अक्सर स्थानों या जगहों के ऐसे-ऐसे नाम सुनने-जानने को मिलते हैं जिनका उस स्थान से दूर-दूर का रिश्ता नहीं होता, नाहीं उस नाम के अर्थ से उसका कोई सम्बंध होता है। फिर भी उसी नाम से उसे प्रसिद्धि मिल जाती है। अनेक जगहों में स्मारक इत्यादि के समय के आगोश में समा जाने के बाद भी नाम यथावत रह जाता है। पर ज्यादातर ऐसे नामकरण जाने-अंजाने, कलीष्ट शब्दों के सहजीकरण या फिर नासमझी के कारण हो जाते हैं। अपने देश के अधिकांश शहरो-गावों में ऐसे नाम मिल जाएंगे।
अब जैसे मुंबई में चर्चगेट पर ना चर्च है ना गेट। लोहार-चाल में लोहार नहीं मिलते। भिंडी बाजार में भिंडी या नल-बाजार में नल नहीं बिकते। तीन बत्ती पर तीन लैंप-पोस्ट नहीं तीन रास्ते आपस में मिलते हैं। अंधेरी एक पाश इलाका है वहां अंधेरा नहीं छाया रहता। किंग सर्कल में राजा-महाराजा नहीं रहते। इस जगहों के नाम ऐसे कैसे पडे यह शोध का विषय हो सकता है। जिसका कुछ-कुछ अंदाज लगाया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल की बात बतलाता हूं। कोलकाता से लगभग पन्द्रह की.मी. की दूरी पर टीटागढ नामक एक जगह है। यहां एक पेपर मिल भी है। सडक से यह स्थान कोलकाता से जुडा हुआ है। इसी के बाद अगला कस्बा बैरकपुर का है। वही बैरकपुर जो ब्रिटिश काल में अंग्रेजी फौजों का केंद्र हुआ करता था। आज यहां भारतीय सेना की छावनी है। बैरकपुर से कोलकाता के लिए अच्छी बस-सेवा उपलब्ध है। इन बसों के साथ चलने वाले सहायक लडके यात्रियों की सुविधा के लिए बस-स्टापों के नाम जोर-जोर से बोलते रहते हैं। बैरकपुर और टीटागढ के बीच एक बस स्टाप है जिसे ये लडके 'बडा मस्तान' के नाम से पुकारते हैं। जिसका अर्थ होता है, कोई बलशाली या दबंग इंसान। या फिर कोई पीर या सिद्ध बाबा जो इस नाम से मशहूर रहा हो और समय के साथ उसकी समाधी या मजार बना दी गयी हो। छुटपन में तो इन सब बातों पर ध्यान कहां जाता है पर होश संभालने पर जब कुछ खोज-खबर लेनी चाही तो आस-पास कोई समाधी या मजार का पता नहीं लग पाया। लोगों से जानकारी ली तो भी यही पता चला कि ऐसा कोई फकीर यहां हुआ ही नहीं। हां बस-स्टाप से थोडी दूरी पर एक छोटे से अहाते में एक मंदिर है। उस जगह को ब्रह्म-स्थान के नाम से जाना जाता है। तब जाकर यह रहस्य खुला कि यह ब्रह्म-स्थान ही धीरे-धीरे नासमझ लडकों की 'नीम-हकीमी' के कारण बडा-मस्तान का रूप लेता चला गया है।
हो सकता है की इस तरह के कई नाम ऐसे ही "व्याकरण के ज्ञाताओं" के दिमाग की उपज हों।
9 टिप्पणियां:
क्या सर जी आप भी न ... काहे बार बार कलकत्ता की यादें ताज़ा कर देते है ... :(
आप टीटागढ का किस्सा सुना रहे है और हम अगरपाड़ा मे रहते थे ... पहले मुझे भी काफी अटपटा लगता था बाद मे असलियत भी पता चली और 'बड़ा मस्तान' से यारी भी हो गयी !
पता नहीं, पर बहुत स्थानों का नाम ऐसे ही बदलते देखा है।
इंदौर में एक जगह है LIG कालोनी जिसे नगर सेवा वाले इलायची के नाम से आवाज लगते है.
शिवम जी, क्या करें, दिल की लगी है, छूटती ही नहीं :o
शोभा जी, मैं कमरहट्टी जूट मील में कार्यरत था। अपने शिवम मिश्रा जी का बचपन भी उसी के आस-पास गुजरा है। एक दिन "कैलीडोनियन" नामक कंपनी के नाम एक पत्र अपने सहायक को टाइप करने को दिया। अब वह ज्यादा ही अक्लमंद था, पता नहीं क्या सोच-समझ कर उसने उस कंपनी का नाम "काली दुनिया" कर दिया। आप अंदाज लगा सकती हैं उस हालात का।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (02-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गयी है!
सूचनार्थ!
Gaganji
ye "Neem Hakimi" word kabhi suna nahin....matlab samzaenge please?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
हर्षद जी, उर्दु की कहावत है, सुनी होगी आपने "नीम हकीम खतराए जान"। याने आधी-अधूरी जानकारी खतरनाक होती है। वहीं से शब्द उठाया था। नीम यानी आधा।
स्नेह बना रहे।
Gaganji
Bahut dhanyavaad...
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
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