उपदेश या नसीहत देना बहुत आसान होता है। जरा सा कुछ अप्रिय घटा नहीं, कुछ उल्टा-सीधा हुआ नहीं कि बरसाती मेढकों की टर्राहट की तरह चारों ओर से नसीहतें बरसने लगती हैं। पचीस किलो का आदमी भी मोटे होने के गुर बताने लगेगा और पूरे परिवार के लिए हर महीने दवा खरीदने वाला भी निरोग रहने के नुस्खे लिए चला आएगा।
अब मुझे ही ले लीजिए गुस्सा नाक पर बैठा रहता है, जरा सी बात पर पारा 180 की हद छूने लगता है पर आज मौका मिलते ही मैं आप को गुस्से से होने वाले नुक्सान गिनाने जा रहा हूं। चाहे आप इससे कितना भी गुस्सा हो जाएं।
गुस्से का तात्कालिक असर शरीर पर तुरंत दिखने लगता है। चेहरा विरूप हो जाता है। भूख मर जाती है। अपने पर संयम नहीं रह जाता। आप को पता भी नहीं चलता कि आप कैसे किसी पर अपना क्रोध उतारने लगते हैं। हाथ में आई चीज पटक दी जाती है। कभी-कभी हाथ भी चल जाता है। पैर पटकना आम बात होती है। मुंह से अनाप-शनाप शब्द निकलने लगते हैं। छोटे-बड़े का लिहाज नहीं रह जाता। बाद में भले ही कितना भी पछतावा हो, उससे क्या फायदा।
गुस्सा आता क्यूं है? वैज्ञानिक कहते हैं कि गुस्सा आता है, चला जाता है। उसे गले लगा कर मत रखिए। कारण खोजिए कि क्रोध आता क्यूं है।
आपको लगता है कि सामने वाला आप का अनादर कर रहा है। व्यक्तिगत रूप से आपको परेशान किया जा रहा है। रास्ता चलते लोग सड़क के नियमों का पालन नहीं कर रहे। पड़ोसी के कारण आपकी सफाई प्रभावित हो रही है। ऐसा ही कुछ भी या बहुत कुछ भी क्रोध भड़काने के कारण हो सकते हैं।
पर सोचिए, इससे मिलता क्या है? अशांति, उच्च रक्तचाप, दिल की तेज धड़कन, बढा हुआ कोलोस्ट्रोल, कम होती रोग प्रतिरोधक क्षमता और ना जाने क्या क्या।
थोड़ा सा अपने को बदलें। पड़ोसी से बात कर हल निकालने की कोशिश करें। सड़क पर शांत रहें। कोई लापरवाही कर रहा है तो खुद रुक जाएं। आप सब को नहीं ना सुधार सकते। पूरानी बातों, रंजिशों को भूलने की कोशिश करें। छोटी-छोटी बातों को दिल पर ना लें। जिन बातों से गुस्सा आता हो उनसे बचने की कोशिश करें। क्योंकि गुस्से से कुछ हासिल नहीं होता उल्टे खोना बहुत कुछ पड़ जाता है।
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9 टिप्पणियां:
शर्मा जी बहुत अच्छॆ गुर बताये, वेसे आदमी मै गुस्सा ना हो तो कोई नही पुछता... सभी यहां तक की बीबी भी आंखे दिखाती है. ओर आदमी गुस्से वाला हो तो सालिया भी सलाम करती है
सहमत हूँ गुस्से से कुछ हासिल नहीं होता है....
सहमत हूँ गुस्से से कुछ हासिल नहीं होता है....
भाटिया जी ने गुस्से के सकारात्मक पक्ष को सामने ला दिया।
कहा गया है कि- भले काटो मत लेकिन फ़ुंफ़कार रखो नहीं तो लोग पत्थर मार मार कर घायल कर देंगे।
राम राम
पच्चीस किलो के आदमी को भी भारत में संविधान के 19वें अनुच्छेद के प्रयोग का समानाधिकार है...हां पर यह बात ज़रूर है कि सड़क पर इस प्रकार के अनुच्छेदों का प्रयोग करना कुछ चिंताजनक हो सकता है क्योंकि सामने वाले के पास भी वही अधिकार होते हैं :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 11.07.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
यह बार-बार नेट, डिस्कनेक्ट हो रहा है। मन तो करता है कि उठा कर पटक दूं !!!
पर उपदेश कुशल बहुतेरे. :)
काजल जी, अनुच्छेद चौदह हो या उन्नीस, सब उन्हीं के लिये हैं जो समर्थ हैं... जो असमर्थ हैं उनकी पीठ पर पुलिसिया डन्डा चटका कर संविधान में प्रदत्त गरिमा को मिट्टी में मिला देता है..
उपाय कारगर...!
?
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