बहुत हो गया !! जिसे देखो वही मुझे देख खींसे निपोर रहा है। अरे हो जाती है गलती। सभी से होती है। मुझसे भी हो गयी होगी। पर सही बताऊं इधर पांच-छह महीने में दो-दो बार "ब्लंड़र-मिस्टेक" होने से खूब मजाक उड़ रहा है। इतना उड़ चुका है कि आपके उड़ाने के लिए शायद ही कुछ बचा हो। फिर भी देख लीजिए शायद कुछ हाथ लग ही जाए।
इधर दो-तीन सालों से स्कूल में अवकाश घोषित होते ही श्रीमतीजी पुत्र प्रेम के वशीभूत हो बिना एक दिन गवांए दिल्ली रवाना हो जाती हैं। फिर वहां से आकाशवाणी की तरह थोड़े-थोड़े अंतराल पर हिदायतें प्रसारित होती रहती हैं कि, कैसे-कैसे ध्यान रखना है खाने-पीने, आने-जाने, बंद-खोलने इत्यादि-इत्यादि का। जब कहो कि इतनी चिंता है तो 'पहलाई' मत किया करो तो रटा-रटाया जवाब होता है बच्चों के ख्याल का, जो अब उतने बच्चे भी नहीं रह गये हैं पर बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। पर ये दोनों माँ के पूत "टू मच" हैं। अभी अगली लौटती बाद में है दोबारा जाने की तारीख ये पहले ही पुख्ता कर देते हैं।
तो जनाब, पिछली दिवाली पर मुझे भी वहां पहुंचना था। अब उन्हीं दिनों कुछ तबीयत भी खराब हो गयी दुश्मनों की। अब चलने के अंतिम क्षणों तक हिदायतें प्रसारित होती रहीं। मैंने भी पूरी तरह चाक-चौबंद हो कर पूरी एहतियात बरत कर हर वस्तु को उसका यथायोग्य स्थान तथा मान प्रदान कर ही प्रस्थान किया। बस एक छोटी सी गफलत हो गयी कि आल्मारियों को ताला लगा चाबियां वहीं बिस्तर पर ही छोड़ दीं। यह कोई बड़ी बात नहीं होती यदि घर का काम करने वाली आया का मेरे जाने के बाद भी देखभाल के लिए घर आना-जाना ना होता। अब कोई कितना भी ईमानदार क्यों ना हो पर तांक-झांक का मौका तो नहीं ही चूकता। इस घटना को महीनों हो गये पर अभी भी यह बात चटखारे ले-लेकर सुनी सुनाई जाती ही थी कि फिर गर्मियों की छुट्टियां आ गयीं, फिर वैसा ही मंचन हुआ, फिर हिदायतों को सर माथे पर रख, घर बंद कर इस बार बड़े विश्वास के साथ अपन भी फिर दिल्ली चले गये। इस बार चाबियों पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित रखा, जैसे सप्लिमेंट्री आने के बाद एक बच्चा उसकी होने वाली परीक्षा का ध्यान रखता है। पर होनी को कौन टाल सका है। जिसके भाग्य में "यश" लिखा हो उसे मिलता जरूर है।
अभी आठ-दस दिन ही हुए थे वहां पहुंचे कि रायपुर से पड़ोसी का फोन आ गया कि तेज हवा के कारण आपकी किचन की बाल्कनी का दरवाजा खुल गया है। उन्हींने ही किसी तरह कुछ अटका कर उसे बंद रखा। मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि जब मैं "सब कुछ अच्छी तरह देख-भाल" कर चला था तो यह मुआ खुला कैसे रह गया। दरवाजा खुद तो बंद हो गया पर मसाला दे गया मुहोँ को खुलने का। बात अभी खत्म कहां हुई, कहते हैं ना कि भगवान जो करता है वह अच्छाई के लिए ही करता है।
