साफ़-सुथरा लॉन, समतल पैदल पथ, झील के किनारे बनी मनमोहक राजस्थानी शैली के बने जालियों वाले झरोखे, नौका विहार के लिए जेटी तक जाने वाले रास्ते पर बना खूबसूरत पुल सब उत्कृष्टता का अनुपम उदाहरण हैं। दिन में तो लोग आते ही हैं पर संध्या होते ही जैसे रेला ही उमड़ पड़ता है। अंदर जाने के लिए टिकट घर पर मीटरों लंबी कतार लग जाती है
हर शहर की कोई न कोई खासियत जरूर होती है। किसी का संबंध धर्म से होता है, कोई ऐतिहासिकता समेटे होता है, कोई अपने वास्तुशिल्प के कारण खबरों में रहता है, कोई अपनी आधुनिकता के कारण। शहर के नियंता भी कोशिश करते रहते हैं, जिससे उनका शहर पर्यटकों इत्यादि को आकर्षित कर सके।
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प्रवेश द्वार |
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विहंगम दृश्य
वैसे तो राजस्थान का कोटा शहर अपनी "कोचिंग" के कारण असाधारण प्रसिद्धि पा चुका है पर इसके साथ-साथ वहां ढेरों ऐसी जगहें हैं जो वहां आने वाले के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं। इसी तरह की एक जगह है "सेवन वंडर्स", जो शहर के बीच बल्लभ बाड़ी में स्थित किशोर सागर लेक के एक किनारे पर बनाया गया है।इसमें संसार की प्रसिद्ध इमारतों के लघु रूपों को हूबहू प्रदर्शित किया गया है।
जालीदार झरोखे
किसी समय यह उपेक्षित जगह पूरी तरह कूड़ा घर में तब्दील हो चुकी थी। गंदगी और दुर्गन्ध का आलम था। भला हो आवासीय मंत्री श्री शांति धारीवाल जी का जिन्होंने अपनी कल्पना को साकार रूप दे इस जगह का चेहरा बदल लोगों को गंदगी से निजात तो दिलवाई ही ऊपर से राज्य को आमदनी का एक अजस्र स्रोत भी दे दिया। जो एक अजूबे के रूप में, करीब 20 करोड़ की लागत, 150 कर्मियों, जो कि आगरा, भरतपुर और धौलपुर जैसी जगहों से बुलाए गए थे, की अथक मेहनत और डेढ़ साल की अवधि में बन कर सामने आया। आर्थिक मदद "अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट" द्वारा प्रदान की गयी। प्रवेश शुल्क सिर्फ दस रुपये प्रत्येक के लिए रखा गया है। जो वाजिब है।
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अंदर जाते ही पहले नजर आता है रोम का खरलों के लिए विश्व-प्रसिद्ध थियेटर, "कोलोजियम" का लघु रूप। हालांकि उसके भग्न रूप को यहां प्रदर्शित नहीं किया गया है। रोम से मिश्र की दूरी चाहे कितनी भी हो पर यहां दोनों पडोसी हैं। कोलोजियम से कुछ ही दूर खड़ा "पिरामिड" अपने वामन अवतार में सबका ध्यान आकर्षित करने में सफल रहता है। इनके बाद वह इमारत स्थित है जिसके दुनिया भर में मुरीद हैं और उसे किसी परिचय का मोहताज नहीं होना पड़ता, जी हाँ, हमारा "ताजमहल"। भले ही वह असली ना हो पर भीड़ सबसे ज्यादा उसी के पास रहती है। चौथे नंबर पर है ठीक उसी तरह अपने एक हाथ में मशाल और दूसरे में किताब लिए अमेरिका की पहचान "स्टैचू आफ लिबर्टी"। इसके बाद देखने को मिलती है वह इमारत जो हैरतंगेज ढंग से एक तरफ झुकी हुई है और इसी कारण उसका नाम भी "पीसा की झुकी मीनार" पड़ गया है। उसकी यह प्रतिकृति परिधि में तो नहीं पर ऊंचाई में लगभग अपनी मूल कृति के बराबर नजर आती है।
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कॉलोजियम |
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पिरामिड का वामन रूप |
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परिचय की कोई जरुरत नहीं |
पीसा की मीनार के बाद ही एक और मीनार आकाश से बाते करती दूर से ही नजर आती है, आए भी क्यूँ ना, एक तो उसका शहर ही ऐसा है तिस पर उसकी बुलंदगी, जिससे कारण दुनिया भर में उसको देखने आने वालों की संख्या किसी भी और ईमारत से ज्यादा है, यह है पेरिस का "एफिल टॉवर"। पेरिस में तो इसकी जो शान है सो है यहां भी नीली रौशनी में नहाता उसका प्रतिरूप सबको सम्मोहित कर लेता है और फिर दर्शक जैसे ही इसके सम्मोहन से मुक्त होता है तो अपने आप को ब्राजील में ईसामसीह की बाहों में पाता है। यह है इस स्वप्न लोक की सातवीं और अंतिम प्रतिकृति ब्राजील की सबसे ऊंची चोटी पर खड़ी सबको अपने आश्रय में लेती "
Christ the Redeemer"।
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लिबर्टी की प्रतिमा |
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झुकी मीनार |
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एफिल टावर |
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"Christ the Redeemer"। |
इन विश्व-प्रसिद्ध स्मारकों की प्रतिकृतियों को बनाने में हुए खर्च के अलावा इसके आस-पास की जगह को भी करीने से सजाने में काफी खर्च हुआ है जिसको साफ़ महसूस किया जा सकता है। साफ़-सुथरा लॉन, समतल पैदल पथ, झील के किनारे बनी मनमोहक राजस्थानी शैली के बने जालियों वाले झरोखे, नौका विहार की जेटी तक जाने वाले रास्ते पर बना खूबसूरत पुल सब उत्कृष्टता का अनुपम उदाहरण हैं। दिन में तो लोग आते ही हैं पर संध्या होते ही जैसे रेला ही उमड़ पड़ता है। अंदर जाने के लिए टिकट घर पर मीटरों लंबी कतार लग जाती है। अभी तो इसे पूर्ण हुए दो-तीन साल ही हुए हैं, आशा करनी चाहिए कि इसका रख-रखाव ऐसा ही बना रहे जिससे या सालों-साल स्थानीय और बाहर से आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहे।
2 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-01-2016) को "जब तलक है दम, कलम चलती रहेगी" (चर्चा अंक-2216) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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