आज जब देश का एक बहुत बडा तबका रोज-रोज की मंहगाई से त्रस्त हो किसी तरह दो जून की रोटी की जुगाड में लगा हुआ है, सारा देश इस बला से जूझ रहा है, ऐसे में एक जिम्मेदार मंत्री का मंहगाई के पक्ष में बयान आना आम जन के जले पर नमक छिडकने के समान है। लगता है कि सत्ता मिलने पर जब धन और बल का इफरात मात्रा में जुगाड होने लगता है तो दिमाग और जबान का संतुलन बिगडना शुरु हो जाता है।
पिछले दिनों महंगाई को लेकर केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने फरमाया है कि खाद्यानों, दाल और सब्जियों के दाम बढ़ने से उन्हें खुशी होती है, क्योंकि इससे किसानों को फायदा होता है उनकी इस बेतुकी दलील से तो प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह भी सहमत नहीं लगते क्योंकि 15 अगस्त के अपने भाषण में प्रधान मंत्री बढती मंहगाई पर भी चिंता जता चुके हैं। महंगाई विश्व-व्यापी है इसे तुरंत खत्म नहीं किया जा सकता। मगर इस तरह के बयान देकर इस मुद्दे की गंभीरता को खत्म करने और लोगों का ध्यान बटाने के ओछे प्रयास पता नहीं कैसे दिमागों की उपज हैं। कभी कोई गरीबी की रेखा का तमाशा बनाता है, तो कभी कोई महंगाई का। यदि मंहगाई से इतना ही फायदा होता है तो माननीय मंत्री महोदय बताएंगे कि किसान आत्महत्या करने पर क्यों मजबूर हो रहे हैं? यदि क्षणांश के लिए मान भी लिया जाए की कुछ किसानों को ज़रा सा फ़ायदा हो भी गया हो तो बाकी अधनंगे , फटेहाल गरीबों-मजदूरों का क्या? इसका क्या जवाब है भले आदमी के पास? ऐसे लोगों की क्या इंसानों में गिनती नही होती? या फिर उन्हें भूख नहीं सताती?
यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि मंहगाई के साथ-साथ खेती की लागत भी लगातार बढ़ती जा रही है और इसमे काम आने वाली जिंसों की बढी हुई कीमतें किसानों को कोई लाभ नहीं पहुंचा पाती। फिर हाड तोड मेहनत से उत्पन्न होने वाली वस्तुओं की कमाई का बडा हिस्सा तो बिचौलियों के हवाले हो जाता है। ऐसे में वर्मा जी का बयान सरकार और जनता दोनों की परेशानी ही बढ़ाने वाला है। विडंबना तो यह है कि इस तरह के अनर्गल बयान के बाद अफसोस जताना तो दूर, बेनी बाबू ने अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का नाम आगे कर एक नई बहस छेड़ दी है । लगता है अपने बयान रूपी बांस को उल्टे बरेली जाते देख अपने बचाव के लिए चापलूसी का रास्ता अख्तियार कर लेने में ही भलाई नज़र आई होगी।
6 टिप्पणियां:
बेनी दरियाबाद के, है पड़ोस मम ग्राम |
उपजा गुंडे खेत में, बेंचें ऊंचे दाम |
बेंचें ऊंचे दाम, कभी गन्ना बोते थे |
बड़ा मुलायम नाम, ख़ास नेता होते थे |
अब तो नाम किसान, शान से लोहा बोवें |
लेगा लोहा कौन, शत्रु सरयू में धोवें ||
एक बार बोलने के पहले सोचना आवश्यक है।
दिमाग़ चलाने में अधिक ज़ोर पड़ता है लोगों को ,जीभ चलाने की अपेक्षा !
नेता कुछ भी बोलता है
बोलने से पहले कहाँ तोलता है
सुनने वालों को आदत सी
हो गयी है अब
कौन इन बेवकूफों के आगे
अपना मुँह खोलता है !
अरे भाई किसान का नाम लेकर कुछ भी कहो ,आम आदमी अल्पसंख्यक और किसान पर्यायवाची हैं अब बराबर का हक़ है इन्हें बर्बाद होने का .कृपया यहाँ भी पधारें -
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
Reducing symptoms -correcting the cause.
गर्दन में दर्द होने पर अमूमन आप दवाओं की शरण में चले आतें हैं लेतें हैं आप एस्पिरिन ,तरह तरह के अन्य दर्द नाशी ,विशेष पैन पिल्स ,इस दर्द के लक्षणों के शमन के लिए लेतें हैं आप मसल रिलेक्सर्स ,मालिश ,हॉट पेक्स .
लेकिन गर्दन में दर्द की वजह न तो एस्पिरिन की कमी बनती और न अन्य दवाओं की .
ram ram bhai
शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
आतंकवादी धर्मनिरपेक्षता
"आतंकवादी धर्मनिरपेक्षता "-डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट .,1218 ,शब्दालोक ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -122-001
आतंकवादी धर्मनिरपेक्षता
राजनीतिक लफ्फाज़ फैला रहें हैं भ्रम ,
कि आतंकवादी का नहीं होता कोई धर्म ,
अभिप्राय : है यही और यही है संकेत ,
कि आतंकवादी होता है धर्मनिरपेक्ष .
धन्य है सरकार ,क्या खूब बहका रही है ,
आतंकवाद का क्या ,धर्मनिरपेक्षता तो बढ़ा रही है .http://veerubhai1947.blogspot.com/
अब तो ऊल-जलूल बोलना एक जरिया हो गया है खबरों में बने रहने का। तीर बन गया और शरण-दाता को जंच गया तो वाह-वाह, तुक्का रह गया, तो बयान बदलने या उसके अर्थ को अन्यथा लेने का इल्जाम मढने को दूसरे माथे तो हैं ही।
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