सोमवार, 17 सितंबर 2012

हम्माम का तमाशा देखने को तैयार रहें


आज जहां आम जनता की क्रय क्षमता दिन पर दिन लगातार कम होती जा रही है या यूं कहें कि करवाई जा रही है। जहां मिडिल क्लास में जन्म लेना श्राप सरीखा हो गया है, वहीं राजनीतिक पार्टियों और उनसे जुडे महानुभावों की तिजोरियों में लगातार लक्ष्मी की आवक बनी हुई है। साथ ही विडंबना यह है कि ये अपनी आय की जानकरी न देने में भी हिचकिचाते नहीं हैं। जिनमें अपने आप को जमीन से जुडी पार्टी कहलवाने वाली तृणमूल और नेशनल कांफ्रेंस सर्वोपरि हैं।

आरटीआई की दिन-रात की मेहनत से यह खबर जनता तक पहुंची कि पिछले सात सालों में राजनीतिक दलों ने चंदे के रूप में जनता से करीब चार हजार सात सौ करोड रुपये हासिल किए हैं। इसमें सब से बडा हिस्सा कांग्रेस को उसके बाद भाजपा फिर बसपा जैसी दलित कहलाने वाली पार्टी तथा फिर समाज में एकरूपता लाने का दम भरने वाली माकपा का शेयर रहा है। पर मजे की बात यह है कि इस मुफ्त की आमदनी का जरिया बताने को कोई भी तैयार नहीं है। इस मुद्दे पर सारे दल एक समान हैं। कुरेदने पर कोई इसे अपने प्रति जनता का प्रेम कहता है, कोई इसे दान के खाते से आया बताता है तो कोई कूपन बेचने से हुई आमदनी कहता है। इन दलों ने मान लिया है कि लोग बेवकूफ हैं कुछ भी कह दो क्या फर्क पडता है। अब गंवार से गंवार आदमी भी यह नहीं मान सकता कि कूपनों से अरबों की आय हो सकती है पर किसे परवाह है?

हमारे देश में कानून है कि चंदे वगैरह की रकम बीस हजार से ज्यादा नहीं हो सकती। पर इस कानून का हश्र भी बाकी धाराओं जैसा ही कर दिया गया है। हर पार्टी का यही कहना है कि उन्हें देने वाले लोगों ने इस सीमा का उल्लंघन नहीं किया है। सबने थोडी-थोडी राशि दे कर हमारे हाथ मजबूत किए हैं।
   
किसी तरह सामने आयी यह खबर हमारी अपने को पाक-साफ कहने वाली पार्टियों का चरित्र और नीयत का पर्दाफाश करती है। अब ऐसे कारूं के खजाने पर बैठे देश के कर्णधारों को कहां सुध है जनता की हालत देखने और उसकी दिनों-दिन जर्जर होती जिंदगी की सुध लेने की। किसी के घर चुल्हा जले ना जले इनकी बला से। कोई अधभूखा रहे तो इनकी बला से और तो और कोई मंहगी दवा-इलाज के कारण दम तोड दे तो इनकी बला से। इन्हें सिर्फ एक ही चिंता है कि आने वाले समय में कुर्सी ना खिसक जाए और उसके लिए कोई भी दल किसी भी हद तक जाने में नहीं झिझक रहा। पर्दा उठ चुका है बस कुर्सी बचाने, सामने वाले की कमजोरी का फायदा उठाने, लोलूपता का किस्सा दोहराने-तिहराने, मौका-परस्त अपना जलवा दिखाने उजागर होने ही वाले हैं।

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबके पेट भरे हैं,
जनता जख्म हरे हैं।

Vinay ने कहा…

उत्कृष्ट

--- शायद आपको पसंद आये ---
1. अपने ब्लॉग पर फोटो स्लाइडर लगायें

विशिष्ट पोस्ट

उपेक्षित जन्मस्थली, रानी लक्ष्मीबाई की

जो स्थान या स्मारक प्रत्येक भारतीय के लिए एक तीर्थ के समान होना चाहिए, उसी क्षेत्र की जानकारी विदेश तो क्या देश के भी ज्यादातर लोगों को नहीं...