शनिवार, 6 मार्च 2010

अपने "भगवानों" की असलियत जानने की जहमत कब उठाएंगे?

रोज कहीं न कहीं किसी न किसी बाबा की असलियत पर लानत मलानत करनेवाले अपने "भगवानों" की खोज-खबर कब लेंगे?

रोज मीडिया पर नामी-गिरामी तथाकथित संतों, बाबाओं तथा स्वघोषित भगवानों की पोल खुलते देख कुछ साल पहले की एक बात याद आ रही है।

पंजाब की भी परम्परा रही है, मठों, गद्दियों, मढियों की। वर्षों से ऐसे स्थानों से गांववालों के लिए शिक्षा, चिकित्सा की व्यवस्था होती रही है, धार्मिक कर्मकांडों के साथ-साथ। बहुत से संतों ने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन लोगों की हालत सुधारने में खपा दिया है। पर धीरे-धीरे गांववालों के भोलेपन का फायदा उठा यहां भी बहुतेरी जगहों पर अपना उल्लू सीधा करने वालों ने अपने पैर जमाने शुरु कर दिए हैं।

कुछ वर्षों पहले पंजाब के कपूरथला जिले के एक "गांव" में जाने का मौका मिला था। वहां कुछ देखने सुनने को तो था नहीं सो गांव के किनारे स्थित मठ को देखने का फैसला किया गया। शाम का समय था। मठ में काफी चहल-पहल थी। मैं वहां पहली बार गया था तो मेरे साथ भी कौतुहल वश कुछ लोग थे। मंदिर का अहाता पार कर जैसे ही वहां के संतजी के कमरे के पास पहुंचा तो ठगा सा रह गया। उस ठेठ गांव के मठ के वातानुकूलित कमरे की धज ही निराली थी। सुख-सुविधा की हर चीज वहां मौजूद थी। उस बड़े से कमरे के एक तरफ तख्त पर मोटे से गद्दे पर मसनद के सहारे एक 35-40 साल के बीच का नाटे कद का इंसान गेरुए वस्त्र और कबीर नूमा टोपी लगाए अधलेटा पड़ा था। नीचे चटाईयों पर उसके भक्त हाथ जोड़े बैठे थे। मुझे बताया गया कि बहुत पहुंचे हुए संत हैं। बंगाल से हमारी भलाई के लिए यहां उजाड़ में पड़े हैं। बंगाल का नाम सुन मेरे कान खड़े हो गये। मैंने पूछा कि कौन सी भलाई के काम यहां किए गये हैं, क्योंकि मुझे गांव तक आने वाली आधी पक्की आधी कच्ची धूल भरी सडक की याद आ गयी थी। मुझे बताया गया कि मठ में स्थित मंदिर में चार कमरे बनाए गये हैं, मंदिर का रंग-रोगन किया गया है, मंदिर के फर्श और दिवार पर टाईल्स लगाई गयीं हैं, मंदिर के हैंड पम्प पर मोटर लगाई गयी है। मुझे उनके कमरे और "भलाई के कामों" को देख उनके महान होने में कोई शक नहीं रहा। इधर साथ वाले लोग मुझे बार-बार संतजी के चरण स्पर्श करने को प्रेरित कर रहे थे पर मेरे मन में कुछ और ही चल रहा था। मैंने आगे बढ कर बंगला में संत महाशय से पूछा कि बंगाल से इतनी दूर इस अनजाने गांव में कैसे आए? मुझे बंगाली बोलते देख जहां आसपास के लोग मेरा मुंह देखने लगे वहीं दो क्षण के लिए संत महाशय सकपका से गये, पर तुरंत सम्भल कर धीरे से बोले कि बस ऐसे ही घूमते-घूमते।

मैं पूछना तो बहुत कुछ चाहता था पर वहां के माहौल और उनके प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा को देख कुछ हो ना पाया और मन में बहुत सारे प्रश्नों को ले बाहर निकल आया। बाहर आते ही पिछवाड़े की ओर कुछ युवकों को "सुट्टा" मारते देख मैंने साथ के लोगों से पूछा कि ये "चिलमिये" कौन हैं तो जवाब मिला यहां के सेवादार हैं।

मन कुछ अजीब सा हो गया। रोज टी. वी. पर बाबाओं की पोल खुलते देख उनकी लानत-मलानत करने वाले अपने "भगवानों" की असलियत जानने की जहमत कब उठाएंगे, भगवान ही जाने।

8 टिप्‍पणियां:

Neha Pathak ने कहा…

bilkul sahi kaha aapne....
ye log aise hote hai...ye "santgiri" bas paise kamaane ka tareeka hai

राज भाटिय़ा ने कहा…

लेकिन गलती इन बाबाओ की नही, हम जेसे बेवकुफ़ो की है, जो के आश्रम मै अपनी बहू बेटियो को भेजते है आश्रिवाद लेने के लिये, इन के पांव दवाते है ओर इन्हे भगवान समझते है, मै तो इन्हे जुते मार मार कर बाहर निकाल देता हुं, वो चाहे कोई भी गुरु हो, यह जितने भी टी वी बाले बाबा है सब के सब जुतो से पुजने वाले है, लेकिन जनता को कोन समझाये????

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बुद्धि किस लिये दी है प्रकृति ने. विष और अमृत में फर्क कर सकते हैं, अपराधी और साधु में नहीं?

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

भीतर से खोखले लोगों के चलते ही चल रही है बाबाई

संगीता पुरी ने कहा…

कहीं ये संत जनता को हिप्‍नोटाइज तो नहीं कर लेते हैं ??

महावीर ने कहा…

धर्मात्मा बन लूटते हैं धर्म ही के नाम पर,
शैतान भी हंसने लगा है आदमी के नाम पर।

ये मन्त्रों के जाप से उपचार का दावा करें
सब खोखले अल्फ़ाज़ हैं संजीवनी के नाम पर

बाबा चमत्कारी मदारी की कला में कम नहीं
अब तो विदेशी गाड़ियां हैं स्वामी जी के नाम पर

बस राख माथे पर लगा दी,रोग के उपचार में
ये ज़िन्दगी से खेलते हैं ज़िन्दगी के नाम पर

जब आदमी हैवानियत की गोद में पलने लगा
इनसानियत रोने लगी है बेकसी के नाम पर

नकली दवा बिकती रहे, बीमार की पर्वाह किसे
बिकने लगी है मौत भी अब ज़िन्दगी के नाम पर


महावीर शर्मा

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

हमारी भलाई के लिये नही, अपनी भलाई के लिये.

Udan Tashtari ने कहा…

सच में..कब आखिर? भगवान ही जाने!

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