गुरुवार, 2 जून 2011

मैं तो चूक गया था आप मत चूकिएगा

खाने-पीने के मामले में पंजाबियों का स्थान काफी ऊपर माना जाता है। पेट को इसके लिए चाहे अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती हो पर जीभ इसका नाम सुनते ही "पानी-पानी" हो जाती है। उसमें भी अमृतसर के भोज्य-पदार्थ तो सारे देश में मशहूर हैं। पर यह बदकिस्मती ही रही कि वर्षों से वहां के लजीज व्यंजनों का नाम तथा उत्पादन केंद्रों को याद रखने के बावजूद "कड़ाही के पास से भूखे वापस" आ गये। बड़े दिनों के बाद पंजाब यात्रा का मौका मिला था पर समय की कमी के कारण उसका फायदा, खाने के लिहाज से, नहीं उठा पाए हम सब और "नियामतों" के पास तक भी नहीं पहुंच सके। क्योंकि लंका में तो सब दस हाथ के पर रावण की तो अलग ही बात थी। वैसे ही अमृतसर में भोजनालय तो बेशुमार हैं पर "सिरमौर" को तो खोजना ही पड़ता है।

खैर पर यदि आपका जाना हो तो कुछ "भोजन गाईड" बता रहा हूं चूकिएगा नहीं रसास्वादन से। आप एक बार आकर यहां के ढाबों का स्वाद जीभ को ले लेने भर दें, मजाल है कभी वह इस स्वाद को भूल पाए। बात चाहे पीढियों से चले आ रहे 'केसर के ढाबे' की हो चाहे 'भ्राबां के ढाबे' की, इनके भरवां पराठे, दाल और मोटी मलाई वाला दही कितना भी खालें पेट भर जाता है पर मन नहीं। सारा खेल धीमी आंच और शुद्ध घी का होता है। यह इनकी ईमानदारी की ही बरकत है कि मंहगाई के इस जमाने में जबकि यह ग्राहक से कुछ भी वसूल सकते हैं, ये सिर्फ जायज कीमतों पर ही लोगों का पेट भरने का व्रत ले अपना काम करते जाते हैं।

अमृतसर की बात हो और यहां के कुलचों का जिक्र ना हो यह कैसे हो सकता है। यहां के कुलचे जब देशी घी में नहा कर निकलते हैं तो उनका रूप-रंग तथा उनमें भरे गये अनारदाने और किसमिस का स्वाद बड़े-बड़े उपवासियों को अपना उपवास तोड़ने पर मजबूर कर देते हैं। इन कुलचों का अभिन्न अंग होते हैं मसालेदार चने। जिनको बनाने का तरीका जानने के लिये देश के बड़े-बड़े पंचतारा होटलों के शेफ भी लालायित रहते हैं।

पूरे खाने की बात हो या चाट पकौड़ी की अमृतसर किसी बात में पीछे नहीं है। यहां के 'बृजवासी चाट भंडार' की आलू की टिक्की का जायका इसको बनते देख ही मुंह में पानी ला देता है। सादी आलू की टिक्की हो या सोयाबीन की पिठ्ठी से भरी दही, सोंठ और हरी चटनी के साथ या पनीर वाली, मिलती बहुत से शहरों में हैं पर इनके जैसा स्वाद अन्यत्र दुर्लभ है। एक बात और जब कभी भी आप यहां आयें तो पनीर की भुजिया खाना तथा पेड़ा ड़लवा कर लस्सी पीना ना भूलें। इसके अलावा आप यहां का स्वाद अपने साथ बांध कर भी ले जा सकते हैं। यहां की आलूबुखारा भरी बड़ियां या अनारदाने वाले पापड़, ये घर पर भी आपको अपनी यात्रा का स्वाद दिलवाते रहेंगे।

ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ शाकाहारी भोजन ही मिलता है। सुना है यहां का मांसाहार लोगों को लखनवी या हैदराबादी स्वाद भूलने पर मजबूर कर देता है। ऐसे रेस्त्रांओं पर जुटी भीड़ इस बात की साक्षी रहती है।

तो कब जा रहे हैं अमृतसर बताईएगा।

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शौकीन तो हर जगह होते हैं शर्मा जी!
--
देश-प्रान्त से उसको मत जोड़िए!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्रीजी,
नम्र निवेदन है कि यहां किसी देश-प्रांत के प्रति कटाक्ष नहीं है, सिर्फ निर्मल आनंद की बात है। या यूं समझिए खुद ही पर व्यंग्य है। शायद आप को मालुम ना हो कि मैं खुद पंजाबी हूं। अच्छाईयां-बुराईयां तो सब जगह होती हैं यह तो मेरा भी मानना है।

मनोज कुमार ने कहा…

जब चंडीगढ़ पोस्टिंग हुई थी तो उन दिनों एक गाना काफ़ी मशहूर था, आज भी होगा, कह नहीं सकता। आपके इस पोस्ट की शुरु की पंक्तियां पढ़कर उसकी याद आ गई।
“खाओ-पियो ऐश करो मितरों, दिल न किसी का दुखाओ ...!
**
वहां के ढ़ाबों का तो जवाब ही नहीं ...! शाही पनीर और सरसों दा साग बहुत मिस करता हूं।

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी बहुत सुंदर बात कही आप ने, आप ने तो पजाबियो की वल्ले वल्ले कर दिती जी, वैसे खाने मे ओर लडाई मे पंजाबी हमेशा आगे ही रहता हे... मै खुद पंजाबी हुं:) किसी का मजाक नही कर रहा.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सारे दिल्ली में सड़क के किनारे अमृतसरी नान के बोर्ड लगे देखता तो सोचता था कि कमाल का व्यंजन होगा.. आज आपकी पोस्ट पर पहली बार आना हुआ और आपने ऐसा स्वागत किया कि मन तृप्त हो गया!!

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

बस जी, गर्मी सी खत्म हो जाने दो। फिर अपन भी एक चक्कर अमृतसर का मार कर आयेंगे।

Rahul Singh ने कहा…

पूरी तैयारी से जाना पड़ेगा, सिर्फ स्‍वर्ण मंदिर में मत्‍था टे‍क लेने से काम नहीं चलेगा.

Sunil Kumar ने कहा…

हम तो हैदराबाद में रह कर पंजाब के खाने का आनंद ले रहे है आपकी पोस्ट से ....

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जल्दी ही प्रोग्राम बनाते हैं, "जायका इंडिया का" लेने के लिए। बिना खाए आएगें नहीं, रज्ज के मजा लेगें। हा हा हा

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पंजाब दे खाणे दा जवाब कोई नइ जी।
असी वी पंजाबी हां :)

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)

Udan Tashtari ने कहा…

अगली भारत यात्रा में पक्का!!

विशिष्ट पोस्ट

ठेका, चाय की दुकान का

यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में  ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...