इस पर्व ने जात-पात, धर्म-अधर्म, ऊंच-नीच से सदा अपने को अलग रखा। इसीलिए आज भी यह उतने ही उत्साह, प्रेम, स्नेह से याद रखा जाता है और अनेकानेक झंझावतों के बावजूद मनता चला आ रहा है।
रक्षा-बंधन यानि राखी का त्योहार। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक। एक दूसरे की सुरक्षा तथा मंगलकामना की अदीन इच्छा का गवाह। हमारे ग्रंथों में भी इससे संबंधित ढेरों कथाएं मिलती हैं।
देवासुर संग्राम वर्षों से चल रहा था। कोई भी पक्ष हार मानने को तैयार नहीं था। पर धीरे-धीरे देवताओं की शक्ति क्षीण होती चली जा रही थी। देवराज इंद्र चिंतातुर रहने लगे थे। ऐसा देख इंद्राणी ने यज्ञ-पूजन कर मंत्र-पूरित रक्षा-सूत्र उनकी कलाई में बांधा था। देवताओं की विजय हुई थी। वही शायद पहला रक्षा-बंधन था।
कहते हैं मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना में अगाध स्नेह था। पर कार्य की अधिकता के कारण यम को बहन से मिलने का समय नहीं मिल पाता था। तब यमुना ने उनसे वचन लिया था कि साल में एक बार चाहे वे कहीं भी हों उससे मिलने जरूर आएंगे। यम उस वचन को निभाते चले आ रहे हैं। और वह दिन है सावन की पूर्णिमा का यानि आज का।
महाभारत के दौरान श्री कृष्ण जी की ऊंगली में चोट लगने से द्रौपदी ने अपने वसन से कपडा फाड उनकी चोट पर बांधा था। तभी श्री कृष्ण ने उन्हें अभय का वरदान दिया था।
यह सिर्फ भाई का बहन को रक्षा का आश्वासन देने का प्रतीक ही नहीं है। इसका अर्थ और भी व्यापक रूप में है। समय गवाह रहा है कि पेडों को बचाने के लिए लोगों ने उन्हें भी रक्षा-सूत्र बांधा है। पुरोहित अपने यजमान को राखी बांध उसकी कुशलता की कामना करता है। सभासद और मंत्री दल अपने राजा को राखी बांधते रहे हैं।
ऐसी ही अनेक घटनाएं एवं कथाएं इस पवित्र और स्नेहिल त्योहार से जुडी हुई हैं, चाहे वह सिकंदर की बात हो या फिर हुमायूं की। इस पर्व ने जात-पात, धर्म-अधर्म, ऊंच-नीच से सदा अपने को अलग रखा है । इसीलिए आज भी यह उतने ही उत्साह, प्रेम, स्नेह से याद रखा जाता है और ऐसी ही अनेकों कहानियों, विश्वासों, श्रद्धाओं के साथ, अनेकानेक झंझावतों के बावजूद मनता चला आ रहा है।
सभी भाई-बहनों को रक्षा-बंधन की ढेरों शुभकामनाएं।
2 टिप्पणियां:
सबको रक्षाबन्धन की बधाईयाँ..
आप ने सही कहा है. यह केवल भाई बहन तक ही सीमित नहीं है.
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