अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य यह एक रेडियो सिग्नल है जिसे फ्रेंच शब्द 'M'aidez' से लिया गया है, जिसका मतलब होता है "मेरी मदद करो।" यह शब्द एविएशन और मैरिटाइम इमरजेंसी के लिहाज से बहुत ही अहम होता है ! इसे तभी प्रयोग में लाया जाता है, जब कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज बहुत ही गंभीर खतरे में हो ! इसीलिए ऐसे कॉल को सबसे ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
12 जून 2025 की दोपहर करीब डेढ़ बजे, गुजरात के अहमदाबाद एयरपोर्ट पर एक भीषण और दर्दनाक दुर्घटना में सिर्फ एक यात्री को छोड़ प्लेन में सवार सभी यात्रियों और क्रू मेंबर की मौत हो गई थी ! इसके अलावा प्लेन के गिरने और उसमें आग लगने से बाहर भी कुछ लोगों की असमय मृत्यु हो गई थी ! उन सभी दिवंगत आत्माओं को समस्त देशवासियों की तरफ से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!
उस हादसे की खबरों के साथ उन्हीं दिनों जिसकी बहुत चर्चा हुई, वह था एक शब्द, "मे-डे" ! जिसे दुर्घटना के ठीक पहले यान के पायलट ने रेडियो संदेश के रूप में वायु यातायात नियंत्रण केंद्र (ATC) को भेजा था। यह एक इमरजेंसी कॉल थी, जिसका किसी विमान के पायलट या जलयान के कैप्टन के द्वारा सिर्फ तभी इस्तेमाल किया जाता है, जब संकट बहुत ही गंभीर हो और बचने की गुंजाइश बिलकुल कम हो ! इस कॉल के जरिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) और नजदीकी यानों को संदेश दिया जाता है कि हम संकट में हैं और हमें मदद की तुरंत जरूरत है। इसे यान के रेडियो पर तीन बार Mayday, Mayday, Mayday बोला जाता है, ताकि स्थिति साफ हो जाए और किसी तरह की गलतफहमी की गुंजाइश न रहे !अं तरराष्ट्रीय तौर पर मान्य यह एक रेडियो सिग्नल है जिसे फ्रेंच शब्द 'M'aidez' से लिया गया है, जिसका मतलब होता है "मेरी मदद करो।" यह शब्द एविएशन और मैरिटाइम इमरजेंसी के लिहाज से बहुत ही अहम होता है ! इसे तभी प्रयोग में लाया जाता है, जब कोई हवाई जहाज या पानी का जहाज बहुत ही गंभीर खतरे में हो ! इसीलिए ऐसे कॉल को सबसे ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है। मे-डे शब्द 1920 के दशक के आरंभ में लंदन के क्रॉयडन एयरपोर्ट के रेडियो अधिकारी फ्रेडरिक स्टेनली मॉकफोर्ड द्वारा गढ़ा गया था। उन्होंने इसे फ्रांसीसी फ्रेज m'aider "मेरी मदद करो" से लिया। 1923 तक यह पायलटों और नाविकों के लिए अंतरराष्ट्रीय रेडियो संचार का हिस्सा बन गया। 1927 में मोर्स "SOS" के साथ इसे औपचारिक रूप से अपना लिया गया। आज इसका उपयोग पूरी दुनिया में विमान से जुड़ी इमरजेंसी के समय किया जाता है। इसमें भाषा की भी कोई बाधा नहीं है, 'मेडे' कॉल सुन कर ही खतरे की खबर मिल जाती है। इसका मई दिवस से कोई संबंध नहीं है।मे-डे के अलावा एमरजेंसी में एक और शब्द का प्रयोग भी किया जाता है और वह है पैन-पैन ! इस कॉल का मतलब है कि कहीं तात्कालिक रूप से सहायता की जरुरत है ! पर इस कॉल का स्तर मे-डे से कुछ कम होता है, हालांकि बाकी सभी कम्युनिकेशन और कॉल्स पर इसे प्राथमिकता दी जाती है।@चित्रों और संदर्भ हेतु अंतर्जाल का आभार
10 टिप्पणियां:
बढ़िया जानकारी मिली आपके इस पोस्ट कुछ अलग सा जानने को मिला हमेशा की तरह। बाकी सभी दिवंगत आत्माओं को ईश्वर शांति दें। होनी- अनहोनी को आखिर कौन टाल सका है... मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने तो सोचा भी नहीं रहा होगा कि उनके साथ किस्मत ऐसा खेल खेलेगी.. बहुत भारी नुकसान हुआ है देश .. अब क्या ही बोला जाए जीवन में कभी भी कुछ भी हो सकता है...
"होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥"
बिलकुल शिवम जी,
तय तो सब कुछ है, पर जब अप्रत्याशित रूप से घटित होता है तो स्तब्ध कर रख देता है !
बहुत ही दुःखद रहा है ये सच,
सभी दिवंगत आत्माओं को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 💐
आपके द्वारा दी गई जानकारी संग्रहनीय है, आभार 🙏🙏
बहुत दुखद घटना ,सभी दिवंगत जनों को आत्मिक श्रद्धांजलि । इतनी अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद।
शालिनी जी,
सदा स्वागत है आपका 🙏
शुभा जी,
हार्दिक आभार 🙏
यशोदा जी,
मान देने हेतु हार्दिक आभार 🙏
अक्सर हम इसे सिर्फ इमरजेंसी कॉल समझते हैं, पर इसके पीछे की बात और इतिहास तो बड़ा दिलचस्प है। 1920 के दशक में इसे फ्रेडरिक स्टेनली मॉकफोर्ड ने बनाया, और फ्रेंच से आया है, ये जानकर मज़ा आया। “मे-डे” का मतलब होता है सबसे खतरनाक स्थिति, जब सच में जान बचाने की जरूरत होती है। और “पैन-पैन” भी है, जो थोड़ी कम इमरजेंसी होती है। ये बातें जानकर लगता है कि एवीएशन कितनी संगठित और प्रोफेशनल है।
एक टिप्पणी भेजें