इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 22 जुलाई 2023
नाड़े वाली पायजामानुमा पैंट
शनिवार, 15 जुलाई 2023
टालमटोल और मामला आँख का
तभी जैसे कुछ घटा ! अचानक मैंने महसूस किया कि मैं खुद को तनाव रहित पा रहा हूँ ! किसी भी तरह की कोई घबराहट नहीं ! कोई चिंता नहीं ! एक हल्कापन ! इस बदलाव को महसूस कर मैं विस्मित सा रह गया ! ऐसा, कैसे, क्या हुआ, समझ नहीं पा सका ! पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि सारा तनाव, सारी घबराहट कुछ पलों में ही तिरोहित हो गई हो, बिना किसी ख़ास वजह के ! एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाने के दौरान हुआ वह बदलाव आज भी एक पहेली बना हुआ है..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
किसी काम को टालने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसे नकारात्मक परिणाम, असमंजस, आलस, जानकारी-समय-धन-आत्मविश्वास का अभाव ! पर शायद सबसे बड़ी वजह होती है, भय ! डर, किसी अनहोनी का ! जो कहीं मन की गहराइयों में दबा-छिपा बैठा रहता है और वक्त-बेवक्त अपना सर उठाता रहता है ! यह जानने के बावजूद भी कि इस काम को टालने के नकारात्मक या गलत परिणाम भी हो सकते हैं, भय के कारण उस काम को टालते रहा जाया जाता है ! इसको एक तरह की बिमारी भी कह सकते हैं, जो धीरे-धीरे आदत में शुमार होती चली जाती है !
भय |
अभी नहीं, फिर कभी |
आखिर टलते-टलते वह एक दिन आ ही गया जब लगा कि नहीं, अब और देर करना उचित नहीं है ! बढ़ती उम्र में पुनर्लाभ होने में समय भी लगने लगता है ! वैसे भी बच्चों का दवाब भी बढ़ रहा था ! सो कई तरह के अलग-अलग सुझावों, सलाहों, परामर्शों के बावजूद पहुँच गए #I-CREATE त्यागमूर्ति जी के नेत्र चिकित्सालय ! कारण भी था ! उनका सानिध्य एक अतिरिक्त भरोसा देता है ! मरीज सुरक्षा सी महसूस करने लगता है ! उनकी बातों से उनका आत्मविश्वास झलकता है, जो सामने वाले को तनाव मुक्त कर देता है ! उनके हाथ का शिफ़ा सैंकड़ों लोगों को नई रौशनी प्रदान कर चुका है ! लगता ही नहीं कि आँख की इतनी जटिल शल्य चिकित्सा कर रहे हों !
मंगलवार का दिन था, सुबह के दस बज रहे थे ! पहुंचते ही ऑपरेशन पूर्व तैयारी के लिए प्री-ऑप. कक्ष में ले जाया गया ! आँख में दवा डाली गई, इस तैयारी में कम से कम 40-45 मिनट का वक्त लगा और समय मेरे लिए सबसे कठिन था ! हर पल के साथ घबराहट बढ़ती जा रही थी ! उलटे-सीधे विचार तनाव का कारण बन रहे थे ! लाख कोशिशों के बावजूद मन की भटकन रुक नहीं पा रही थी ! अंत में खुद को भगवान शिव के वैद्यनाथ स्वरूप की शरण में डाल दिया !
डॉ. त्यागमूर्ति |
ऑपरेशन सफल रहा ! इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि जिस लोअर को मैं अब तक काले रंग का समझ रहा था वह नेवी ब्ल्यू का निकला 😄 भगवान शिव की कृपा ही थी जो डॉ. त्यागमूर्ति जी का साथ मिला ! उस बात को एक पखवाड़े से ऊपर हो गया है, पर उस एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाने के चंद क़दमों के दौरान हुआ बदलाव आज भी पहेली बना हुआ है !
