सोमवार, 6 अप्रैल 2009

प्रह्लाद जैसा भाग्य एलेक्सिस का नहीं था

यह कहानी सदियों पहले हमारे देश में घटी, प्रह्लाद की कहानी से मिलती-जुलती है। पर अंत में जहां प्रह्लाद को भगवान का सहारा मिल गया था। वैसा खुशनसीब एलेक्सिस नहीं रहा-------- रूस, जहां हुआ एक तानाशाह, नाम पीटर। आतंक का जीता-जागता रूप। जिसने खुद को ईश्वर घोषित कर रखा था। जिसके शासन काल में हजारों लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी थीं। जो अपना जरा सा भी विरोध सहन नहीं कर पाता था। उसी पीटर का एकमात्र बेटा था, एलेक्सिस। बाप से बिल्कुल विपरीत, शांत, दयालू, विनम्र था जनता का लाड़ला। देशवासी उसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे। और यही कारण था कि पीटर के शंकालू मन में अपने ही बेटे के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न होती चली गयी। यहां तक कि वह अपनी पत्नि, यूडेसिआ, से भी घृणा करने लगा जिसने ऐसे पुत्र को जन्म दिया। बात इतनी बिगड़ गयी कि एक दिन एलेक्सिस की अनुपस्थिति में उसने यूड़ेसिया को बंदीगृह में डाल दिया। लौटने पर जब एलेक्सिस को यह पता चला तो वह शोकग्रस्त हो गया। वैसे भी उसे अपने पिता की कार्यप्रणाली से नफरत थी, पर वह अपने पिता को चाहता भी था। इसीलिए वह जनता की भलाई में लगा रहता था, जिससे लोगों में उसके पिता के प्रति नफरत कम हो जाए। पर होता इसका उल्टा ही रहा। वह जनता में लोकप्रिय होता चला गया और पीटर बदनाम। इससे पीटर की क्रोधाग्नि और भड़कती चली गयी। उसे यह सब अपने विरुद्ध षड़यंत्र लगता था। उसके शक को उसके चापलूस दरबारी और हवा देते रहते थे। अंत में पीटर ने एलेक्सिस का महल से बाहर निकलना बंद करवा दिया और धीरे-धीरे उसे मदिरा की लत लगवा दी। यह सब देख पीटर के एक मंत्री ने भविष्य भांप कर अपनी बेटी, कैथरिन, की शादी पीटर से करवा दी जिससे उसके पुत्र को राज मिल सके। कैथरिन बहुत चालाक और महत्वाकांक्षी थी। उसने पीटर को अपने मोह पाश में जल्दि ही फंसा लिया। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम भी पीटर ही रखा गया। अब एलेक्सिस को अपनी राह से हटाने की कोशिशें तेज हो गयीं। एक बार उसे मदिरा में जहर मिला कर दिया गया पर दैवयोग से वह विषयुक्त मदिरा उसके एक सेवक ने पी ली, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। फिर एक बार एलेक्सिस के कमरे में विस्फोटक पदार्थ रख दिए गये पर इस बार भी बाहर रहने की वजह से वह बच गया। धीरे-धीरे एलेक्सिस को अपने पिता और सौतेली मां के षड़यंत्रों की जानकारी मिलने लगी तो उसने रूस छोड़ने का ही मन बना लिया। उसने अपने इस फैसले की जानकारी अपने पिता को दे कर कहा कि मुझे सिंहासन से कोई लगाव नहीं है, मैं कोई अधिकार भी नहीं चाहता, मुझे सिर्फ यहां से चले जाने की आज्ञा दे दी जाए। परंतु शक्की पीटर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की। अत: एक रात एलेक्सिस अपनी पत्नि के साथ महल छोड़ निकल पड़ा और रोम में शरण ली। परंतु वहां भी पीटर ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और अपने जासूसों से उसका अपहरण करवा फिर रूस ले आया और बंदीखाने में ड़ाल दिया। इतने से भी उसका मन नहीं भरा और उसने एलेक्सिस को कठोर यातनाएं देनी शुरु कर दीं। पर उसके जिंदा रहने से कैथरिन को अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा था सो उसने पीटर को उकसा कर एलेक्सिस पर राजद्रोह का इल्जाम लगवा उसे मृत्युदंड़ दिलवा दिया। फांसी पर चढते समय एलेक्सिस ने रोते हुए कहा कि मुझे मरने का ना दुख है ना खौफ। मुझे एक ही बात का गम है कि मैं अपने ही पिता को यह विश्वास नहीं दिला पाया कि मैं उनका दुश्मन नहीं हूं।

8 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत बढिया ऐतिहासिक किस्सा लिखा आपने.

रामराम.

P.N. Subramanian ने कहा…

बड़ा ही करुण अंत हुआ एलेक्सिस का. उसकी माता का क्या हुआ नहीं बताया. वह भी जेल में ही मर गयी होगी. हमारे लिए तो यह एकदम नयी जानकारी थी. उत्तम प्रस्तुति. आभार.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

जब प्रमुख वैदिक देवता इंद्र बहुत बदनामं हो गया तो उसे पुराणकालीन धर्म में देवता के रूप में स्थापित रखना कठिन हो गया। वैदिक देवताओं के प्रतिनिधि के रूप मे इन्द्र के छोटे भाई विष्णु को त्रिदेवों की श्रेणी में लाने के लिए उस का महात्म्य तो स्थापित किया जाना था। यही कारण था कि प्रहलाद भाग्यशाली हो गया। पौराणिक काल के त्रिदेवों मे प्राचीन द्रविड़ धर्म से शिव और उपनिषदों के ब्रह्म के प्रतिनिधि के रूप में ब्रह्मा विराजमान हैं।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर ... बढिया प्रस्‍तुति ... सबका भाग्‍य एक सा नहीं होता।

बेनामी ने कहा…

अच्छी लेखनी हे..../ पड़कर बहुत खुशी हुई.../ आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप भी " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?
www.quillpad.in

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनाम दोस्त,
पोस्ट पर फिर आने का शुक्रिया। इस विषय पर पहले भी बात हुई थी अपनी, जबकि मैने बताया था कि मैं 'हिंदी कलम' का उपयोग करता हूं। हालांकि कापी-पेस्ट तरकीब का ईस्तेमाल करना पड़ता है पर यह इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें हिंदी के सारे अक्षर, चाहे वे कितने भी जटिल हों, टाईप हो जाते हैं। खोज-खबर लेते रहिएगा।

Gyan Darpan ने कहा…

बढिया प्रस्‍तुति ...

दर्पण साह ने कहा…

hridaya vidarak !!

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...