गुरुवार, 7 जनवरी 2016

उपाय तो ढूँढना ही पड़ेगा

समय अब ऐसा है कि राजनीति और उसके दलों के दाव-पेंचों से हट कर हम सब को दिल्ली की जहरीली आबोहवा से छुटकारा पाने के बारे में सोचना ही है। सिर्फ विरोध करने के लिए ही किसी भी कदम का विरोध करना किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा पाएगा। हाँ यदि किसी के पास बेहतर हल है तो उसे भी अपना व्यक्तिगत फ़ायदा ना देखते हुए सबके सामने बिना देर किए रखना चाहिए     

करीब हफ्ते भर बाद जब छह तारीख को दिल्ली लौटना हुआ तो मन में सबसे बड़ी यही जिज्ञासा थी कि गाड़ियों के लिए लागू सम-विषम वाले नियम का क्या असर रहा। इसीलिए गाडी से सबको भेज कर मैंने सराय काले खान से 711 न. की बस से जाने का निर्णय लिया। स्टेशन से उत्तमनगर तक आँखें यातायात का जायजा लेती रहीं। पाया कि सड़कें पहले की अपेक्षा हल्की रह, राहत की सांस ले पा रही थीं। गाड़ियां खड़ी या रेंगना छोड़ चल रहीं थीं। रास्ते में सिर्फ साऊथ एक्स. के पास कुछ जाम था अन्यथा धौला कुआं और सागरपुर जैसी सदा तंगाने वाली जगहों में भी आराम से बस निकल गयी। बस में भी भीड़-भाड़ जैसा कुछ नहीं था। लाल बत्ती को छोड़ कहीं भी बेमतलब का रुकना नहीं हुआ। रोज के पौने दो से दो घंटों के बजाय, करीब डेढ़ घंटे में बस ने मुझे उत्तमनगर पहुंचा दिया।        

पहले 
रेंगना भी मुश्किल 

कुछ तो राहत है 

कहीं-कहीं तो ऐसा भी दिखने लगा है 
समय अब ऐसा है कि राजनीति और उसके दलों के दाव-पेंचों से हट कर हम सब को दिल्ली की जहरीली आबोहवा से छुटकारा पाने के बारे में सोचना चाहिए। सिर्फ विरोध करने के लिए ही किसी भी कदम का विरोध करना किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा पाएगा। दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के लिए गाड़ियों के लिए सम-विषम का जो नियम बनाया गया है, हो सकता है कि यह जल्दबाजी में उठाया गया कदम हो, जिससे नागरिकों को कुछ मुश्किलातों का सामना करना पड़ रहा हो, पर है भी तो उनके भले के लिए।
हवा न सही पर सड़क ने राहत की सांस जरूर ली है 
हो सकता है कि प्रदूषण पर तात्कालिक असर ना पड़ा हो पर सडकों पर भीड़ जरूर कम हुई है। जिसका फायदा आनेवाले दिनों में दिखेगा। सो हड़बड़ी में इसको नकारने की बजाय इसके फायदे का आंकलन जरूर होना चाहिए। विरोध करने वाले अपनी जगह ठीक हो सकतें हैं पर ऐसे लोगों का भी फर्ज बनता है कि यदि उनके पास कोई और उपाय है तो सिर्फ व्यक्तिगत या अपनी पार्टी के भले को न देखते हुए उसे सुझाएं। क्योंकि यह समस्या व्यक्तिगत या किसी एक दल की नहीं है पूरे देश की है। इसीलिए आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य को मद्देनज़र रख सिर्फ मौजूदा अड़चनों को देखते हुए भविष्य को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि दिन-ब-दिन आबादी तो बढ़नी ही है सो प्रदुषण घटने से रहा ! इसीलिए अभी से ही कोई न कोई रास्ता जरूर निकालना पडेगा। जल्दीबाजी में इसको नकारना या फिर बंद करना किसी भी नजरिये से उचित नहीं होगा।          

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...