ऐसा ही एक करीबी देश है जापान। जिसके लोगों की देश भक्ती, मेहनत, लगन तथा तरक्की का कोई सानी नहीं है। काश हम उससे कोई सबक ले पाते।
अभी कुछ दिनों पहले चर्चा थी कि दिल्ली की तर्ज पर छत्तीसगढ के सरकारी महकमों में भी पांच दिनों के सप्ताह में काम-काज होगा। इस बात पर क्या पक्ष, क्या विपक्ष, सभी सम्बंधित भाई लोगों ने बिना देर लगाए तुरंत एक मत से सहमति दे दी। पर जब उस दिन की भरपाई करने के लिए कार्यकारी समय को कुछ बढाने की बात आई तो सबको कुछ ना कुछ तकलीफ होनी शुरु हो गयी। ऐसा पहले भी पूरे देश में बहुत बार देखा गया है, चाहे पक्ष-विपक्ष में ईंट कुत्ते का बैर हो पर लाभ लेने के समय सब एकजुटता के प्रतीक बन जाते हैं।
हम दूसरों की नकल करने में भी पीछे नहीं रहते। और हमारा आदर्श है अमेरिका या योरोप के धनाढ्य देश। पर उतनी दूर ना जा कर काश कभी हम अपने अडोस-पडोस के देशों की खूबियों को भी देख पाते। ऐसा ही एक करीबी देश है जापान। जिसके लोगों की देश भक्ती, मेहनत, लगन तथा तरक्की का कोई सानी नहीं है। काश हम उससे कोई सबक ले पाते।
बात है दूसरे विश्वयुद्ध की। जो लाया था जापान के लिए तबाही और सिर्फ़ तबाही। हिरोशिमा तथा नागासाकी जैसे शहर तबाह हो गये थे। सारे देश की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो चुकी थी। किसी भी संस्था के पास अपने कर्मचारियों के लिये पूरा काम न था। इसलिए एक निर्णय के तहत काम के घंटे 8 से घटा कर 6 कर दिए गये तथा साप्ताहिक अवकाश भी एक की जगह दो दिनों का कर दिया गया। नतीजा क्या हुआ: अगले दिन ही सारे कर्मचारी अपनी बांहों पर काली पट्टी लगा काम पर हाजिर हो गये। ऐसा विरोध ना देखा गया ना सुना गया। उनकी मांगें थीं कि देश पर विप्पतियों का पहाड टूट पडा है तो हम घर मे कैसे बैठ सकते हैं। इस दुर्दशा को दूर करने के लिए काम के घंटे घटाने की बजाय बढा कर दस घंटे तथा छुट्टीयां पूरी तरह समाप्त कर दी जाएं। हम सब को मिल कर अपने देश को फिर सर्वोच्च बनाना है। यही भावना है जिससे आज फिर जापान गर्व से सिर उठा कर खड़ा है।
और हम ???
1 टिप्पणी:
काश अच्छी चीजें सीखें हम औरों से।
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