बुधवार, 12 जुलाई 2023
आपा खोती प्रकृति
आज हजारों टन मिट्टी, पत्थर, चट्टाने जो पहाड़ों से अलग नीचे बिखरी पड़ी हैं, उन्हें वापस पहाड़ों पर फिर से ले जाया, लगाया तो नहीं जा सकता ! जीवन सुचारु बनाने के लिए वैसे छोड़ा भी नहीं जा सकता ! तो..........! तो वही होगा जो वर्षों से होता चला आया है ! नदियों के तल ऊँचे होते चले जाएंगे ! फिर नदियाँ उफान पर आएंगी और फिर...! इसके बावजूद क्या भविष्य में इंसान कोई सबक लेगा ? सुधरेगा ? यक्ष प्रश्न है कि क्या सुधरना उसके अपने बस में रह भी गया है ........?
कई दिनों के चिंताजनक इंतजार के बाद आज सुबह, वहां फोन सेवा बहाल होने पर, भाई जीवन का हिमाचल से फोन आया ! सभी की सुरक्षा का हाल जान कुछ तसल्ली मिली ! पर हालात बहुत ही सोचनीय बने हुए हैं ! प्रदेश भर में निजी संपत्तियों को बेहिसाब नुकसान हुआ है तथा पूरे प्रदेश में सामान्य जनजीवन प्रभावित है। जो कुछ लोग पानी की आपदा से सुरक्षित हैं, वे अन्य कारणों से असुरक्षित हैं ! पीने के पानी की बेहद तंगी है ! समुद्र जैसा हाल हो गया है कि चारों ओर पानी ही पानी पर पीने को ज़रा सा भी नहीं ! बच्चों को दूध मिलना मुश्किल हो रहा है ! खाने का सामान है तो पकाने की चिंता सामने खड़ी है ! गैस ख़त्म हो जाए तो पकाने का और कोई साधन उपलब्ध नहीं है ! लकड़ियां गीली हैं ! बिजली बंद है ! सूखे उपले मिल नहीं रहे ! कोई बीमार पड़ जाए तो डॉक्टर के पास ले जाना दूभर है !
बार-बार चेताने के बावजूद, अपनी बेजा हरकतों से बाज नहीं आने वाले मनुष्यों को सबक सिखाने के लिए प्रकृति कितना और कब तक इंतजार करे ! और क्यों करे ! इंसान तो बाज आने से रहा ! पर क्रोधावस्था में रौद्र रूप धारण कर वह निर्दोष पशु-पक्षियों, लता-गुल्मों-पादपों का, यानी अपना भी संहार करती चली जा रही है ! मजबूरी है घुन का पिसना ! पहाड़ों के पेड़ों को अपने घरों को सुंदर और पुख्ता बनाने की ललक ने उनको अपनी जमीन से अलग तो कर दिया पर वही आशियाने तिनकों की तरह पानी के सैलाब में बह गए ! क्या मिला ? इसके बावजूद भविष्य में इंसान कोई सबक लेगा ? सुधरेगा ? पर यक्ष प्रश्न है कि क्या सुधरना उसके अपने बस में रह भी गया है ?
आज हजारों टन मिट्टी, पत्थर, चट्टाने जो पहाड़ों से अलग नीचे बिखरी पड़ी हैं, उन्हें वापस पहाड़ों पर फिर से ले जाया, लगाया तो नहीं जा सकता ! जीवन सुचारु बनाने के लिए वैसे छोड़ा भी नहीं जा सकता ! तो..........! तो वही होगा जो वर्षों से होता चला आया है ! सारा का सारा मलबा घाटियों में धकेल दिया जाएगा ! जो समय के साथ नदियों में जा गिरेगा ! नदियों के तल ऊँचे होते चले जाएंगे ! फिर पानी बरसेगा, फिर बर्फ पिघलेगी, फिर नदियाँ उफान पर आएंगी और फिर........!
