यह ठीक है कि हर आदमी के अपने विचार, अपनी सोच होती है जिसे जाहिर करने की उसे पूरी आजादी भी होती है। पर कुछ हस्तियों पर दुनिया की सदा नज़र बनी रहती है, इसीलिए उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ता है। पर बच्चन साहब से इन दिनों यह क्या हो रहा है ?
"नो आयडिया" !!!
अब आप यह मत कहिएगा "नो आइडिया"
"नो आयडिया" !!!
जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढती है उसमें एक तरह की परिपक्वता आने लगती है। उसके सोच, विचार, आहार-व्यवहार सब मे एक बदलाव आता चला जाता है। लोगों की भी उससे अपेक्षाएं बढ जाती हैं। वे भी अपेक्षा रखने लगते हैं कि उसके जीवन भर के अनुभव उनका मार्गदर्शन करें। सदियों से ऐसा होता भी चला आ रहा है। ये अपेक्षाएं तब और भी बढ जाती हैं जब सामने वाला अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गया हो और उसकी ख्याति देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी सुरभी बिखेर रही हो। ऐसा भी नहीं है कि बढती उम्र की सच्चाई को सब हजम कर पा लेते हों, ऐसे भी बहुत से उदाहरण हमारे चारों ओर बिखरे पडे हैं जो अपनी हरकतों से उपहास या आलोचना का विषय बन जाते रहे हैं।
यह सारी भूमिका इसलिए है क्योंकि अपनी सैंकड़ों करोड़ की आबादी में मतैक्य तो हो ही नहीं सकता यानि "मुंड़े-मुंड़े मतरिभिन्ना"। यह जाहिर है कि मेरे विचारों से बहुतेरे लोग इत्तेफाक नहीं रख कुछ अलग तरह की सोच रखते होंगे। मेरी किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाने या किसी की छवि को धुमिल करने का नाही प्रयास है नाही इच्छा। फिर भी पिछले दिनों से एक विचार मन में घुमड़ रहा था जिसने एक दो दिन पहले की खबरों से और गहन रूप ले लिया।
मैं बात कर रहा हूं इस सदी के महानायक, अपने समय में लाखों लोगों के ह्रदय पर राज करने वाले अमिताभ बच्चन की। मुझे भी उन्होंने आकर्षित कर रखा था अपनी कुछ फिल्मों में के उम्दा अभिनय से ज्यादा, हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर अपनी मजबूत पकड़ और पहाड़ जैसी विपत्तियों के बावजूद मैदान में डटे रहने के कारण। जबकि उनके संगी-साथियों-रिश्तेदारों ने उन्हें अपने आप को दिवालिया घोषित करने की सलाह दे दी थी।
पर पिछले कुछ दिनों ऐसी बातें हुई हैं जो उनकी छवि को कुछ तो धुमिल करती ही है। पहली है उनके अपने घर की तरफ से पेश की जाने वाली फिल्म, जिसका शीर्षक रखा गया है #बुढ्ढा_होगा_तेरा_बाप। फिल्मी जगत में एक से एक फुहड़ लोग और उनके द्वारा निर्मित कुड़े की भरमार है। ऐसे-वैसे निर्माता निम्नस्तरीय, बेसिर-पैर की फिल्में बनाते रहे हैं और रहेंगे। पर जब एक सुसंस्कृत इंसान, जिसका नाम ही सभ्यता का प्रतीक माना जाता हो, जिसका अभिनय लोगों को पाठ्यक्रम की तरह राह दिखाता हो, जिसकी चाल-ढाल, बोल-चाल, रहन-सहन सब कुछ गरिमा का "ओरा" ओढे रहता हो, उसकी क्या मजबूरी थी इस तरह की फिल्म खुद बनाने की। यह मान भी लिया जाए कि चलो अपने चाहने वालों के मनोरंजन के लिए कोई कुछ भी कर सकता है, तो भी इस तरह के सडक छाप शीर्षक से तो बचना ही चाहिए था। जो किसी भी तरह उनके कद को बढाने में किसी भी तरह सहायक नहीं हो सकता।
दूसरे, एक-दो दिन पहले उनके ट्वीट ने अचंभित कर दिया जब उन्होंने अपने दादा बनने का ऐलान अपने ब्लाग पर किया। ऐसा लगा कि कोई ऐसी अनहोनी पहली बार होने जा रही है जिसकी किसी को उम्मीद ही नहीं थी। किसी भी परिवार में किसी नये सदस्य का आना प्रभू की नेमत होता है। घर-परिवार फूला नहीं समाता। बच्चन परिवार कोई अपवाद नहीं है। यह भी सही है कि वे अपने परिवार को लेकर बहुत 'पोसेसिव' हैं, पर जिस तरह की प्रतिक्रिया बच्चन साहब की थी वह कुछ बचकानी और अतीरेक लिए हुए थी। ये अलग बात है कि इस पर भी उन्हें एक हजार तीन सौ पैंतीस टिप्पणीयां मिलेंगी। वह तो वैसे भी तैयार रहती हैं जब वह लिख देते हैं कि सुबह उठते ही मुझे आज छींक आ गयी। यह सब कुछ ज्यादा ही सालता है जब वर्षों से आपके मन में उनकी एक अलग तरह की तस्वीर घर बनाए बैठी हो। इस उम्र में ऐसा क्यूं हो रहा है ?
अब आप यह मत कहिएगा "नो आइडिया"
13 टिप्पणियां:
सही लिखा है आपने| अमिताभ की पुरानी छवि को तो टूटना ही था| पुराने जमाने की मीडिया और अर्थयवस्था से अब के जमाने में बहुत परिवर्तन आ गये हैं| अब बच्चन एक व्यक्तित्व नहीं सिर्फ एक ब्रांड है जो दूसरे ब्रांड्स को बिकने में मदद करता है|
जब मैने भी इस फिल्म का विज्ञापन देखा था तब मुझे इसका नाम नहीं जमा था. अच्छा आलेख
sateek
पैसा जो करादे वह कम ही है।
वैसे आपने चलते-चलते एक पोस्ट लगा ही दी।
इसे कहते हैं ब्लॉगिंग :)
सच्मुच "नो आइडिया".. मगर् आपके लिये "वाट ऐन आइडिया गगन जी!!
इन्तेजार और बुढापे का कमाल है
प्रचार
उनका जवाब हो सकता है, मेरे अंगने में ...
shayad bazar se bahar hone ka dar yah sab karawa raha ho
गेट आइडिया- थ्री मच :)
yadi yahi khabar jayaa ji ke dwara kahalwate to garima badh jaati.
Ha ha.bahot sahi kaha
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