समय-समय पर वे सपने में आ कर, अपने सैनिकों को सतर्क करते रहते हैं। कई बार उन्होंने विषम परिस्थितियों के आने के पहले ही सेना को सचेत किया है ! उनकी सूचना हर बार पूरी तरह सही साबित हुई है ! पर वे खुद कभी दिखाई नहीं पड़ते ! पर दूसरी ओर चीनी सैनिकों का मानना है कि उन्होंने एकाधिक बार रात में बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सवार होकर सीमा पर गश्त लगाते हुए देखा है ...........!
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क्या यह संभव है कि कोई सैनिक अपने देश से इतना प्रेम करता हो कि अपनी मृत्यु के पश्चात भी वह अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए सदा सचेत व तत्पर रहता हो ! शायद हाँ ! यहाँ शायद कहना भी शायद गलत होगा क्योंकि इस बात का प्रमाण हम नहीं विदेशी देश के सैनिक देते हैं ! भारत माँ के उस वीर सपूत का नाम है, हरभजन सिंह, जिन्हें मृत्योपरांत अब बाबा हरभजन सिंह के नाम से सादर याद किया जाता है !
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बाबा हरभजन सिंह |
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मंदिर |
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मंदिर में स्थित प्रतिमा |
अगस्त, 30, 1946 को पंजाब के गुजरांवाला में जन्मे हरभजन सिंह, बचपन से ही फौजी बनना चाहते थे ! उनकी इस अदम्य इच्छा का ही परिणाम था जिससे 9, फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में एक सिपाही के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई ! 1968 में उन्हें 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम के बार्डर पर तैनात किया गया।



उसी वर्ष की घटना है ! ऐसा कहा और माना जाता है कि 4, अक्टूबर 1968 को जब वे नाथुला दर्रे से डोंगचुई तक अपनी पोस्ट के लिए खच्चरों पर रसद लेकर जा रहे थे, तभी बदकिस्मती से उनका पैर फिसल गया और वे कई फुट नीचे नदी में जा गिरे, पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहा कर दूर ले गया। पांच दिनों की तलाश पर भी जब उनका पता नहीं चल पाया तो उन्हें लापता घोषित कर दिया गया !
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दफ्तर और रेस्ट रूम |
कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में आकर अपनी मौत की खबर दी और यह भी बताया कि उनका शरीर कहाँ मिलेगा। प्रीतम सिंह की बात पर पहले तो किसी ने भी विश्वास नहीं किया पर शव भी नहीं मिल पा रहा था सो बताए गए स्थान पर गहन खोज की गई और ठीक उसी जगह हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर मिल गया। सेना ने सम्मान पूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया ! इसके कुछ दिनों के बाद प्रीतम सिंह को एक बार फिर सपने में आ कर हरभजन जी ने अपनी समाधि बनाने की इच्छा व्यक्त की ! उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए सेना के उच्च अधिकारियों ने “छोक्या छो” नामक स्थान पर उनकी समाधि बनवा दी !
समाधि बनने के बाद अजीबोगरीब वाकए होने लगे ! ऐसा लगने लगा जैसे मृत्यु के बाद भी हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी करते हुए चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और समय-समय पर सपने में आ कर अपने सैनिकों को सतर्क करते रहते हैं। कई बार उन्होंने विषम परिस्थितियों के आने के पहले ही सेना को सचेत किया है ! उनकी सूचना हर बार सही साबित हुई है ! पर वे खुद कभी दिखाई नहीं पड़ते ! पर दूसरी ओर चीनी सेना ने बॉर्डर पर घोड़े पर सवार किसी जवान को अपनी निगरानी करते हुए पाया है ! इन बातों की पुष्टि सैन्य अधिकारीयों ने भी की है ! भारतीय सेना के जवान उन्हें ''नाथुला के नायक'' के रूप में याद करते हैं !
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समाधि स्थल |
इन सब बातों के चलते, सेना द्वारा एक अद्भुत निर्णय लिया गया ! उसके द्वारा उन्हें मरणोपरांत कैप्टन की उपाधि से सम्मानित किया गया और बाकी सैनिकों की तरह हरभजन सिंह जी को भी वेतन, दो महीने की छुट्टी, इत्यादि सुविधाएं दी जाने लगीं ! दो महीने की छुट्टी के दौरान उनके घर जाने के लिए ट्रेन में दो सहायकों के साथ उनकी सीट बुक करवाई जाने लगी ! सेना के जवान बताते हैं कि बाबा को ड्यूटी पर कोई भी गफलत बर्दास्त नहीं है, जब कभी किसी सिपाही की सीमा पर पहरा देते वक्त आंख लग जाती है तो उनको अदृश्य चाटें भी पड़ते हैं, जैसे कोई उन्हें जगा रहा हो !.jpeg) |
पूजा स्थल |
लोगों में इस जगह को लेकर बढ़ती आस्था तथा उनकी सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने 1982 में 9 किलोमीटर नीचे एक मंदिर बनवा दिया, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है। हर साल हजारों लोग यहां दर्शन करने आते हैं। मंदिर में बाबा हरभजन सिंह के जूते और बाकी का सामन रखा गया है। भारतीय सेना के जवान इस मंदिर की चौकीदारी करते हैं ! वहां पर तैनात सिपाहियों का कहना है कि रोज उनके जूतों पर किचड़ लगा हुआ होता है और उनके बिस्तर पर सलवटें भी दिखाई पड़ती हैं, जैसे उस पर कोई सोया हो ! बाबा हरभजन सिंह जी का छोटी सी उम्र में परलोक-गमन के कारण उनकी देश सेवा की अदम्य इच्छा पूरी नहीं हो सकी ! इसीलिए शायद उन्होंने अपनी अल्पकालीन देश सेवा को दीर्घकालिक में तब्दील करने के लिए ही उस लोक में जाने के बजाए अशरीरी रूप में यहीं रह अपने को मातृभूमि के लिए समर्पित कर दिया ! आज उस घटना को घटे करीब 57 साल होने जा रहे हैं, लेकिन उनकी आत्मा आज भी भारतीय सेना के लिए अपना कर्तव्य निभा रही है। सेना भी उनको सदा आदर के साथ याद रखती है। उसी ने उन्हें 'बाबा' की उपाधि दी है। वे हमेशा अमर रहेंगे।.jpeg) |
मंदिर और चीनी सीमा |
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कुहासे से घिरा मंदिर |
यह मंदिर सिक्किम राज्य की राजधानी गंगटोक से 59 किलोमीटर की दूरी पर नाथुला दर्रे से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यानी एक तरह से चीनी सीमा से लगा हुआ है ! उनकी निगाह हम पर सदा बनी रहती है ! इसके अलावा यहां का मौसम बिल्कुल अप्रत्याशित है ! एक पल में सुहाना, दूसरे पल में शीत लहर ! कभी कुहासा इतना गहरा कि कुछ गज देखना भी दूभर हो जाता है ! इसलिए यात्रा के पहले समुचित तैयारी होनी चाहिए ! सेना द्वारा संचालित यहां एक गिफ्ट शॉप भी है, जहां से यादगार के तौर पर खरीदारी की जा सकती है !
जय हिन्द ! जय हिन्द की सेना !!
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