वापस आने की निश्चित तारीख पर सब ठीक-ठाक, देख-भाल कर अपन ने रायपुर का रुख कर लिया। शहडोल-अनूपपुर के आस-पास घर की चाबी का ख्याल आया। खोज शुरु हुई। अटैची वगैरह सारे उलट-पलट कर देख डाले पर जिसे नहीं मिलना है वह कहां मिलता है। मेरे हिसाब से मैंने जाते ही चाबियां इन्हें दे दी थीं, क्योंकि मैं कभी यह सब झंझट नहीं पालता। श्रीमतीजी का कहना था कि वाद-विवाद की जड़ मेरे पास ही रही थी। एक दूसरे पर दोषारोपण करने के बाद दिल्ली फोन लगाने के बाद ये 'मूजियां' वहीं तशरीफ रखे मिलीं।
अब जो होना था वह तो हो गया पर यह कहावत बिल्कुल सच निकली कि "भगवान जो करता है वह अच्छे के लिए ही करता है।" अब देखिए वही दरवाजा जो खुला रह गया था और सिर्फ अटका कर के रखा गया था वही काम आया। थोड़ा जोखिम जरूर था पर उधर से ही अंदर जा दूसरी चाबियां ले घर को खोलना संभव हो पाया।
सब ठीक-ठाक हो गया। जिंदगी वापस अपने पुराने रवैये पर आ गयी। पर मेरी "मखौलियाई पतंग" को तो और ऊंचा आसमान ना मिल गया। अभी कुछ दिनों तक लगातार और फिर मौके-बेमौके रहेगा "तेरी ही चर्चा, तेरा ही जलवा"।
17 टिप्पणियां:
रोचक मनोरंजक प्रसंग....
मज़ाक उड़ाने को कुछ छोड़ा ही नहीं आपने... खुद ही सब कुछ कह सुन लिया.
यदि ईमानदार लेखन होता तो अवश्य समीक्षकों के लिये कोई-न-कोई झूल छोड़ देते.
अब तो मान लो जो होता है अच्छे के लिये ही होता है।
rochak
होता है, होता है, सब के साथ होता है। हम तो एक दिन घर की कुंडी लगाए बिना ही ताला चेप गए थे। गनीमत है दोस्तों को खबर नहीं हुई।
:):)
ज्यादा हिदायतें मानने का यही हश्र होता है। दिमाग पर बोझ बढ जाता है।
चलो हिमाचल में एक आश्रम बनाते हैं,बाबाओं की मौज हो रही है। धंधा चल निकलेगा। शर्मा एन्ड शर्मा कम्पनी। :)
वाह!
बहुत रोचक!
ह्र्रेक बात में भी एक गुड होता है जी। संसमरण रोचक रहा।
ललितजी नामों को बाबाई टच देना होगा यथा - ललितानंद, गगनानंद।
ऐसा होता सबके साथ पर बताता कोई कोई चलिए इस बहाने लोगों को खुशी देते है|
घबराइये मत शर्मा जी, कई हैं ऐसे बलण्डर मिस्टेक करने वाले... आप ईमानदारी से बखान कर गए, बाकी चुप चाप मन ही मन शर्मिन्दा हो लेते हैं!!! मज़ा आया! रोचक!!
मेरे साथ भी कई बार हो जाता है, पर अब उसके लिये सर पर हाथ धर कर बैठने से रहे। बहुत रोचक।
हा हा हा हा यानि कि आपके हर नए सफ़र के साथ गोया एक किस्सा तो जरूर जुड जाता है , चलिए इन सारे सफ़रों के लिए बुकमार्क बना कर रखिए उन्हें , मजेदार और रोचक भी । हमें जरूर बताते रहिएगा
yah to err se comedy ho gayee.
majedar sansmaran.
अजय जी, बस समझ लीजिए चोली दामन का साथ है।
To err is human
To forgive is divine
Mummy ne is galti ke liye kuch nh kaha hoga
Bahot hi acha aalekh
Mazedaar
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