देश में रेल चलने के करीब 34 साल के अंदर, उस समय हावड़ा-सियालदह रेल लाइनों को जोड़ने वाला, हुगली नदी पर बना यह पहला और देश के पुराने पुलों में से एक सबसे अहम रेल पुल था, जिसे 129 साल की सेवा के पश्चात इसी साल 17 अप्रैल को सेवा-मुक्त कर दिया गया है !
हावड़ा और फिर सियालदह होते हुए घर आने के दो-अढ़ाई घंटों के समय और करीबअस्सी किलोमीटर के फासले को तय करने की जहमत से बच जाता था।
पिछले दिनों एक रेल पुल, जुबली ब्रिज, को सेवानिवृत्त कर दिया गया। वैसे तो ऐसा होता ही रहता होगा पर इसके साथ मेरी कई यादें जुडी होने के कारण यह घटना मेरे लिए ख़ास बन गयी है। इस पुल के कारण अनगिनत बार मैं करीब 80 की. मी. की अतिरिक्त यात्रा से बचता रहा हूँ, जब बैंडेल स्टेशन पर दूरगामी गाडी से उतर, लोकल ट्रेन से नैहाटी (नईहट्टी) स्टेशन होते हुए अपने घर आ जाता था और बैंडेल से
पुराना पुल |
वैसे तो पश्चिम बंगाल में रेल पटरियों का जाल बिछा हुआ है। पर दो लाइनें प्रमुख हैं, जो हुगली (गंगा) नदी के दोनों तरफ स्थित हैं और रोज लाखों यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाती हैं। एक शुरु होती है हावड़ा स्टेशन से तथा दूसरी सियालदह से। इन्हीं की बदौलत बंगाल देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ा हुआ है। सियालदह वाली लाइन दो पुलों पर से नदी पार कर हावड़ा लाइन से जुड़ती है। उनमें पहला है विवेकानंद सेतु या बाली पुल, 1932 में शुरू हुआ यह एक रेल-रोड़ पुल है। इसकी हालत को देखते हुए इसी के करीब एक और पुल का निर्माण किया गया है जिसका नाम भगिनी निवेदिता के नाम पर रखा गया है और दोनों को एक तरफा रास्ता बना दिया गया है।
नया पुल |
इस "नट-बोल्ट" की जगह "रिवेट" से जोडे गए करीब सवा सौ साल पुराने जुबली पुल से अंतिम बार गुजरने वाली गाडी तिस्ता-तोरसा एक्स. थी। जिसके बाद रेलवे ने बैंडेल-नैहाटी मार्ग को नए जुबली पुल से जोड़ दिया है। पर वर्षों पहले कठिन परिस्थियों और बेहद कम सहूलियतों के बावजूद इसके निर्माण से इस इलाके में रहने वाले लोगों का गाड़ी पकड़ने के लिए घंटों बर्बाद कर हावड़ा जाने की मजबूरी का ख़त्म होना वर्षों तक पुराने पुल की याद को दिलों में बसाए रखेगा।
8 टिप्पणियां:
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्थानापन्न मिल जाये तो भी ,जिन लोगों ने कठिनाई से राहत पाई है उस बहुत दिनों की सुविधा को कृतज्ञ मन याद करता ही है .
बहुत अच्छी और सार्थक जानकारी। धन्यवाद
शास्त्री जी, आभार
प्रतिभा जी, बिल्कुल सही कहा आपने
रश्मि जी,सदा स्वागत है
@JEEWANTIPS
टिप्स छोटी ही सही पर जीवनोपयोगी होती हैं
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