परिवार के मुखिया कृपाशंकर दूबे, मितव्ययी, कर्मकांड़ी, अपने आचारों-व्यवहारों का कड़ाई से पालन करने वाले, एक सख्त मिजाज इंसान, जिनकी बात काटने की हिम्मत घर के किसी भी सदस्य की नहीं होती।
अच्छा घर और वर तथा वधू मिलते ही एक ही मंडप तथा मुहुर्त में अपने लड़के तथा लड़की की शादी कर एक ही साथ कन्यादान और वधू का गृह-प्रवेश करवा गंगा नहा लिये।
आज शादी के दूसरे दिन, नववधू की भोजन बनाने के रूप में अग्निपरीक्षा होनी है। सारे परिवार की उत्सुक निगाहें रसोई की तरफ लगी हुई हैं। प्रतिक्षा खत्म हुई वधू ने विभिन्न व्यंजन परोस दिये। खाना बहुत ही उम्दा और स्वादिष्ट बना था। हर सदस्य तृप्त तथा संतुष्ट नजर आ रहा था। तभी अचानक कृपाशंकर जी की भृकुटि पर बल पड़ गये, उनकी सब्जी में एक लम्बा सा बाल निकल आया था। जो निश्चित रूप से बहू का ही था। भोजन अधूरा छोड़ उन्होंने अपना आसन त्याग दिया तथा वहीं खड़े-खड़े अपने बेटे मोहन को बहू को उसके घर वापस छोड़ आने की आज्ञा सुना दी। सारा घर निस्तब्ध रह गया। किसी की भी हिम्मत प्रतिवाद करने की नहीं थी। परिस्थिति की गम्भीरता को समझ नववधू के आंसू थम ही नहीं रहे थे। तभी घर के बाहर से कुछ अजीब सी आवाजें तथा हलचल का आभास हुआ। जब तक वस्तुस्थिति का कुछ पता चलता, घर में दूबेजी की नवविवाहिता कन्या, कला, ने रोते हुए प्रवेश किया। सारे जने सन्न रह गये किसी विपत्ती को भांप कर। कन्या को बिठा कर सबने उससे इस तरह आने का कारण जानना चाहा, तो रोते-रोते बड़ी मुश्किल से कला ने बताया कि आज उसे पहली बार ससुराल में खाना बनाना था। सब ठीक था पर खाते समय श्वसुरजी की दाल में बाल निकल आया था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front
सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार &...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
8 टिप्पणियां:
इसे यदि जीवन के उस चक्र के रूप में देखा जाये ....जो घूम कर वहीं पहुंच जाता है ..तो ठीक रहेगा न...हर बेटी किसी न किसी की बहू होती है..और हर बहू किसी न किसी की बेटी...बस बात यही समझने की है....और बाल कहां समझते हैं....इतनी दुनियादारी.....
अगर देखा जाये तो आप ने जो कुछ भी कहा वह बिल्कुल सत्य है। देर भले हो जाती है लेकिन करनी का फल मिलता जरुर है।
ससुर की दाल में बाल मिला याने दाल काली भयो आनंद आ गया पढ़कर . आभार.
जरूर किसी खुन्नस खाए हुए प्रतिपक्ष वाले का काम होगा.
है भगवान तु सब को हाथो हाथ ही उन के कर्मओ का फ़ल दे तो भारत मै कितनी शाति हो जाये सब सुखी हो जाये, कोई भुखा ना रहे, ... शर्मा जी बहुत सुंदर कहानी...
बेहतरीन रही यह लघु कथा!
केवल बाल के लिए इतना कुछ ! कुछ ज्यादा हो गया ।
हिमांशु जी,
वर्तमान में यह कुछ ज्यादा और ज्यादती लगती है, पर 30-35 साल पहले यह कोई बड़ी बात नहीं थी। जब बहुओं की चाल, बाल और खाना बनाने के तरीकों को 'सुक्ष्मदर्शी' से देखा जाता था।
एक टिप्पणी भेजें