पर सारा दोष तो उस लालच को नहीं दिया जा सकता जिसने प्रकृति का दोहन किया ! सुदूर पहाड़ों या दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले भले ही प्रकृति की गोद में रह रहे हों पर उनका रोजमर्रा का जीवन अति कष्टकारी था ! देश के विकास का असर, अन्य संसाधनों-सुविधाओं की पहुँच उन तक ना के बराबर थी ! सेना के आवागमन के लिए सड़कें तो थीं पर पर्याप्त नहीं थीं ! फिर दुर्गम क्षेत्रों में आने-जाने के लिए, सामान पहुंचाने के लिए मार्ग बने ! आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए पर्यटन को बढ़ावा दिया गया ! सुविधाएं बढ़ीं तो लोग पहुँचने लगे ! भीड़ बढ़ी तो उनके रहने, ठहरने के लिए होटलों की जरुरत पड़ी ! जिसके लिए जगलों को काट कर जगह बनाई गई ! जंगलों के वृक्ष कटे तो उनकी पकड़ के बगैर जमीन भुरभुरी हो गई ! फिर वही चक्र...! बरसात हुई, पहाड़ खिसके, नदी का तल ऊँचा हुआ , बाढ़ आई !
फिर वही ''तो''....! इस तो का तो सरल सा उपाय तो था, पर उस पर किसी ने अमल करने की जहमत नहीं उठाई ! कायनात का कायदा है, इस हाथ ले उस हाथ दे ! फिर कुदरत तो कभी भी उतना वापस भी नहीं चाहती, जितना वह लुटाती है ! पर हमारी खुदगर्जी ने यह भुला दिया कि किसी की भलमनसाहत का नाजायज फ़ायदा नहीं उठाना चाहिए ! क्या फायदा उस ज्ञान का, उस विकास का, जो अपने ही विनाश का कारण बने ! अभी भी यह एक चेतावनी ही है कि सुधर जाओ, नहीं तो...........!
शनिवार, 1 जुलाई 2023
छह करोड़ जिंदगियां. एक गुमनाम सा डॉक्टर, राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस पर विशेष
कितने लोगों को पता है कि "ओआरएस" जैसे जीवन रक्षक मिश्रण का आविष्कारक एक भारतीय डॉक्टर था ! जिसकी पद्यति, ओ.आर.टी. ने अब तक विश्व भर में तकरीबन 6 करोड़ लोगों की जान बचाई है और भविष्य में और ना जाने कितने अनगिनत लोगों की जान बचाने का हेतु बनेगी ! पर इतनी बड़ी खोज करने वाले की कद्र उसी के देश में नहीं हो सकी ! अपने ही देश में वह गुमनाम सा हो कर रह गया ! उसका नाम तक अधिकाँश लोगों को नहीं पता ! एक तरह से गुमनामी के कोहरे में ही वह सबको अलविदा कह गया..........!
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आज राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस पर अपने ही देश के एक ऐसे डाक्टर की श्रद्धांजलि स्वरूप चर्चा, जिसके चिकित्सा क्षेत्र को दिए गए अपूर्व योगदान का अधिकांश देशवासियों को ही पता नहीं है !जबकि उनके आविष्कार का प्रयोग, जरुरत पड़ने पर, घर-घर में होता है। वे अगर चाहते तो अपने इस आविष्कार को पेटेंट करवा करोड़ों रूपए कमा सकते थे, पर उस सेवाभावी इंसान ने अपनी इस रामबाण खोज को मानवता के प्रति समर्पित कर बाजार में खुला छोड़ दिया, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उसका लाभ उठा सकें ! ज्यादा से ज्यादा जानें बचाई जा सकें ! इतना ही नहीं, जाते-जाते वे अपने जीवन भर की पूँजी भी आई.सी.एच, कोलकाता, को दान करते गए ! जहां उन्होंने पहली बार बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में काम करना शुरू किया था ! वे थे डॉ. दिलीप महालनाबिस और उनकी ईजाद का नाम है, "ओआरएस" यानी ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन ! चौँकने के साथ-साथ गर्व महसूस करने की बात है कि इस जीवनदाई ओषधि की खोज हमारे अपने देश के ही एक डॉक्टर ने की थी !
