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हल्की-हल्की कुनकुनी ठंड थी। मौसम खुशगवार था। वैसे भी नई जगह देखने के मौके ने सब में उल्लास भर रखा था। सड़क पर यातायात कम था। सड़क ऐसी सुन्दर, चिकनी, सपाट लग रहा था कि गाडी को भी उस पर चलने में खुशी की अनुभूति हो रही है। रुकते-चलते एक सौ चालीस की. मी. का सफ़र तय कर करीब तीन बजे हम भारत-भूटान के बार्डर पर फुशलिंग गेट के सामने आ पहुंचे थे। रोमांचक क्षण था वह जब हम
दूसरे देश की सीमा में प्रवेश कर रहे थे। कुछ ही मिनटों बाद आबादी से ज़रा हट कर और कुछ ऊंचाई पर स्थित हम अपनी आरामगाह होटल मिड प्वाइंट के प्रांगण में जा उतरे।
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न्यू ज. गु. की व्यस्त सड़क |
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अस्ताचलगामी सूर्य |
यह होटल आबादी से कुछ दूर ऊंचाई पर था और हमें छोड़ कर गाड़ी फिर स्टेशन रवाना हो चुकी थी, इसलिए मजबूरी में हमें वहीं आस-पास मंडराते रहना था। अब तक हम आपस में काफी खुल चुके थे। अचानक मेरे पीछे कुत्ते के भौंकने की आवाज आई, मुड़ कर देखा तो अरविंद जी थे ! फिर तो उन्होंने अपनी इस कला का जो प्रदर्शन किया तो आस-पास के सारे श्वान-पुत्रों में खलबली मच गयी। स्वाभाविक भी था उन्हें आवाज जरूर सुनाई पड रही थी पर अपना विदेशी भाई कहीं नज़र नहीं आ रहा था, इधर-उधर दौड़ते-भागते उनकी अजीब हालत हो रही थी। इधर शाम की चुनरी थामे रात धीरे-धीरे धरती को अपने आगोश में समेटने की तैयारी कर रही थी। सूरज के विदा होते ही ठंड ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया था। कुछ भी हो सफर की थकान तो थी ही, सो रात का भोजन ले हम सब अपने-अपने बिस्तरों में दुबक गए।
घड़ी रात के आठ बजा रही थी, स्थानीय समयानुसार। तारीख थी 13. 01. 15 .
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होटल मिडप्वाइंट |
रात के करीब दो बजे कुछ शोर-गुल से नींद उचटी, लगा कुछ लोग आ-जा रहे हैं, कमरों के खुलने-बंद होने से आभास हो गया कि लखनऊ-बाराबंकी के साथी अब पहुँच पाए हैं। पर कुछ थकान, कुछ ठंड और कुछ गहरी नींद की खुमारी की वजह से उठा नहींगया। वैसे उन्हें भी आराम की सख्त जरूरत थी और उनसे पहले परिचय भी नहीं था तो सुबह मिलना ही उचित था।
वे सब भी जल्दी-जल्दी खाना-पीना निपटा अपने-अपने गदेलन में घुस गए थके शरीर को कुछ राहत देने की इच्छा लिए। सबेरे पता चला कि गाड़ियां घंटों देर से चल रही हैं। उन लोगों को तो ज्यादा आराम भी नसीब नहीं हो पाया, क्योंकि सुबह-सुबह साढ़े सात बजे भूटान की राजधानी "थिम्फु" के लिए रवाना जो होना था।
कल थिम्फु की ओर ………
5 टिप्पणियां:
बढिया रिपोर्ट
अगली कडी का इंतजार
मलाल रहेगा इस सम्मेलन में नहीं जा पाने का
प्रणाम
सच सच है सोहिल जी, भूटान की बात ही कुछ अलग थी
स्वीमिंग पुल का पानी सच में गर्म था। अब किसी को ठंडा लगे तो मैं क्या करुं। :)
वह तो पानी में उतरने वालों के चहरे से ही पता चल रहा था :-)
वह तो पानी में उतरने वालों के चहरे से ही पता चल रहा था :-)
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