शनिवार, 11 जून 2011

नींद दो ही तरह की होती है, अल्प निद्रा और चिर निद्रा।

नींद शरीर के लिए उतनी ही जरूरी है जितना कि खानापीना या और कुछ। यह यदि पूरी ना हो तो इस शरीर रूपी मशीन को "ऐंड़-बैंड़' होते ज्यादा देर नहीं लगती। दो-तीन दिन के रतजगे के बाद ही सरदर्द, बेचैनी, घबराहट, भ्रम जैसी परेशानियां सामने आने लगती हैं। पूछ कर देखिए उन से जो अनिद्रा से ग्रसित हैं तथा जिन्हें रोज नींद की गोलियों से ललचा-ललचा कर उसे बुलाना पड़ता है। जोसोवत है वो खोवत है, जो जागत है वो पावत है" या "तूने रात बिताई सोय कर दिवस बितायो खाय, कबीरा जन्म अमोल है कौड़ी बदले जाय", जैसी नसीहतों और उपदेशों में नींद की (भले ही उपमा देकर समय की कीमत समझाई गयी हो) चाहे जितनी भी भर्त्सना की गयी हो पर सत्य यही है कि नींद शरीर की अहम आवश्यकता है। भले ही इसमें इंसान के जीवन का एक-तिहाई भाग बेहोशी में ही निकल जाता हो।


इसी खुदा की नेमत को हमारे पास पहुंचाने के एवज में सैंकड़ों कंपनियां लाखों-करोंड़ों का वारा-न्यारा करने में लगी हुई हैं। पर जिन्हें इसका वरदान प्राप्त है उन्हें किसी ताम-झाम की जरूरत नहीं पड़ती। न उन्हें गद्दा चाहिए ना तकिया, न उन्हें रोशनी या अंधकार से मतलब होता है ना जगह से ना जमीन से ना बिस्तर से मना चादर से वे तो जहां चाहे लुढक कर अपनी जरूरत पूरी कर लेते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि "भूख ना देखे बासी भात और नींद ना देखे टूटी खाट", मजाक नहीं सच कह रहा हूं आप भी देख लीजिए :

वैज्ञानिकों ने नींद के बहुत से प्रकार बताए हैं पर असल में यह दो ही तरह की होती है।
पहली अल्प निद्रा, जो हमें रोज आती है और उसी दौरान शरीर कुछ घंटों में रोजमर्रा की टूट-फूट, कमी-बेसी की भरपाई कर दूसरे दिन के लिए तरोताजा हो जाता है।
दूसरी होती है चिर-निद्रा, इसमें शरीर के अंदर की कमियों को ही नहीं पूरे खाके, ढांचे को ही बदल कर एक नये शरीर की नींव रखी जाती है इस कायनात के अस्तित्व को बनाए व चलायमान रखने में योगदान देते रहने के लिए।
पहली आए या ना आए पर दूसरी से जीव कभी वंचित नहीं होता।

यदि आपको सुख की, चैन की, गहरी प्राकृतिक नींद आती है तो उसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा जरूर करें। क्योंकि सर्व-सुलभ चीज की कीमत हम समझ नहीं पाते।

7 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

नींद तो जब आती है, कांटो पर भी आ जाती है?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘यदि आपको सुख की, चैन की, गहरी प्राकृतिक नींद आती है तो उसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा जरूर करें।’

और यदि नहीं आती है तो डॉक्टर की सलाह लें :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

भूख न देखे सूखी रोटी, नींद न देखे टूटी खाट।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर आलेख!

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

गगन शर्मा जी सार्थक लेख धन्यवाद आप का -इसमें कोई संदेह नींद बहुत जरुरी होती है आप के चित्र ने बयां किया ही लेकिन सब का एक कुछ निश्चित समय होता है जब नींद शुरू और चरम पर उस समय अगर दो घंटे भी गहरी निद्रा मिल जाये तो बल्ले बल्ले ..५ से ६ घंटे सामान्य के लिए -
शुक्ल भ्रमर५

Chetan ने कहा…

shareer ko chalata rakhane ke lie niind bahut jaruuri hai.

Chetan ने कहा…

shareer ko chalata rakhane ke lie niind bahut jaruuree hai.

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