पाराशर संहिता की एक कथा के आधार पर खम्मम के इस मंदिर में हनुमान जी और सुवर्चला जी की पूजा होती है और दर्शनार्थियों का मेल लगा रहता है। अब इस पर बहस हो, ना हो, वाद-विवाद हो, ना हो ! मंदिर तो है ही और वर्षों से मान्यता भी बनी हुई है। आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती
अत्यधिक विचित्रताओं से भरा पड़ा है अपना देश ! और देश तो लोगों से ही बनता है ! तो जैसे लोग वैसा देश। इसका मतलब हम ही विचित्र हैं और शायद ही इतनी विचित्रता किसी और देश के लोगों में होगी ! यह गुण हमारी जीवन-शैली के हर पहलू में झलकता है, चाहे हमारा रहन-सहन हो, चाहे हमारे रीती-रिवाज, चाहे हमारे कर्म-काण्ड, चाहे हमारी मान्यताएं, चाहे हमारी पौराणिक गाथाएं। यदि कोई कश्मीर से कन्याकुमारी या गुजरात से बंगाल कहीं भी चले उसको इसका साक्षात प्रमाण मिलता चला जाएगा। हर जगह के विद्वानों ने स्थापित मान्यताओं का, जगह और परिस्थियों के अनुसार, अपनी-अपनी तरह विश्लेषण किया है। यह बात हमारे दोनों महाग्रंथों में भी नज़र आती है जिसमें समयानुसार कई-कई उपकथाएं जुड़ती चली गयी हैं। ऐसी ही एक कथानुसार देश के दक्षिणी भाग में एक मान्यता हनुमान जी के मंदिर से भी संबंधित है।
हमारे सबसे ज्यादा पूजनीय पांच देवों में से एक हनुमान जी हैं। जिन्हें देश-विदेश में शक्ति, शौर्य, धैर्य, भक्ति, निर्भयता, अमरता तथा अजेयता का पर्याय माना जाता है। देश का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां इनकी पूजा ना होती हो, इनसे जुडी कथाएं सुनी और कही ना जाती हों। ऐसी अटूट मान्यता है कि इन्होंने बाल ब्रह्मचारी रह कर प्रभू राम के सारे कार्यों को संपन्न करवाया था। परन्तु अपने ही देश में तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला की प्रतिमा विराजमान है। यहां की मान्यता है कि जो भी यहां आ कर भक्ति-भाव से हनुमानजी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखमय रहता है। इस मंदिर का आधार पाराशर संहिता की उस कथा पर आधारित है, जिसमें हनुमान जी के सूर्यपुत्री सुवर्चला से हुए विवाह का वर्णन है।
कथा के अनुसार हनुमान जी ने सूर्य देव से उनकी नौ दिव्य विद्याओं को सीखाने के लिए प्रार्थना की थी, जिसके लिए सूर्यदेव भी इन्हें सुयोग्य पात्र मान सहर्ष राजी हो गए थे। शिक्षा के दौरान उन्होंने जब पांच विद्याओं का दान इन्हें दे दिया तो उसके बाद शेष चार विद्याओं को देते समय उनके सम्मुख एक समस्या आ खड़ी हुई। बची हुई उन चार विद्याओं का ज्ञान उसी पात्र को दिया जा सकता था, जिसका विवाह हो चुका हो ! चूँकि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे इसलिए उन्हें यह शिक्षा नहीं दी जा सकती थी पर इसे अधूरा भी नहीं छोड़ा जा सकता था ! सो सूर्यदेव ने उन्हें विवाह कर लेने की सलाह दी पर हनुमान जी इसके लिए राजी नहीं हुए। पर विद्यार्जन करना भी बहुत जरुरी था। प्रभुएच्छा से इसका हल भी निकल आया। सूर्यदेव की एक पुत्री थी, सुवर्चला, जो वर्षों से तपस्यारत थी। सूर्यदेव ने हनुमान जी को उससे विवाह करने के लिए राजी कर लिया क्योंकि सुवर्चला ने विवाह पश्चात फिर अपनी तपस्या में लीन हो जाना था। यह सब बातें जानने के बाद हनुमानजी विवाह के लिए मान गए और सूर्य देव ने दोनों का विवाह करवा दिया। जिसके बाद सुवर्चला पुन: अपनी तपस्या में लीन हो गईं इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ने ब्रह्मचारी बने रह कर उन चार दैवीय विद्याओं को भी प्राप्त कर लिया।
इसी कथा के आधार पर खम्मम के इस मंदिर में हनुमान जी और सुवर्चला जी की पूजा होती है और दर्शनार्थियों का मेल लगा रहता है। अब इस पर बहस हो, ना हो, वाद-विवाद हो, ना हो ! मंदिर तो है ही और वर्षों से मान्यता भी बनी हुई है। आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती।
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
सादर नमस्कार
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