शनिवार, 28 अगस्त 2010

बिना शीर्षक के

कल एक खबरिया चैनल बता रहा था कि तिरुपति में बालाजी के मंदिर में चढावे के सोने के गहनों को नकली जेवरों से बदल दिया गया। सोने के लाखों रुपये के सिक्कों में हेराफेरी हुई है।

वर्षों पहले कलकत्ते में, शक्ति के रूपों में भी सबसे भयंकर, मां काली की सोने की जीभ चुरा ली गयी थी।

मंदिरों, पूजास्थलों या म्यूजिमों से देवी-देवताओं की मूर्तियां अक्सर चोरी हो ऊंचे दामोँ में बिकती रहती हैं।

पूजास्थलों में एक ही चढावा घूम-फिर कर बार-बार चढता रहता है।

क्या आस्था, ड़र, विश्वास सब तिरोहित होता जा रहा है? स्वर्ग, नर्क, अगला जन्म, यह सब छोड़ आप क्या सोचते हैं इस बारे में?

3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

एक से एक कमीने लोग पड़े हैं इन ट्रस्टों में,
जिनका काम ही सिर्फ़ चोरी करना है।
मैं एक बहुत बड़े मंदिर के ऐसे ट्रस्टी को जानता हूँ।
जिसका पूरा घर-खानदान उसके सहित खतम हो गया।
जो चोरी करेगा वो भरेगा भी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

शर्मा जी हम ने तोपहले इन सभी मंदिरो मै जाना ही छोड दिया है, अगर गये तोफ़िर चढवा चढना ही छोड दिया.... क्योकि भगवान, खुदा इन स्थानो पर नही रहते,

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भगवान के घर भी अंधेर !!!

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