बहुत पुरानी बात है। सभी प्राणी मिल-जुल कर रहते थे। पूरी दुनिया पर पशु-पक्षियों का राज था। मनुष्य कहीं छिप-छिपा कर रहता था। एक बार एक पेड़ की निचली डाल पर घोंसला बना, एक गौरैया ने उसमें अंड़े दे दिये। दो-चार दिन बाद ही वहां से हाथियों का झुंड़ निकला। उनमें से किसी एक के शरीर से रगड़ खा वह डाल टूट गयी जिस पर चिड़िया का बसेरा था, उसका घर उजड़ गया। वह काफी चीखी चिल्लाई पर हाथी अपनी मस्ती में आगे बढ गये। गौरैया ने जा कर पशुओं के राजा शेर से शिकायत की, पर गरीब की कौन सुनता है, उसे वहां से भगा दिया गया। रोती-कलपती दुखी चिड़िया ने आखिर पक्षियों के राजा, गरुड़ के दरबार में गुहार लगाई। उन्होंने उसकी बात सुनी और पशुओं के राजा को इंसाफ करने और हर्जाना देने को कहा। उधर हाथी का रसूख दरबार में बहुत था सो शेर ने कोई ध्यान नहीं दिया। यह बात पक्षियों के राजा को खल गयी और उन्होंने युद्ध का एलान कर दिया। दोनो तरफ के सूरमा मैदान में इकठ्ठे हो गये। सुबह की पहली किरण के साथ ही लड़ाई शुरु हो गयी। हालांकि पक्षियों में एक से बढ कर एक योद्धा थे पर आमने-सामने की लड़ाई में वे विशालकाय हाथी, दुर्धष गैंड़े, ताकतवर शेर, चीते, भैंसे इत्यादि से कहां पार पा सकते थे। दिन भर की लड़ाई के बाद पक्षियों के हजारों सैनिक मारे गये।
इस पूरी लड़ाई को मौका परस्त चमगादड़ छिप के देख रहा था। जब शाम को पशुओं की जीत होती दिखी तब वह शेर के पास जा बोला, महाराज मुझे अपनी ओर रहने का मौका दे दें, क्योंकि मैं भी आप लोगों की तरह बच्चे पैदा करता हूं और स्तनपायी हूं। शेर ने उसे इजाजत दे दी। इधर पक्षियों की मंत्रणा हुई, हार के कारणों पर बहस हुई तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ कि जब हम उड़ सकते हैं तो फिर जमीन पर खड़े हो कर क्यूं लड़ रहे हैं? ऐसे तो हमारा सफाया हो जाएगा। तुरंत रण-नीति बदली गयी। सबेरा होते ही जब युद्ध शुरु हुआ तो परिणाम बिल्कुल उल्टे थे। पशुओं के उपर तो जैसे मौत नाचने लगी, पक्षी उन पर उड़-उड़ कर प्रहार कर रहे थे और वे असहायों की तरह मरते जा रहे थे। शाम होते-होते इस एकतरफा लड़ाई में हजारों पशु खेत रहे। पक्षियों की जीत निश्चित हो गयी थी। यह देख चमगादड़ चुप-चाप पक्षियों के राजा के पास गया और बोला, महाराज मुझे अपनी शरण में ले लें, मुझे पशुओं ने जबर्दस्ती अपनी ओर कर रखा था। मैं तो आपकी तरह ही उड़ता हूं , पेड़ों पर रहता हूं मैं तो पक्षी ही हूं। जीत की खुशी थी राजा ने ज्यादा ध्यान ना दे उसे अपनी ओर मिला लिया।
इधर पशुओं के राजा ने जब लड़ाई के कारण पर गौर किया तब उन्हें लगा कि गलती हमारी ही थी। हाथी ने जो किया वह दंड़ के लायक था। बेवजह इतने पशु-पक्षियों की जानें गयीं। उन्होंने तुरंत क्षमा मांगते हुए संधि प्रस्ताव पक्षियों की ओर भेजा। इधर बेचारी चिड़िया भी इतने लोगों के मारे जाने से दुखी थी। उसने भी अपने राजा को युद्ध रोकने की प्रार्थना की। लड़ाई खत्म हुई सब जने आपस में गले मिल वैर-भाव मिटा रहे थे। तभी चमगादड़ की असलियत भी सब के सामने आ गयी। दोनों पक्षों को धोखा देने के कारण उसकी बुरी गत बना दी गयी तथा दोनों पक्षों से दूर रहने का आदेश पारित कर दिया गया।
तबसे चमगादड़ अपने ही झुंड़ में अलग-थलग रहता है और ड़र के मारे रात को ही निकलता है।
पर धीरे-धीरे उसकी प्रवृत्ति मनुष्यों में भी आ गयी पर मनुष्य को अलग-थलग नहीं रहना पड़ता। उसकी कुटिल बुद्धि ने दुसरों को अलग-थलग कर खुद सत्ता हथियाने का करिश्मा कर दिखाया है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
होली की हार्दिक शु्भकामनाएं।
चमगादड़ तब से भारत के नेता( आज के नेता) बन गये, ओर अब इन्की यह बिमारिया आम आदमी मै भी पायी जाती है. बहुत सुंदर कहानी
धन्यवाद
सत्य वचन महाराज!
सटीक गाथा...
great lines
sahi kaha.........aaj bhi aise kai chamgadad samaj me mil jate hain...jinhe pahchanne ki hamen fursat hi nahi hoti...kyunki ham vyarth ki baton me uljhe rahte hain..
achchha laga...
holi ki hardik shubhkaamnaye
गगन जी,
उस लडाई मे मनुष्य का क्या रिकार्ड रहा?
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