलने लगी है। अपनी छलनी के छेदों की तरफ ध्यान देने की बजाए दूसरे के सूप की कमियां गिनाई जाने लगी हैं।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। पक्ष-विपक्ष के लाख वैचारिक मतभेद हों, सदन के अंदर-बाहर एक-दूसरे का मान-सम्मान जरूर रखा जाता था। पंडित नेहरु के कम विरोधी नहीं थे। इंदिरा गांधी के समय विपक्ष चुप नहीं बैठता था, और तो और राजनीती से बिल्कुल अंजान राजीव गांधी पर भी विरोधियों ने कभी घटिया आक्षेप नहीं किए। एक मर्यादा हुआ करती थी, जिसका सदा ध्यान रखा जाता था। पर इधर पिछले दो साल से भी ज्यादा समय से कुछ लोग देश के बदले हालात को हजम नहीं कर पा रहे हैं। खासकर देश की सबसे पुरानी पार्टी के नए तथाकथित नेताओं का बिना कुछ समझे-बूझे, बिना अपने दल का इतिहास जाने, सिर्फ अपने आकाओं को खुश करने के लिए विपक्ष के नेता का तरह-तरह के संबोधनों और उनके व्यवसाय को लेकर मजाक बनाना रोज का काम हो गया है। उधर विपक्ष में भी संत या साधू नहीं बैठे हैं तो जाहिर है आप जैसा व्यवहार करोगे उसी तरह का जवाब भी उधर से आएगा। दोनों तरफ के जिम्मेदार लोगों को इस तरफ ध्यान दे सामने वाले की मान-मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। दूसरे का माखौल उड़ाने का मतलब है आप उन लाखों लोगों का मजाक बना रहे हो जिन्होंने उस शख्स को अपना मत दे कर विजयी बनाया है।
इसमें उस पार्टी का ज्यादा फर्ज बनता है जिसने आजादी के पहले से लोगों के दिलों पर राज किया है। उस के नेताओं को अपने येन-केन-प्रकारेण दल में जगह पा गए उन महत्वाकांक्षी युवकों को समझाने का है, जिन्हें ना देश का नाहीं दल के इतिहास के बारे में कोई ख़ास इल्म है। उन्हें बताया जाना चाहिए कि किसी की मेहनत और लियाकत को उसके परिवार या उसके व्यवसाय से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। देश में दसियों ऐसे लोकप्रिय नेता हुए हैं जिनका बचपन घोर अभावों से गुजरा था। दादा भाई नारौजी गरीब परिवार से थे उस पर सिर्फ चार साल की उम्र में उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी माँ ने उन्हें कैसे पाला होगा इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है।
हमारे पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बेहद साधारण परिवार से थे। लाल बहादुर शास्त्री को कौन नहीं जानता, पैसों की कमी की वजह से कई बार वे तैर कर नदी पार कर पढ़ने जाते थे। हमारे सबसे लायक राष्ट्रपति कलाम
साहब को बचपन में अखबार का वितरण करना पड़ा था। ऐसे नाम कम नहीं हैं सरदार पटेल, गोपाल कृष्ण गोखले, जगजीवन राम, कामराज जैसे नेताओं का जन्म साधारण परिवारों में हुआ बचपन अभावों में बीता पर उन्होंने अपनी लियाकत से देश और अपना नाम ऊंचा किया। यदि कल नितीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान, ममता, मानिक सरकार जैसे लोग देश के सर्वोच्च पद पर पहुँच जाएँ तो क्या उनका
इसीलिए मजाक उड़ाया जाएगा कि ये लोग अभावों की जिंदगी जी कर आए हैं ? फिर इस तरह के नवधनाढ्यों को यह समझना जरुरी है कि देश की संपदा को हड़पने से तो कहीं-कहीं बेहतर है चाय बेचना। काम कोई भी हो यदि उससे परिवार की गाडी चलती हो तो वह हेय नहीं है। और यदि आप उस काम को या उसके करने वाले को नीचा समझते हैं तो आप देश की उस मेहनतकश अधिकाँश आबादी की तौहीन कर रहे हैं जो मेहनत-मशक्कत से अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं।
इसमें उस पार्टी का ज्यादा फर्ज बनता है जिसने आजादी के पहले से लोगों के दिलों पर राज किया है। उस के नेताओं को अपने येन-केन-प्रकारेण दल में जगह पा गए उन महत्वाकांक्षी युवकों को समझाने का है, जिन्हें ना देश का नाहीं दल के इतिहास के बारे में कोई ख़ास इल्म है। उन्हें बताया जाना चाहिए कि किसी की मेहनत और लियाकत को उसके परिवार या उसके व्यवसाय से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। देश में दसियों ऐसे लोकप्रिय नेता हुए हैं जिनका बचपन घोर अभावों से गुजरा था। दादा भाई नारौजी गरीब परिवार से थे उस पर सिर्फ चार साल की उम्र में उनके पिता की मृत्यु के पश्चात उनकी माँ ने उन्हें कैसे पाला होगा इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है।
साहब को बचपन में अखबार का वितरण करना पड़ा था। ऐसे नाम कम नहीं हैं सरदार पटेल, गोपाल कृष्ण गोखले, जगजीवन राम, कामराज जैसे नेताओं का जन्म साधारण परिवारों में हुआ बचपन अभावों में बीता पर उन्होंने अपनी लियाकत से देश और अपना नाम ऊंचा किया। यदि कल नितीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान, ममता, मानिक सरकार जैसे लोग देश के सर्वोच्च पद पर पहुँच जाएँ तो क्या उनका
इसीलिए मजाक उड़ाया जाएगा कि ये लोग अभावों की जिंदगी जी कर आए हैं ? फिर इस तरह के नवधनाढ्यों को यह समझना जरुरी है कि देश की संपदा को हड़पने से तो कहीं-कहीं बेहतर है चाय बेचना। काम कोई भी हो यदि उससे परिवार की गाडी चलती हो तो वह हेय नहीं है। और यदि आप उस काम को या उसके करने वाले को नीचा समझते हैं तो आप देश की उस मेहनतकश अधिकाँश आबादी की तौहीन कर रहे हैं जो मेहनत-मशक्कत से अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं।
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
यशोदा जी,
आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-05-2016) को "गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग" (चर्चा अंक-2350) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बुद्ध पूर्णिमा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
शुभकामनाओं के साथ आभार
आपने एक मौलिक समस्या को उठाया है। निश्चित ही हमें श्रम का सम्मान करना चाहिए। यह हमारे समाज का आधार है। श्रम छोटा या बडा नहीं होता। मैं आपकी बात का जबरदस्त समर्थन करता हूँ।
आपने एक मौलिक समस्या को उठाया है। निश्चित ही हमें श्रम का सम्मान करना चाहिए। यह हमारे समाज का आधार है। श्रम छोटा या बडा नहीं होता। मैं आपकी बात का जबरदस्त समर्थन करता हूँ।
Sahi mudda uthaya hai apne
Sahi mudda uthaya hai apne
Manish ji
sadaa sawagat haiaapka
Sunita ji,
Swagat hai
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