कभी जगतगुरु होने का दावा करने वाला अपना देश आज कहाँ आ खडा हुआ है? चारों ओर भर्ष्टाचार, बेईमानी, चोर-बाजारी का आलम है । कारण सब जानते हैं। साफ सुथरी छवि वाले, पढ़े-लिखे, ईमानदार, देश-प्रेम का जज्बा दिल में रखने वालों के लिए सत्ता तक पहुँचना सपना बन गया है। धनबली और बाहुबलीयों ने सत्ता को रखैल बना कर रख छोडा है। ऐसे में हमारे एक अदने से पड़ोसी ने जो राह दिखाई है क्या हम उससे कोई सीख ले सकते हैं ?
हमारा छोटा सा पड़ोसी "भूटान"। उसने अपने स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं। उसके लिए पढ़े-लिखे योग्य व्यक्तियों को ही मौका देने के लिए पहली बार लिखित और मौखिक परीक्षाओं का आयोजन किया गया है। इसमें प्रतियोगियों की पढ़ने-लिखने की क्षमता, प्रबंधन के गुण, राजकाज करने का कौशल तथा कठिन समय में फैसला लेने की योग्यता को परखा जाएगा। इस छोटे से देश ने अच्छे तथा समर्थ लोगों को सामने लाने का जो कदम उठाया है, क्या हम उससे कोई सीख लेने की हिम्मत कर सकते हैं ?
हमारा छोटा सा पड़ोसी "भूटान"। उसने अपने स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं। उसके लिए पढ़े-लिखे योग्य व्यक्तियों को ही मौका देने के लिए पहली बार लिखित और मौखिक परीक्षाओं का आयोजन किया गया है। इसमें प्रतियोगियों की पढ़ने-लिखने की क्षमता, प्रबंधन के गुण, राजकाज करने का कौशल तथा कठिन समय में फैसला लेने की योग्यता को परखा जाएगा। इस छोटे से देश ने अच्छे तथा समर्थ लोगों को सामने लाने का जो कदम उठाया है, क्या हम उससे कोई सीख लेने की हिम्मत कर सकते हैं ?
8 टिप्पणियां:
हम तो हम ही हैं न! ऐसा हो भी जाएगा तो शातिर लोग यहाँ भी अपनी गोट बिछा कर अपने किसी भाई भतीजे को मापदंड पर साम-दाम-दंड-भेद की नीति से खरा सिद्ध करवा देंगे.
यही तो विडम्बना है कि हम किसी से कुछ सीखना नही चाहते हैं। हमें तो यह घमण्ड हो गया है कि हम जगत्-गुरू हैं।
हमारा बस चलता तो यहाँ से भाग निकलते.
ओर एक दिन ऎसा आयेगा कि हम सब से पिछडे रह जायेगे, ओर हमारे से छोते छोटे देश भी हम से आगे निकल जायेगे.....
भाई हम भारतवासी किसी देश से कुछ अच्छा सिखने से रहे .... हाँ फैशन शो, रियलिटी शो आदि की बात करें तो हम भारतीय लोग सबसे पहले copy करने पहुँच जायेंगे |
हां बडे होने का गर्व हमें नतमस्तक होने कहां देता है, कि हम देख सकें, ज़मीन पर क्या हो रहा है?
anything possible :(
मैं रोज़ देखता हूँ कि ईमानदार लोग राजनीति से दूर भागते हैं, क्योंकि सिस्टम उन्हें अंदर आने ही नहीं देता। मैं भूटान का ये कदम बहुत जिम्मेदार मानता हूँ, क्योंकि वो नेतृत्व को एक गंभीर जिम्मेदारी की तरह देखते हैं, सिर्फ कुर्सी नहीं। हम भी चाहते है कि हमारा देश भी ऐसी हिम्मत दिखाए और योग्यता को ताकत से ऊपर रखे।
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