आज खबरों में पढा कि वयोवृद्ध सिनेकर्मी, पूर्व स्वतंत्रता सैनानी 95 वर्षीय श्री अवतार कृष्ण हंगल जो, ए.के. हंगल के नाम से ज्यादा जाने जाते हैं, बहुत बिमार हैं और काफी दिनों से बिस्तर पर हैं। वे अपने पुत्र विजय के साथ रह रहे हैं जो खुद 74 साल के हैं। इस जानलेवा मंहगाई के दौर में पूरा परिवार तंगदस्ती से गुजर रहा है। हंगल जी के इलाज के लिए हर महीने करीब 10 से 15 हजार रुपयों की आवश्यकता पड़ती है जिसके अभाव में उनका उचित इलाज नहीं हो पा रहा है।
यह चकाचौंध भरे, खुशहाली की तस्वीर बने, मौज-मस्ती के पर्याय फिल्म जगत और उसके सितारों के रजत पट के पीछे के घने अंधकार, मतलब परस्ती तथा तंग दिली की सच्चाई है।
पार्टियों में एक ही रात में लाखों रुपये उड़ा देने वाले, छोटे-बड़े पर्दे पर नकली मुस्कान बिखेरते बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले, कुत्ते-बिल्लीयों, जंगलों के लिए दिखावे की मुहिमों में फोटो खिचवाने वाले, मानवाधिकार के लिए विवादाग्रस्त लोगों के पक्ष में देश के भी विरुद्ध बोल कर अपने को मानव समर्थक कहलाने की लालसा वाले, यहां-वहां के मंदिरों में पैदल घूम-घूम कर करोंड़ों रुपयों को मुर्तियों पर अर्पण करने वाले, छोटे पर्दे पर आयोजित-प्रायोजित इनामी तमाशों में भाग लेकर कहां-कहां के N.G.O. को लाखों देने की बात करने वाले चर्चित चेहरे अपने ही व्यवसाय के एक साथी को इस बूरी दशा में नजरंदाज कर अपनी असलियत का ही पर्दाफाश कर रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि इस विशाल व्यवसाय का श्री हंगल कोई एक अनजान पुर्जा हों। वे एक जानी मानी हस्ती रहे हैं। उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। अपने उत्कर्ष में जरुरतमंदों के काम आने वाले इंसान का यह हश्र तकलीफदेह है।
पहले भी अनेकों बार फिल्म जगत की निर्मम मायानगरी अपने सरल ह्रदय सदस्यों के साथ ऐसा खेल खेल चुकी है, उनकी ढलती शामों में। ऐसे समर्पित कलाकारों की आड़े समय मे क्यों किसी को सुध नहीं आती यह दुखद और विचारणीय प्रश्न अक्सर दिल को कचोटता है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
यह दुनिया ऐसी ही है.
बड़ी दुखद स्थिति है.......
वैसे अभी तक logon ko pata nahin tha aaj pata chala है to log aage aayenge aur shaayad sab thik ho jaayega
इतना ही उपकार समझ कोई
जितना साथ निभाये.....:(
यही एक जगह आकर खुद को मानव कहना बेमानी लगने लगता है. दुनिया ऐसी है तो ऐसी क्यूँ है?
यह समाचार जानकर अफसोस हुआ, लेकिन फिल्म जगत की मायानगरी हृदयहीन या सहृदय, जो भी है, समाज जैसी ही है, उससे अलग नहीं.
डार से चुके बेंदरा अऊ असाढ के चुके किसान के इही गति होथे महाराज
परदेशी की प्रीत-देहाती की प्रेम कथा
अलबेला जी का अनुमान सही निकला। हंगल जी को महाराष्ट्र सकार से पचास हजार और भाजपा के जनाब मुख्तार नकवी जी की तरफ से एक लाख रुपये की सहायता राशि भेजने की घोषणा की गयी है। आशा है मदद समय पर मूर्त रूप ले लेगी।
जेसे हमारे नेता हृदयहीन हे वेसे ही यह फ़िल्मी नगरी भी बस ऊपर से चमकती हे, अंदर से देखने पर लोग हृदयहीन ही दिखेगे, बहुत से लोगो की जिन्दगी के बारे नजदीक से जानने को मिला, ओर बस नफ़रत सी होती हे इस नगरी से, जो अच्छे हे वो बहुत कम हे, ओर जो चमकते हे उन्हे बहुत बडी कीमत चुकानी पडती हे उस चमक की, इस लिये राम बचाये इस झूठी चमक से
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