बुधवार, 15 जून 2011

मैं हिमांचल की राजकुमारी "मनाली" बोल रही हूं।


प्रकृति ने अपना खजाना मुक्त हस्त से मुझ पर लुटाया है, बर्फीले पर्वत शिखर उनकी ढ़लानों पर सेवों के बागीचे, सीढ़ी नुमा खेत, खिलौने की तरह के घर और यहां के सीधे-साधे वाशिंदे आपको मोह ना लें तो कहिएगा। 

मेरे परिवार हिमाचल में आपका स्वागत है। मेरे परिवार के सारे सदस्य बहुत सुंदर, शांत और आथित्य प्रेमी हैं। मेरे सबसे बड़े भाई शिमले को हिमाचल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। हम भाई बहन एक से बढ़ कर एक खूबियों के मालिक हैं। मैं और मेरा भाई कुल्लू दोनों जुड़वां हैं। एक राज की बात बताती हूं। कुल्लू थोड़े पूराने विचारों का है। इसीलिए उसकी सारी पूरानी बस्तियां, मंदिर, मोहल्ले वैसे के वैसे ही हैं। पर मेरे बार-बार टोकते रहने पर अब धीरे-धीरे बदलना शुरु कर रहा है। जिसके फलस्वरूप उसे एक फ्लाई-ओवर का पुरस्कार मिला है इससे पीक सीजन में, अखाड़ा बाजार पर लगने वाले घंटों के जाम से यात्रियों को राहत भी मिल गयी है। उसकी बनिस्पत मैं आधुनिक विचारों की हूं। इसी कारण पर्यटक अब मेरे पास आना ज्यादा पसंद करते हैं।

पर इस आधुनिकता का खामियाजा भी मुझे भुगतना पड़ा था, सालों पहले, जब हिप्पी समुदाय के लोगों ने मेरे यहां जमावड़ा डाल, चरस गांजे का अड़्ड़ा बना कर दुनिया भर में मुझे बदनाम कर दिया था। बड़ी मुश्किलों के बाद धीरे-धीरे फिर मैंने अपना गौरव प्राप्त कर लिया है।

कुल्लू से मेरी दूरी 40 किमी की है। व्यास, जिसे नद होने का गौरव प्राप्त है, के दोनों किनारों पर बने सुंदर सड़क मार्ग यात्रियों को मुझ तक पहुंचाते हैं। व्यास के दोनों ओर सैकड़ों गांव बसे हुए हैं पर ठीक बीस किमी पर एक कस्बा पतली कुहल है,

जो आस-पास के गांवों की जरूरतों को पूरा करता है। इसी के पास नग्गर नामक स्थान पर विश्व प्रसिद्ध रशियन चित्रकार ‘निकोलस रोरिक’ की आर्ट गैलरी है। रोरिक हिंदी फिल्म जगत की पहली सुपर-स्टार तथा पहले दादा साहब फाल्के पुरस्कार की विजेता देविका रानी के पति थे। पतली कुहल में सरकारी मछली पालन केन्द्र भी है। पर जैसे-जैसे लोगों की आवाजाही बढ़ रही है वैसे-वैसे मेरा प्राकृतिक सौंदर्य भी खतरे में पड़ता जा रहा है। मेरे माल रोड से पांच-सात किमी पहले से ही होटलों की कतारें शुरु हो जाती हैं। जिनकी सारी गंदगी व्यास को भी दुषित बना


रही है। यह एक अलग विषय है। अभी आप अपना मूड और छुट्टियां खराब ना कर मेरी अच्छाईयों की तरफ ही ध्यान दें। जहां माल रोड खत्म होता है वहीं से एक सीधी चढ़ाई आप को हिडम्बा माता के मंदिर तक ले जाती है, घबड़ाने की बात नहीं है वहां तक आप अपनी गाड़ी से आराम से पहुंच सकते हैं। इस जगह पहले घना जंगल था पर उसे अब व्यवस्थित कर पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है। इसकी विस्तृत चर्चा फिर कभी। नीचे मुख्य मार्ग, व्यास को पार कर दूसरे किनारे से आने वाले रास्ते से

