भरी दोपहर दरवाजे पर दस्तक हुई, घोष बाबू ने दरवाजा खोला तो सामने फटिक खडा था
फटिक घोष गंगा घाट पर बैठे नदी के जल पर उतराती नौकाओं को देख रहे थे। कोई सवारियों को पार ले जाने के लिये लहरों से संघर्ष कर रही थी, तो कोई पानी मे जाल ड़ाले मछली पकड़ने का उपक्रम कर रही थी। बहुत से लोग घाट पर नहा भी रहे थे। बीच बीच में घोष बाबू एक नज़र अपने पोते बापी पर भी ड़ाल लेते थे जो पानी मे कागज की छोटी-छोटी नावें बना तैराने की कोशिश कर रहा था।
घोष बाबू और उनके पोते बापी का यह रोज का अटूट नियम था, संध्या समय गंगा घाट पर आ शीतल, मंद, सुगंध समीर का आनंद लेने का।
अचानक बापी एक ओर देख चिल्लाया, "दादू, देखो केष्टो!!!
"केष्टो"?, "क्या बक रहा है? किधर है"? घोष बाबू अचंभित हो बोले।
"उधर"। घाट के एक ओर अपनी उंगली का ईशारा कर बापी बोला। अपनी आंखों पर हाथ रख उसकी उंगली की सीध में घोष बाबू ने नज़र दौड़ाई, अरे!!! सचमुच वहां घाट पर केष्टो खड़ा था। घोर आश्चर्य, केष्टो उनका पुराना नौकर, जिसकी मृत्यु दो साल पहले हो चुकी थी, वह साक्षात यहां? घोष बाबू ने तुरंत बापी को उसे बुला लाने के लिये दौड़ाया। कुछ ही देर में केष्टो उनके सामने हाथ जोड़े खड़ा था। घोष बाबू आंखे फाड़े उसकी ओर देखे जा रहे थे, फिर बोले, "अरे तू तो मर गया था न? फिर यहां कैसे?" केष्टो ने अपने पुराने मालिक के चरण स्पर्श किये और ऊपर हाथ उठा कर बोला, "मालिक उस दफ्तर में मुझे धरती से लोगों को उपर ले जाने की नौकरी मिल गयी है।"
" अरे!!! तो यहां कैसे आया है?" घोष बाबू ने पूछा।
"हरिदास को लेने।" घाट पर नहा रहे जमिंदार के नौजवान बेटे की ओर उसने ईशारा किया।
"अरे बाप रे!!! हरिदास? अरे वह तो अच्छा खासा तंदरुस्त जवान है, और अभी महीना भर पहले ही तो उसकी शादी हुई है।"
"हां बाबू, पर उसका समय आ गया है। उसे जाना होगा।"
तभी घाट पर जोर का हल्ला मच गया। हरिदास ने जो ड़ुबकी लगायी तो वह फिर पानी के ऊपर ना आ सका। कुछ देर बाद ही उसकी लाश लहरों पर उतराने लगी।
तभी केष्टो बोला, "मालिक चलता हूं।"
घोष बाबू अवाक से यह सब देख रहे थे, केष्टो कि आवाज सुन जैसे होश मे आये, बोले "अरे केष्टो, सुन जरा, ऊपर तो तेरे को सब आने-जाने वालों का पता होता होगा?"
"हां मालिक" केष्टो ने जवाब दिया।
"तो तू मेरा एक काम कर सकेगा"? घोष बाबू ने पूछा।
" हां, क्यों नहीं, बोलिये"।
"जब मेरा समय आए तो मुझे छह महीने पहले बता सकेगा?"
"जरूर, मैं आप को खबर कर दूंगा।" इतना कह केष्टो हरिदास की आत्मा को ले ओझल हो गया।
समय बीतता गया। फटिक घोष निश्चिंत थे कि समय के पहले छह महीने तो मिल ही जायेंगे, कुछ काम बचा होगा तो निपट जायेगा। ऐसे ही गर्मी के दिनों में भरी दोपहर को दरवाजे पर दस्तक हुई। दोपहर के खाने के बाद की खुमारी घोष बाबू पर चढी हुई थी। धीरे-धीरे उठ कर दरवाजा खोला तो सामने केष्टो खड़ा था। इन्हें देख बोला, "बाबू, चलिये।" घोष बाबू के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गयी। किसी तरह बोले, "पर तुझे तो कहा था ना, कि मुझे छह महीने पहले बता देना?" " हां बाबू, मैंने ऊपर बात की थी, पर वे बोले कि हमारे यहां प्रत्यक्ष रूप में खबर करने का नियम नहीं है। हमारे यहां से अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भेजा जाता है। जब किसी व्यक्ति का शरीर अशक्त हो जाये, चेहरे पर झुर्रियां पड़ जायें, आंखों से दिखना कम हो जाये, दांत गिर जायें, बाल सफेद हो जायें तो समझ लेना चाहिये कि समय आ पहुंचा है।
चलिये....................................
बचपन में पढी कवि गुरु की यह व्यंग रचना अक्सर याद आती रहती है।
कई दिनों से अपना बक्सा बीमार है सो जुगाड़ कर इसे पोस्ट किया है:)
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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8 टिप्पणियां:
लेकिन अप्रत्यक्ष खबरो पर ध्यान देता ही कौन है
चलिये अभी हमारे चहरे पर कोई चेहरे पर झुर्रियां नही पड़ जायें, आंखों से दिखना थोडा कम हुआ है, दांत भी अभी एक दो ही गिरे है, बाल सफेद अभी आधे भी नही हुये.... यानि अभी १०० साल बेफ़िक्र हो कर ब्लांग पर पोस्ट लिखे:)
शर्मा जी बहुत सुंदर लिखा आप ने, ओर सच भी
धन्यवाद
लगता है अप्रत्यक्ष खबर जरा जल्दी ही आ गई आधे तिये में हमारे पास... :)
आजकल बाल काले हो जाते हैं, दांत नकली लग जाते हैं और चेहरे पर भी झुर्रियां हटा दी जाती हैं. लेकिन वह फिर भी गच्चा नहीं खाता.
हमारे यहां से अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भेजा जाता है,
ये सही है, लेकिन कभी-कभी ये हरकारे भी भुल जाते हैं कि हिंट देना। हां हमारे ताऊ जी पहेली पर हिंट जरुर दे देते है। हा हा हा
संकेत-भाषा में दिये जाने वाले संदेश हैं, जो हमारे शरीर,क्रिया-प्रक्रिया में उभरते हैं ।
बहुत अच्छी प्रविष्टि । आभार ।
Bahut achhii lagee, rachana.
kya baat hai..sunadr rachna
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