लालच या लोभ कैसा भी हो, किसी भी वस्तु के लिए हो बुरा ही होता है। इसी के अंतर्गत संचय की प्रवृत्ति भी आती है।
बहुत पहले कहीं पढी एक कहानी याद आ गयी आज के कर्णधारों की मनोवृत्ति देख कर।
एक बार भीषण अकाल पड़ने से सारे जीव-जंतु बेहाल हो गये। शहर, गांव, जंगल सभी उसकी चपेट में आ गये। खाने और पीने के पानी का घोर संकट आ पड़ा। ऐसे ही एक जंगल में दो सियार रहते थे। उनमें से एक बुजुर्ग था दूसरा जवान। अपनी उम्र की तरह ही उनकी आदतें भी थीं। बुजुर्ग अपने साथ जिंदगी भर का अनुभव लिए चलता था तो जवान सिर्फ आज में विश्वास करता था। दोनों में एक बात समान थी दोनों परले दर्जे के लालची थे। एक दिन वे भोजन-पानी की तलाश में गांव की तरफ निकल गये भोजन की तलाश में। भाग्य से उन्हें वहां एक मुर्गियों का दड़बा मिल गया।
दोनों ने अंदर घुस कर अपना पेट भरना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद बुजुर्ग ने छोटे को कहा कि ज्यादा ना खा कर कुछ कल के लिए भी बचा कर रख लेते हैं। पर छोटा तो मानो सब आज ही हड़प कर जाना चाहता था। वह बोला कल किसने देखा है मैं तो आज ही इतना खा लूंगा कि चार दिनों का कोटा पूरा हो जाए। दोनों ने अपने मन की की।
छोटे ने इतना खा लिया कि रात में उसका पेट जवाब दे गया और उसकी मौत हो गयी। लालच का मारा दूसरा फिर दूसरे दिन दड़बे में पहुंचा तो घात लगाए बैठे दड़बे के मालिक किसान ने उसका काम तमाम कर दिया।
बहुत पहले कहीं पढी एक कहानी याद आ गयी आज के कर्णधारों की मनोवृत्ति देख कर।
एक बार भीषण अकाल पड़ने से सारे जीव-जंतु बेहाल हो गये। शहर, गांव, जंगल सभी उसकी चपेट में आ गये। खाने और पीने के पानी का घोर संकट आ पड़ा। ऐसे ही एक जंगल में दो सियार रहते थे। उनमें से एक बुजुर्ग था दूसरा जवान। अपनी उम्र की तरह ही उनकी आदतें भी थीं। बुजुर्ग अपने साथ जिंदगी भर का अनुभव लिए चलता था तो जवान सिर्फ आज में विश्वास करता था। दोनों में एक बात समान थी दोनों परले दर्जे के लालची थे। एक दिन वे भोजन-पानी की तलाश में गांव की तरफ निकल गये भोजन की तलाश में। भाग्य से उन्हें वहां एक मुर्गियों का दड़बा मिल गया।
दोनों ने अंदर घुस कर अपना पेट भरना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद बुजुर्ग ने छोटे को कहा कि ज्यादा ना खा कर कुछ कल के लिए भी बचा कर रख लेते हैं। पर छोटा तो मानो सब आज ही हड़प कर जाना चाहता था। वह बोला कल किसने देखा है मैं तो आज ही इतना खा लूंगा कि चार दिनों का कोटा पूरा हो जाए। दोनों ने अपने मन की की।
छोटे ने इतना खा लिया कि रात में उसका पेट जवाब दे गया और उसकी मौत हो गयी। लालच का मारा दूसरा फिर दूसरे दिन दड़बे में पहुंचा तो घात लगाए बैठे दड़बे के मालिक किसान ने उसका काम तमाम कर दिया।
13 टिप्पणियां:
sahi baat.........umdaa sandesh !
यह तो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि लोघ का फल बुरा होता है पर देख रहे हैं कि लोभी का अकाउंट स्विस बैंक में होता है :)
लालच बुरी बला है।
संतुलित जीवन आधार है।
सामयिक कथा ... चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी ने वर्तमान चरित्रों से जोड़कर इसका बोध कराया.
हा ये तो सच है की लोभ काल का कारण बन सकता है किन्तु आज इसके उदाहरण कहा मिलते है जितना लोभी उतना पैसा उतना आराम का जीवन शायद ये कलयुग की दें है |
लालच का फल बुरा!!!
पर आज कल मोह भंग नहीं होता !
kahaani ke maadhyam se sundar sandesh diyaa hai.
चंद्रमौलेश्वर जी, लगता है ये बुजुर्ग टाईप वाले होंगे क्योंकि एक ही बार में भकोसने वालों का तो हाल दिख ही रहा है :-)
मरते मरते साबित कर गया कि हम तो डूबे ही सनम तुमको भी ले डूबे हैं!!
लालच बुरी बला हे जी
लालच बुरी बला है। यह मुझे आपको पता है "उनको" क्यों नहीं पता ?
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