बाप-बेटे में कितनी भी अनबन क्यों ना हो रिश्ते तो रिश्ते ही रहते हैं। अपने फर्ज को निभाने और दुनियां को यह
समझाने के लिए मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर उनका भंडार भरते हैं। इससे उनका मान घटता नहीं बल्कि और भी बढ़ जाता है। इसीलिए इस दिन को पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है
वैसे तो हमारे सभी त्योहार अपना विशेष महत्व रखते हैं। लेकिन मकर सक्रांति का धर्म, दर्शन तथा खगोलीय दृष्टि से विशेष महत्व है। ज्योतिष और शास्त्रों में हर महीने को दो भागो में बांटा गया है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल
पक्ष। जो चन्द्रमा की गति पर निर्भर होता है। इसी तरह वर्ष को भी दो भागो में बांटा गया है, जो उत्तरायण और दक्षिणायन कहलाता है और यह सूर्य की गति पर निर्भर होता है। मकर सक्रांति के दिन से सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर उत्तर की ओर आने लगता है। धनु राशि में सूर्य का आगमन मलमास के तौर पर जाना जाता है। इस राशि में सूर्य के आने से मलमास समाप्त हो जाता है। यह एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हों, किंतु यह बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है।
बाप-बेटे में कितनी भी अनबन क्यों ना हो रिश्ते तो रिश्ते ही रहते हैं। अपने फर्ज को निभाने और दुनियां को यह
समझाने के लिए मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश कर उनका भंडार भरते हैं। इससे उनका मान घटता नहीं बल्कि और भी बढ़ जाता है। इसीलिए इस दिन को पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है। इस अवधि को विशेष शुभ माना जाता है और सम्पूर्ण भारत में मकर सक्रांति का पर्व सूर्य उपासना के रूप में मनाया जाता है। मकर सक्रांति के दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य का उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्री तथा उतरायन को उनका दिन माना गया है इसलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रिया-कलापों का विशेष महत्व माना गया है |
सूर्य के उत्तरायण होने के अलावा और भी कई कारणों से यह दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में भी सूर्य के उत्तरायण में आने का महत्व बताते हुए कहा है कि इस काल में देह त्याग करने से पुर्नजन्म नहीं लेना पड़ता और इसीलिए महाभारत काल में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण में आने पर ही देह त्याग किया था। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में आने पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह धरा प्रकाशमय हो जाती है। इस दिन लोग सागर, पवित्र नदियों और सरोवरों में सूर्योदय
से पहले स्नान करते हैं और दान इत्यादि कर पुण्य-लाभ प्राप्त करते हैं।
गंगा सागर |
पुराणों के अनुसार भगवान राम के पूर्वज व गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों का तिल से तर्पण किया था। तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी, इसीलिए इस दिन गंगासागर में मकर सक्रांति के दिन मेला लगता है।
इसी दिन भगवान विष्णु और मधु-कैटभ युद्ध समाप्त हुआ था और प्रभू मधुसूदन कहलाने लगे थे।
माता दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर वध करने के लिए धरती पर अवतार लिया था।
इसी दिन भगवान विष्णु और मधु-कैटभ युद्ध समाप्त हुआ था और प्रभू मधुसूदन कहलाने लगे थे।
माता दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर वध करने के लिए धरती पर अवतार लिया था।
मकर सक्रांति तब ही मनाई जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य का प्रति वर्ष धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश बीस मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद यह क्रिया एक घण्टे की देर यानी बहत्तर साल में एक दिन की देरी से संपन्न होती है। इस तरह देखा जाए तो लगभग एक हजार साल पहले मकर सक्रांति 31 दिसम्बर को मनाई गई होगी। पिछले एक हजार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने से यह 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा हे कि पाॅंच हजार साल बाद मकर सक्रांति फरवरी महीने के अंत में जा कर हो पाएगी।
5 टिप्पणियां:
आभार, राजेंद्र जी
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "६८ वें सेना दिवस की शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
@jeewantips
आपको भी मंगलकामनाऐं
ब्लॉग बुलेटिन की कमी खलती रहेगी
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