मंगलवार, 27 जनवरी 2015

अथ भूटान यात्रा - प्रथम भाग

पिछले अक्टूबर में जब परिकल्पना द्वारा चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन की भूटान में होने की घोषणा  हुई और उसमे मैंने अपना नाम भी पाया तो काफी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी। मेरे जाने के पक्ष में अधिकतम मत थे और विपक्ष में मैं अकेला। कारण कुछ आर्थिक भी था मेरे जेहन में। काफी सोच-विचार, हाँ-ना के बाद यह तय रहा कि मुझे विदेश-भ्रमण कर ही आना चाहिए। मेरे दोस्ताने का दायरा ऐसे भी बहुत सिमित है, जो दो-तीन लोगों से थोड़ी बहुत जान-पहचान है उसी का सिरा पकड़ इस बारे में उनका कार्यक्रम जानना चाहा तो कोई ठोस जवाब नहीं मिल पाने और उनके आधे-अधूरे कार्यक्रम के कारण बनी असमंजस की स्थिति में ही मैंने रायपुर से हावड़ा और सियालदह से न्यू जलपाईगुड़ी तथा वैसे ही वापसी की टिकट करवा ही ली। 

12  जनवरी को मुंबई मेल से हावड़ा रवाना हुआ। दो दिन बाद ही गंगा-सागर का मेला था, जिसकी वजह से गाड़ी अपने हर डिब्बे की औकात से दुगने यात्रियों को लादे हांफ़ते-कांखते चल रही थी। कोलकाता पहुंच कर देखा कि हर ट्रेन उसी स्थिति से गुजरते हुए आ रही है। मेरे चलित फोन का सिम  बी. एस. एन. एल. का है। मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि इस सरकारी सिम को गुर्दे वाले लोग ही इस्तेमाल करते हैं। तो जैसी इसकी तासीर है यह कब बंद हो गया पता ही नहीं चला।  उधर छोटे भाई मनोज परेशान कि गाड़ी के अपने समय 5. 30 पर आ जाने के बावजूद भैया कहाँ रह गए। इस बार काफी समय के बाद कोलकाता जाना हुआ था इसलिए बहुत कुछ करने की सोच के कारण काफी व्यस्त सा प्रोग्राम बना हुआ था। पर मनोज ने पिछली रात की हालत जान कर मुझे आराम करने की सलाह दी क्योंकि उसी रात फिर सफर

जारी रखना था जलपाईगुड़ी के लिए। सो बंगाली मिठाईयों का लुत्फ लेते और सोते सारा दिन गुजार दिया, अच्छा भी रहा आगे की "हेक्टिक" यात्रा को मद्देनजर रखते हुए।         

शाम सात बजे के आस-पास ललित शर्मा का फोन आया कि वे सियालदह स्टेशन पर बैठे हैं और श्री अरविंद व अल्पना देशपांडे से संपर्क नहीं हो पा रहा है, जिनके पास उनका आगे की यात्रा का रेल अनुमति पत्र है। मैंने कहा आप वहीं रहें मैं आ रहा हूँ जैसा होगा देखा जाएगा। खैर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और दार्जिलिंग मेल से दो अलग-अलग डिब्बों में यात्रा कर हम सुबह निश्चित समय से डेढ़ घंटे विलंब से न्यू जलपाई गुड़ी पहुँच गए। स्टेशन पर ही आगे की पूरी यात्रा में हमारे रहने-खाने, चलने-ठहरने, घुमाने,  हर तरह की सुविधा की जिम्मेदारी संभालने वाले श्री रजत मंडल से भेंट हुई। हमारी इस पांच सदस्यों की टोली को उन्होंने सुबह का व्रत-तोड़ जलपान संपन्न करवा भूटान के पहले पड़ाव फुशलिंग (Phuentsholing), जो वहां से करीब 110 की. मी. की दूरी पर है, रवाना कर दिया। खुद वहीं दूसरे "बैच" के स्वागत के लिए ठहर गए।      

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

नया अनभव मिलता है नयी जगह का ..
बहुत बढ़िया संस्मरण

Unknown ने कहा…

बेहतरीन

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अरे क्या बताऊं, बस उस समय मेरे पास गन की ही कमी थी। :)

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