हम अपने सुनहरे अतीत पर नाज तो खूब करते हैं पर शायद दिल से विश्वास नहीं करते। हम बाबाओं के सपनों पर भरोसा कर खजानों की खोज में जमीन-आसमान तो एक कर सकते हैं पर अपने ग्रंथों की विश्वसनीयता पर शक करते रहते हैं।
कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर शिवकर बापूजी तलपडे नामक एक भारतीय के अपने बुद्धि-कौशल से एक हवाई जहाज का निर्माण कर राईट बंधुओं से करीब आठ साल पहले 1895 में ही उसका सफल परिक्षण करने की खबर पर काफी बहस हुई थी। कुछ लोग इसे गौरव की बात कह रहे थे तो कुछ मखौल भी उड़ा रहे थे। पर इंटरनेट पर तलपडे के बारे में जो जानकारी उपलब्ध है उससे यह बात सच ही मालुम पड़ती है। पता नही क्यूँ हमें अपने ही लोगों पर भरोसा नहीं होता। हमें अपनी ही विरासत पर संदेह रहता है। अपने सुनहरे अतीत पर बात तो खूब करते हैं पर शायद दिल से विश्वास नहीं करते।
होना तो यह चाहिए था कि इस बात की तह तक जाया जाता। ग्रंथों पर शोध किया जाता। पर हमें अपनी लियाकत पर ही शक होने लगता है। हम बाबाओं के सपनों पर विश्वास कर खजानों की खोज में जमीन-आसमान तो एक कर सकते हैं पर अपने ग्रंथों की विश्वसनियता पर शक करते हैं।
शिवकर बापूजी तलपडे का जन्म 1864 में तबकी बंबई में हुआ था। संस्कृत के विद्वान तलपडे को वैमानिक शास्त्र में गहरी दिलचस्पी थी जिसकी प्रेरणा उन्हें ऋगवेद के गहन अध्ययन से प्राप्त हुई थी। उस समय लोगों की धारणा थी कि हवा से भारी किसी भी चीज को हवा में नहीं ठहराया जा सकता। पर तलपडे का विचार कुछ अलग था। जिसका संबल उन्हें ग्रंथों से मिल रहा था तथा उनके मार्ग-दर्शक थे पंडित सुब्बैया शास्त्री। अपनी अथक मेहनत और लगन से उन्होंने एक मशीन की रुपरेखा बना उस पर काम करना शुरू किया। उनकी मेहनत रंग लाई और दुनिया के पहले हवाई जहाज का निर्माण संभव हो पाया। तलपडे ने उसको नाम दिया "मारुतसखा". इसकी सफल मानवरहित उड़ान का प्रदर्शन हजारों लोगों की भीड़ के सामने बंबई की चौपाटी में किया था। इसका जिक्र "डेक्कन हेराल्ड" अखबार ने 2003 में कुछ इस तरह किया है, "भारत के मशहूर
राष्ट्रीयता वादी जज श्री गोविन-दा रानाडे और एच. एच. सियाजी राव गायकवाड़ ने मारुतसखा की मानव रहित संक्षिप्त उड़ान को देख कहा कि देश में विमानन विज्ञान का भविष्य उज्जवल है". तलपडे के एक शिष्य पी. सातवेलकर के साथ-साथ और कई लोगों और पुस्तकों ने भी इस ऐतिहासिक घटना की पुष्टि की है। इन के अनुसार यह मशीन जमीन पर गिरने के पहले हवा में करीब 1500 फिट की ऊंचाई पर कई मिनटों तक रही। इस अद्भुत परिक्षण के आठ साल बाद, 17 दिसंबर 1903 को राइट भाईयों की मशीन 120 फिट की ऊंचाई तक जा 37 सेकेण्ड तक ही हवा में रह पाई थी।
पर तलपड़े की इस महान उपलब्धि उस समय की अंग्रेज सरकार को रास नहीं आई और उसने बड़ौदा के महाराज पर जोर डाला कि परिक्षण पर रोक लगाई जाए। ब्रिटिश हकूमत के आगे झुकते हुए महाराज ने तलपडे को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद कर दी लिहाजा इस दिशा में और आगे कुछ नहीं हो पाया। इस परिक्षण के बाद इस मशीन को तलपडे के घर में रख दिया गया। अपने ही देश में इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद असम्मानित, हताश, निराश तलपडे की मृत्यु 1916 में हो गयी। वर्षों बाद उन्हें याद किया गया है।
अब तो उन पर आधारित एक फ़िल्म "हवाईजादा" भी बन चुकी है, जो जल्दी ही दर्शकों के सामने आने वाली है।
काफी दिनों बाद मारुतसखा के एक मॉडल का प्रदर्शन मुंबई के "विले-पार्ले" में हुई एक प्रदर्शनी में किया गया। इससे संबंधित कागजात "हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड" ने संभाल कर अपने पास रखे हुए हैं। इस सवाल का कि हमारे ग्रंथों में इतनी बेशुमार जानकारी होने के बावजूद क्यों नहीं उसका उपयोग किया सका, एक ही उत्तर हो सकता है कि इस विद्या के दुरुपयोग होने के डर और आम इंसान की भलाई के लिए ही हमारे महान ऋषि-मुनियों ने इसको सार्वजनिक नहीं होने दिया होगा। जैसा कि परमाणु शक्ति के बारे में किया गया।
