दोस्तो, कई मायनों में हमारा देश महान था और है पर उसका एक पहलू और भी है उस पर भी नज़र डाल लेते हैं :
हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां गेहूं 25 रुपये कीलो मिलता है पर सिम कार्ड मुफ्त में उपलब्ध है।
घायलों या बीमारों के लिए अम्बुलेंस या तो मिलती नहीं या आने में इतनी देर कर देती है कि..... पर विदेशी पिज्जा खिलाने वाले उसको ग्राहक तक आधे घंटे से भी पहले पहुंचाने की कुव्वत रखते हैं।
आपने कार लेनी है तो सिर्फ 5% के ब्याज पर तुरंत मिल जाएगी पर यदि आप अपने बच्चे की पढाई के लिए लोन लेना चाहते हैं तो वह 12% पर किसी तरह जूते घिसवाने के बाद ही मिल पाएगा या नहीं निश्चित नहीं होता।
विडबंना है कि जिसे जरूरत होती है उसे बैंक लोन देने में ढेर सारी अडचने खडी कर देते हैं पर उस रसूखदार या सक्षम को यह आसानी से उपलब्ध करवा दिया जाता है, जहां से पैसा वापस आने की संभावना क्षीण होती है।
यहां फल तथा सब्जियों को तो अस्वास्थ्यकर माहौल में ज्यादातर सडक किनारे बेचा और खरीदा जाता है वहीं जूते और कपडे आलीशान वातानुकूलित माल में बिकते हैं।
शायद यहीं पेय पदार्थों में नकली सुगंध मिला कर उसे आम, संतरे, मौसम्बी का स्वाद दिया जाता है और असली नींबू से जूठे बर्तनों को साफ करने की सलाह दी जाती है।
यहां जन्म के सर्टिफिकेट पर अच्छे संस्थान में 40% पर भी दाखिला मिल जाता है पर मेहनत कर मेरिट में 90% आने पर भी धक्के खाने पडते हैं।
इस देश में जहां लाखों लोगों को एक समय भी भर पेट भोजन नसीब नहीं होता वहां क्रिकेट के विवादास्पद तमाशे पर लोग अरबों रुपये किसी टीम को बनाने और नचाने पर बर्बाद कर देते हैं।
यहां हर आदमी तुरंत अमीर और मशहूर होने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है पर सही रास्ता अख्तियार करने से दूर भागता है।
सरकारी नुमायंदों के आवास, निवास, दफ्तर तो तुरंत बन जाते है, उनकी सजावट और रख-रखाव पर हर साल करोडों रुपये भी खपाए जाते हैं पर उसी जनता, जिसके रहमो-करम पर वे यह मुकाम हासिल करते हैं उसकी सहूलियतों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता और कभी ऐसा हो भी जाता है तो उसको पूरा करने में दशक लग जाते हैं।
2 टिप्पणियां:
इन बातों की आदत पड़ गयी है, पर बात सच में गम्भीर है...
अखबार पढना, टीवी पर खबरें देखना बंद कर दें तो मानसिक सुख बना रहेगा.
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