शनिवार, 14 मई 2016

जहां भी देखें पानी की बर्बादी, आवाज उठाएं !

किसी भी शहर में ऐसे नज़ारे आम हैं जहां सुबह-सबेरे अधिकाँश बंगलों में कारें, कुत्ते, आंगन, गलियारों पर हजारों लीटर पानी की बर्बादी एक शगल है, बिना किसी झिझक या अपराध बोध के। इनके लिए पानी की राष्ट्रव्यापी  समस्या की खबर उतनी ही अहमियत रखती है जितनी किसी शुक्रवार को किसी फिल्म की रिलीज !                 

गर्मी की पताका फिर एक बार कमोबेस पूरे देश पर फहरा रही है। उसके साथ ही करीब आधी आबादी का पानी की किल्लत से जूझना भी शुरू हो गया है। साल दर साल से ऐसा होता चला आ रहा है, पर लगता नहीं कि जिम्मेदार लोगों को, चाहे वे किसी भी राजनैतिक दल से हों, इसकी फ़िक्र कभी भी सताती हो। यदि ऐसा होता तो क्या प्यासे खेतों की बजाए क्रिकेट के मैदान पानी से सींचे जाते ? वे भी जानते हैं कि जैसे ही एक-डेढ़ महीने में बरसात का मौसम आया वैसे ही सब को सब कुछ भूल जाएगा। पर शायद उनका ध्यान इस ओर नहीं जाता कि बढ़ती आबादी और घटते जल-स्तर के कारण दिन पर दिन हालात बेकाबू होने की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। दुनिया भर में पीने के पानी की कमी को दूर करने के उपाय हो रहे हैं पर कड़वी सच्चाई है कि हमारे नेताओं को अपनी कुर्सी को बचाने की सियासत के सिवा कुछ नहीं सूझता।  

पानी के खात्मे को लेकर तरह-तरह की डरावनी तस्वीरों को सामने लाने के बजाय लोगों को जागरूक बनाने की जरुरत है। एक तरफ तो सरकार के द्वारा लाखों रुपये खर्च कर पानी को लेकर, आज चारों ओर लोगों को जागरुक बनाने की मुहीम चलाई जा रही है, रोज-रोज डरावनी तस्वीरें पेश कर इसके खत्म होने का डर दिखाया जा रहा है, पर दूसरी तरफ उसी सरकार के मुलाजिम और कुछ रसूखदार लोगों के यहां पानी इतनी बेदर्दी से बहाया जाता है कि उनके अहम और नासमझी को देख कर कोई भी तैश खाए बिना नहीं रह सकता। आम इंसान जो गीले कपडे से अपनी कार को पौंछ कर साफ़ कर लेता है वहीं इनकी कारें पाइप लगा कर धोई जाती हैं, वह भी इंच दर इंच, रेशा दर रेशा। ऐसे लोगों के कान पर किसी भी खबर या समाचार से जूं तक नहीं रेंगती।

ऐसी तस्वीरें लोगों का दिल क्यों नहीं दहलातीं 
अभी कुछ दिनों पहले #रायपुर जाना हुआ था। वहाँ पड़ोस के घर की तीन कारों को, जो रोज चलती भी नहीं थीं, उनको रोज धुलते देखना एक यंत्रणा के समान था। पर एक दिन तो हद ही हो गयी जब उन साहबान के रिश्तेदारों की गाड़ियां भी वहां ला कर धुलते दिखीं, पता चला कि हफ्ते में दो-तीन बार ऐसा होता है। तब तो रहा ना गया और उन साहबान के मुलाजिम को कुछ सख्त लहजे में हड़काया। उसने निश्चित तौर पर अंदर खबर पहुंचाई होगी, तब जा रोज का धुलना तीसरे दिन पर जा करअटका। यह कोई एक घर की बात नहीं है, किसी भी शहर में ऐसे नज़ारे आम हैं जहां सुबह-सबेरे अधिकाँश बंगलों में कारें, कुत्ते, आंगन, गलियारों पर हजारों लीटर पानी की बर्बादी एक शगल है, बिना किसी झिझक या अपराध बोध के। इनके लिए पानी की राष्ट्रव्यापी  समस्या की खबर उतनी ही अहमियत रखती है जितनी किसी शुक्रवार को किसी फिल्म की रिलीज ! ऐसे ही एक और परिवार, जिसमें गिनती के सिर्फ दो लोग हैं, के यहां पानी के संचय और उसके खर्च को देख कोई भी दांतों तले उंगलियां दबा लेगा। ये "सज्जन"
सरकारी इंजिनियर हैं, मेरे पडोसी। इनके यहां करीब दस हजार लीटर पानी की रोज की खपत है। इनके कपड़ों को धोने के बाद, गिन कर, पूरी पांच बाल्टियों के पानी से गुजरना होता है। रसोई, स्नानगृह, छत और नीचे चार टंकियां लगा रखी हैं जिनके अलावा घर में छोटे-बड़े पानी को संगृहित करने के लिए दसियों उपाय और भी हैं और उपयोगकर्ता सिर्फ दो !!     

ऐसा होता है कि लोग अपने रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी की ऐसी गलत हरकतों पर उन्हें समझाने या कार्यवाही करने में झिझकते हैं या संकोच करते हैं, आपसी संबंध आड़े आ जाते हैं।पर अगला बिना किसी की परवाह किए अपनी दबंगई के सरूर में कुछ भी करने से न तो शर्माता है नाहीं घबराता है। इनको सिर्फ अपने से मतलब होता है।  इनका मानना है कि मेरे 'बोर' के पानी पर मेरा स्वामित्व है, उसे मैं चाहे जैसे भी खर्च करुं ! जाहिर है इनके नौनिहाल भी इन्हीं के नक़्शे-कदमों पर चलेंगे। पर अब जरुरत है ऐसे लोगों के खिलाफ आवाज उठाने की,
क्यों लोग ओह माई गॉड या सो सैड कह कर किनारे हो जाते हैं  
उनकी गलतियों का खामियाजा उन्हें भुगतवाने की, उनकी लापरवाहियों को मीडिया के सहारे जग जाहिर करने की, उनको एहसास दिलाने की, कि पैसे के दम पर हर चीज खरीदी नहीं जा सकती। जब देश की अधिकांश आबादी एक-एक गिलास पीने के पानी के लिए तरस रही हो, गांवों की बहू-बेटियों को मीलों पानी का भार उठा कर घर लाना पड़ता हो, लोगों को रोज की जरूरतें दूषित पानी से पूरी करनी पड़ रही हों तब तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि तुम अपने ऐशो-आराम के लिए इसे फिजूल में बर्बाद करो।  


समझाना और राह पर लाना कुछ मुश्किल है पर असंभव नहीं। दोस्त-मित्र, नाते-रिश्तेदार, अड़ोसी-पडोसी जैसे  रिश्तों को एक तरफ कर उन्हें वक्त की नजाकत का, वक्त रहते एहसास तो दिलाना ही पडेगा ! 

4 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 16 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभारी हूँ, स्नेह बना रहे ।श्र

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-05-2016) को "बेखबर गाँव और सूखती नदी" (चर्चा अंक-2344) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार,स्नेह बना रहे

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