मिल लाहौल-स्पिति, जो एशिया का सबसे बड़ा बर्फिला रेगिस्तान है, की ओर बढ़ जाता है। इसी पर मेरे माल रोड से एक-ड़ेढ़ किमी की दूरी से एक सड़क उपर उठती चली जाती है महर्षि वशिष्ठ के आश्रम की ओर। यहां उनका प्राचीन मंदिर है। अब कुछ सालों पहले एक राम मंदिर का भी निर्माण हो गया है। यहां एक गर्म पानी का सोता भी है, जिसमें नहाने वालों के चर्म रोगों को मैंने ठीक होते देखा है। जो इस पानी में प्रचूर मात्रा में सल्फर की उपस्थिति से संभव है। पर यहां भी बढ़ती आबादी का दवाब साफ दिखाई पड़ने लगा है। यह सुंदर रमणीक स्थान अब दुकानों घरों से पट गया है। फिर भी प्रकृति ने अपना खजाना मुक्त हस्त से मुझ पर लुटाया है। अभी भी और जगहों की बनिस्पत आप मुझे निसर्ग के ज्यादा पास पाएंगें। बर्फीले पर्वत शिखर उनकी ढ़लानों पर सेवों के बागीचे, सीढ़ी नुमा खेत, खिलौने की तरह के घर और यहां के सीधे-साधे वाशिंदे आपको मोह ना लें तो कहिएगा। अभी भी यहां के हवा-पानी तथा लोगों के दिलों पर बाहरी सभ्यता की बुराईयां पूरी तरह से हावी नहीं हो पायी

हैं। हम अपने नाम "देव भूमी" को अभी भी सार्थक करते हैं। मेरे छोटे भाई-बहन, मंडी, धर्मशाला, मैक्लाडगंज, सुंदर नगर आदि प्रकृति ने अपने हाथों से गढे हैं। जिनका निश्छल सौंदर्य किसी का भी पहली नज़र में मन मोह लेता है। उन पर अभी बढती आवा-जावी का भी असर नहीं पड़ा है। जिसे आप खुद महसूस कर पाएंगे।


अपने बारे में तो कोई भी कहने से नहीं थकता। हो सकता है कि पढ़ने से आप बोर भी हो जायें। पर यह मेरा दावा है कि एक बार यदि आप मेरे पास आयेंगें तो फिर मुझे भूल नहीं पायेंगें। अब तो मुझ तक पहुंचने के लिए हर तरह की सुविधा भी उपलब्ध है।

तो कब आ रहे हैं ? मैं इंतजार में हूं.

11 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आलेख पुराना है पर फोटो ताजी हैं। अभी कुछ दिनों पहले बहुत कम समय के लिए जाना हुआ था तो लौट कर, आग बरसाती गर्मी से कुछ राहत दिलवाने के लिए उसे फिर आप तक पहुंचा रहा हूं।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

पुरानी है तो क्या हुआ, 1 नम्बर पोस्ट है।

मनाली का निमंत्रण स्वीकार किया। बाकी भाई बहनओं से भी मिलेगें।

राम राम

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

पुरानी शराब और नई बोतल... गज़ब का नशा :)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

पुरानी शराब और नई बोतल... गज़ब का नशा :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

तो फ़िर आईए, मिलते हैंमनाली में, असी और तुसी पिवांगे लस्सी, पहली धार दी।:)

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

वाह मनाली वाह! दीवाने तो हम भी हैं तेरे। लेकिन बडे भाई शिमले के नहीं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ललित जी, पहाड़ों में तीन संज्ञाएं बहुत मशहूर हैं। जिनमें यह "लस्सी" भी एक है।

Chetan ने कहा…

bahut su\ndar aur alag sa wiwaran.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नीरज जी, अब तो गर्मी के दिनों में कुल्लू तो छोड़िए मनाली का भी बुरा हाल होने लगा है, बढती भीड़ के कारण।
मंडी, बिलासपुर, धर्मशाला अभी भी कुछ बचे हुए हैं प्रदुषण से। देखना है कब तक। आप तो इतना घूमते हो कुछ कम प्रसिद्ध स्थलों और नामी जगहों का फर्क तो साफ महसूस किया होगा?

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर चित्रों सहित नायब प्रस्तुति.

SANDEEP PANWAR ने कहा…

मैं तीन बार जा चुका हूँ, अब किसी और की बारी है।

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