होना तो यह चाहिए था कि इस बात की तह तक जाया जाता। ग्रंथों पर शोध किया जाता। पर हमें अपनी लियाकत पर ही शक होने लगता है। हम बाबाओं के सपनों पर विश्वास कर खजानों की खोज में जमीन-आसमान तो एक कर सकते हैं पर अपने ग्रंथों की विश्वसनियता पर शक करते हैं।
शिवकर बापूजी तलपडे का जन्म 1864 में तबकी बंबई में हुआ था। संस्कृत के विद्वान तलपडे को वैमानिक शास्त्र में गहरी दिलचस्पी थी जिसकी प्रेरणा उन्हें ऋगवेद के गहन अध्ययन से प्राप्त हुई थी। उस समय लोगों की धारणा थी कि हवा से भारी किसी भी चीज को हवा में नहीं ठहराया जा सकता। पर तलपडे का विचार कुछ अलग था। जिसका संबल उन्हें ग्रंथों से मिल रहा था तथा उनके मार्ग-दर्शक थे पंडित सुब्बैया शास्त्री। अपनी अथक मेहनत और लगन से उन्होंने एक मशीन की रुपरेखा बना उस पर काम करना शुरू किया। उनकी मेहनत रंग लाई और दुनिया के पहले हवाई जहाज का निर्माण संभव हो पाया। तलपडे ने उसको नाम दिया "मारुतसखा". इसकी सफल मानवरहित उड़ान का प्रदर्शन हजारों लोगों की भीड़ के सामने बंबई की चौपाटी में किया था। इसका जिक्र "डेक्कन हेराल्ड" अखबार ने 2003 में कुछ इस तरह किया है, "भारत के मशहूर
राष्ट्रीयता वादी जज श्री गोविन-दा रानाडे और एच. एच. सियाजी राव गायकवाड़ ने मारुतसखा की मानव रहित संक्षिप्त उड़ान को देख कहा कि देश में विमानन विज्ञान का भविष्य उज्जवल है". तलपडे के एक शिष्य पी. सातवेलकर के साथ-साथ और कई लोगों और पुस्तकों ने भी इस ऐतिहासिक घटना की पुष्टि की है। इन के अनुसार यह मशीन जमीन पर गिरने के पहले हवा में करीब 1500 फिट की ऊंचाई पर कई मिनटों तक रही। इस अद्भुत परिक्षण के आठ साल बाद, 17 दिसंबर 1903 को राइट भाईयों की मशीन 120 फिट की ऊंचाई तक जा 37 सेकेण्ड तक ही हवा में रह पाई थी।
पर तलपड़े की इस महान उपलब्धि उस समय की अंग्रेज सरकार को रास नहीं आई और उसने बड़ौदा के महाराज पर जोर डाला कि परिक्षण पर रोक लगाई जाए। ब्रिटिश हकूमत के आगे झुकते हुए महाराज ने तलपडे को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद कर दी लिहाजा इस दिशा में और आगे कुछ नहीं हो पाया। इस परिक्षण के बाद इस मशीन को तलपडे के घर में रख दिया गया। अपने ही देश में इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद असम्मानित, हताश, निराश तलपडे की मृत्यु 1916 में हो गयी। वर्षों बाद उन्हें याद किया गया है।
अब तो उन पर आधारित एक फ़िल्म "हवाईजादा" भी बन चुकी है, जो जल्दी ही दर्शकों के सामने आने वाली है।
काफी दिनों बाद मारुतसखा के एक मॉडल का प्रदर्शन मुंबई के "विले-पार्ले" में हुई एक प्रदर्शनी में किया गया। इससे संबंधित कागजात "हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड" ने संभाल कर अपने पास रखे हुए हैं। इस सवाल का कि हमारे ग्रंथों में इतनी बेशुमार जानकारी होने के बावजूद क्यों नहीं उसका उपयोग किया सका, एक ही उत्तर हो सकता है कि इस विद्या के दुरुपयोग होने के डर और आम इंसान की भलाई के लिए ही हमारे महान ऋषि-मुनियों ने इसको सार्वजनिक नहीं होने दिया होगा। जैसा कि परमाणु शक्ति के बारे में किया गया।
5 टिप्पणियां:
बहुत कुछ अनजाना सा बाकी है सतह पर आने को
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (10-01-2015) को "ख़बरची और ख़बर" (चर्चा-1854) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस पर और खोज होनी चाहिये और िसका प्रचार प्रसार भी।
ये सारे तथ्य सामने ला कर इन पर व्यापक खोज-बीन होनी चाहिए जिससे कि सच उजागर हो !
अभी हाल ही में एक फ़िल्म 'शिवकर बापूजी तलपडे' की जीवनी पर "हवाईजादा" नाम से बनी है, आशा करनी चाहिए कि उससे लोगों को उस विलक्षण प्रतिभा वाले भारतीय के बारे में बेहतर जानकारी मिल सकेगी
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