डॉ. दिलीप महालनाबिस |
अविभाजित बंगाल के किशोरगंज जिले में 12 नवम्बर 1934 में जन्मे दिलीप महालनाबिस ने 1958 में अपनी शिशु चिकित्सक की पढ़ाई कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में पूरी करने के बाद लंदन और एडिनबर्ग से भी डिग्री प्राप्त की ! वहीं क्वीन एलिजाबेथ हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के रजिस्ट्रार के रूप में चुने जाने वाले पहले भारतीय बने ! 1960 में स्वदेश लौट उन्होंने कोलकाता में काम करना शुरू कर दिया ! डॉ. दिलीप महालनाबिस उन कई डॉक्टरों में से थे, जिन्होंने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान 1971 में हैजा जैसी घातक बीमारी फैलने पर निस्वार्थ भाव से देश की सेवा की और लाखों लोगों की जान बचाई।
उस समय हैजा के कारण मरने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी। उन दिनों डिहाइड्रेशन का एकमात्र समाधान ड्रिप लगाना ही था ! डायरिया से पीड़ित अनगिनत लोगों की मदद के लिए एक बेहतर विकल्प ढूंढना बहुत जरुरी था ! ऐसी विकट परिस्थितियों में डॉ. दिलीप ने एक अनोखा पर सस्ता, मिश्रण तैयार किया, जिसे उन्होंने ओरल रिहाईड्रेशन सॉल्यूशन यानी ''ओ.आर.एस.'' का नाम दिया। इस सामान्य से मिक्सचर को पानी में मिला कर पिलाने से डिहाइड्रेशन दूर किया जा सकता था। इस तरह डॉ महालनाबिस ने बेहद सस्ती और कारगर ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ओ.आर.टी.) को प्रचलित किया ! अन्य चिकित्सकों की लगातार आलोचना व प्रतिरोध के बावजूद उनका मानना था कि यह कार्य रोगियों के अप्रशिक्षित रिश्तेदारों द्वारा भी किया जा सकता है ! उन्होंने अपने पास ओ.आर.एस. के कई ड्रम भरवा कर रखे और परिवार और रिश्तेदारों से मरीज को घोल देते रहने को कहा। उनकी सोच और मेहनत रंग लाई और ओ.आर.एस. के चमत्कार से रोगियों में मृत्यु दर 30 प्रतिशत से घटकर 4 प्रतिशत से भी कम हो गई ! मरीज जल्द ही ठीक होकर घर भी लौटने लगे !
अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यह मानना है कि ओरल रिहाईड्रेशन थेरेपी किसी भी आपातकालीन स्थिति में दस्त से निर्जलीकरण की रोकथाम और उपचार के लिए इंट्रावेनस थेरेपी का एक विकल्प है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार ओ.आर.टी. ने तक़रीबन 6 करोड़ लोगों की जान बचाई है ! पर इतनी बड़ी खोज करने वाले की कद्र उसी के देश में नहीं हो सकी ! अपने ही देश में वह गुमनाम सा हो कर रह गया ! उसका नाम तक अधिकाँश लोगों को नहीं पता !
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नेत्र शल्य-चिकित्सा का विश्वसनीय केंद्र
दिलीप महालनाबिस एक अच्छे डॉक्टर, वैज्ञानिक, वनम्र और दयालु व्यक्ति थे, जो सदा देने में विश्वास करते रहे ! इतनी बड़ी खोज, जिससे वे दुनिया भर में मशहूर हो सकते थे, उसका मोह नहीं किया ! अब तक तकरीबन छह करोड़ और भविष्य में ना जाने कितने अनगिनत लोगों की जान बचाने का हेतु बनने वाला, एक तरह से गुमनामी के कोहरे में 15 अक्टूबर, 2022 को 87 साल की उम्र में सबको अलविदा कह गया ! मरणोपरांत, देश के 74वें गणतंत्र दिवस पर, भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया ! देश और दुनिया के प्रति उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा !
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